कसक तेरे प्यार की (भाग 17)
अब तक आपने पढ़ा सीमा नदीम से कहती है जो भी कुछ सच है मेरे मां-बाप को बता दो,,, अब आगे 👉
नदीम फिर कुछ सोचता है और बेज़्जती के डर से चुप हो जाता है और सोने के लिए लेट जाता है सीमा बैठी रात भर रोती रहती है क्या मुसीबत गले पड़ गई है।
"क्या ये दिन देखने के लिए ही मैंने शादी की थी,,,!"
"क्या इसी दिन का मुझे इंतज़ार था,,।"
"वह खड़ी होती है कि मैं अम्मी जान को अभी जाकर सब कुछ बताती हूं,,!"
" दरवाज़ा खोलकर बाहर आती है जहां सब लोग बैठे शादी की बातें ही कर रहे हैं,,, और ख़ुदा का शुक्र अदा कर रहे हैं।"
और सीमा की शादी को लेकर बहुत ख़ुश है,,,, नानी जान तो रह रह कर शेरो शायरी कर रही हैं और नाना जान से कह रही हैं मुझे तो अपना वक़्त याद आ गया हमारी जोड़ी भी इतनी ही शानदार थी।
हर कोई हमारी तारीफ़ किए बिना नहीं रहता था,, नाना जान मज़ाक में कहते हैं अब कौन सी बुरी है हमारी जोड़ी तो आज भी शानदार है ।
तभी नानी की नज़र सीमा पर पड़ती है क्या हुआ बेटा वह सीमा से पूछती हैं ,,,,।
और यह कहकर कुछ नहीं हुआ नानी पानी लेने आई थी फ्रिज से पानी की बोतल निकाल कर अपने रूम में चली जाती है,,, ।
अपने दिल में सोचती है मुझे चुप रहना ही होगा इन लोगों की खुशी के लिए,,,,, देखती हूं कुछ दिन,,,, क्या पता मैं अपनी कोशिश से इस के दिल में जगह बना सकूं,,,।
क्योंकि उन सब को इतना खु़श देखकर सीमा की हिम्मत नहीं होती,,,,, उसकी अम्मी जान शुकराने की नमाज़ पढ़ रही है,,,, घर मेंहमानो से भरा हुआ है सबकी इज्ज़त के लिए सीमा भी ख़ामोश रह जाती है।
दादा जान के शब्द उसके कान में गूंज रहें हैं,,वह दादी से कह रहे थे,,, मैंने कहा था ना ये रिश्ता बहुत अच्छा है सब लोग बहुत अच्छे हैं,,, ।
सीमा वहां बहुत खुश रहेंगी,,,,।
इधर सीमा दिल में सोचती है नहीं हूं मैं खुश,,, तुम्हें क्या पता मैं किस आग में जल रही हूं,,,।
फिर उसके दिल में कसक उठती है वह फिर बताने की सोचती है,,,पर दूसरे ही पल उसे ख़्याल आता है,,,
नहीं मैं यह नहीं कर सकती,,,,, मैं इनका दिल नहीं दुखा सकती,,,। यह मुझसे हरगिज़ ना होगा,,, यह कसक तेरे प्यार की मुझे सहनी ही होगी,,,,।
सीमा कमरे में वापस आ जाती है नदीम की तरफ़ देखकर बोलती है,,ये कसक तेरे प्यार की मुझे जीने नहीं देती,,,।
अब तुम्ही बताओ मैं क्या करूं,,, ।
एक तरफ मेरे मां-बाप हैं जो तुम्हें देखकर खुशी से फूले नहीं समा रहे,, एक तरफ़ मैं हूं जिसे तेरे प्यार की कसक जीने नहीं दे रही,,,, क्या करूं मैं यह किस दोराहे पर लाकर छोड़ा है तूने मुझे,,,।
अपने मां-बाप को इस उम्र में इतना बड़ा ज़ख्म देकर जीते जी मार दूं या तेरे दिए जख़्मों की आग में ख़ुद ही जल मरूं बताओ क्या करूं मैं,,,,,।
मैं इतनी बहादुर पढ़ी लिखी औरत क्यों मजबूर और बेबस हो गई,,, कहते हैं ना मोहब्बत इंसान को कमज़ोर बना देती है,,,,।
अपनों की मोहब्बत ने मुझे बहुत कमज़ोर कर दिया है ,,,, नहीं तो 1 मिनट लगता है तेरा नाटक खत्म करने में,,,।
और तू उस चुड़ैल की मोहब्बत में पागल हो गया है,,
नदीम कहता है ऐसा कौन सा पहाड़ टूट गया मैं कौन सा तुम्हें छोड़ रहा हूं,,, घर में हर तरहं का आराम है तुम्हें,,,। किसी चीज़ की कोई कमी नहीं,,।
सीमा चुप होकर बैठ जाती है,, अब कैसे समझाऊं तुम्हें मेरे बाबा ने कितने अरमानों से मेरी शादी की थी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होने दी,,, ।
जो कुछ तुम लोगों ने चाहा सब पूरा किया,,, अपनी बेटी की खुशी के लिए,,,। जैसे तैसे वह ख़ुद को ही समझाती है,,, अभी कोई भी फैसला लेना ठीक नहीं,,, फिर सोचती है नदीम की मां बाप को ही बताऊंगी वही कुछ रास्ता निकालेंगे।
कोई भी फैसला करने से पहले हर पहलू को अच्छी तरहं से सोच समझ लेना चाहिए जिससे बाद में पछताना ना पड़े,,,।
और इन्हें खयालों में उलझते हुए कब सो जाती है कुछ पता नहीं,,,।
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिए धारावाहिक कसक तेरे प्यार की,,
मौलिक रचना सय्यदा खा़तून,, ✍️
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