जो मित्र एक दूसरे का सुख दुख बांट कर किसी भी समस्या को अपनी बना कर के उसका समाधान कर दे | वही सच्ची मित्रता है |
जो मित्रता युवावस्था में बनती व बिगड़ती है | शायद उसमें वह आनंद नही जो बचपन की मित्रता में होती है | क्योंकि बचपन में बने मित्र को छ्ल कपट का ज्ञान ना के बराबर होता है | मित्रता टूटती भी है तो जल्द ही जुड़ भी जाती हैं | बचपन के मित्र की यादें वो चाहे स्कूल की हो या फिर गली मोहल्ले की हो या फिर कहीं पिकनिक इत्यादी की हो इन्सान के हृदय में अपना गहरा स्थान बना ही लेती है | शायद इतनी गहरी मित्रता केवल और केवल बचपन के मित्र में ही हो सक्ती हैं | "आज कल की मित्रता तो केवल धन पर निर्भर है | धन समाप्त तो मित्रता समाप्त "| इसलिये बचपन की मित्रता ही एक सच्ची मित्रता का फर्ज अदा करती थी |