कसक तेरे प्यार की,,,
(भाग-7)
अब तक आपने पढ़ा नदीम सीमा से कहता है वह किसी और से प्यार करता है,,,यह शादी उसकी मर्जी से नहीं हुई है,,,अब आगे 👉
वह बड़ी बेबसी से नदीम की तरफ़ देखती है,, और नदीम बड़े आराम से सोफे़ पर जाकर सो जाता है,,, और सीमा सोचती है यह क्या हो गया तक़दीर ने मुझे किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया,,,,,, ।
"इस आदमी को देखो कह रहा है कि मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहता,,,,"
"वह भी धोखा देने के बाद,,,।"
"इसकी ज़बान इतना बड़ा फैसला सुनाते वक़्त एक मिनट के लिए भी नहीं कांपी,,, !"
अपनी मां की पसंद के लिए और उसकी ख़ुशी के लिए इसने तो दो लड़कियों की ज़िन्दगी तबाह कर दी,,,,,,।
"और कहता है मैं उससे शादी कर लूंगा,,, !"
"अरे इतनी हिम्मत तूने पहले क्यों नहीं दिखाई,,, !"
"कम से कम दो लोग बर्बाद होने से तो बच जाते,,,,।"
नदीम की मां पर भी उसको गुस्सा था,,, एक बार तो कम से कम अपने बेटे के दिल की बात जान ने की कोशिश की होती,,, आख़िर वह चाहता क्या है,,,,,,।
और मैं, मैं तो बिलकुल बेख़बर अपनी नई दुनिया के ख़्वाबों में खोई अपने साजन के आने का इंतज़ार कर रही थी,, और इंतज़ार कर रही थी,,,, उसके सुरीले अल्फा़जों का,,,,,और सुनना चाहती थी अपनी ख़ूबसूरती के हज़ारों अफ़साने उसकी ज़ुबानी,,,,,,।
पर उसका एक-एक लफ्ज़ उसके कानों में ज़हर घोल गया,,,,, उसका दिल कर रहा था सब कुछ फेंक कर इस घर से निकल जाए,,, पर दूसरे ही पल उसे अपनी अम्मी अब्बू का ख़्याल आ गया,,,!
कितने अरमान से उन्होंने उसकी शादी की थी किसी चीज़ की कोई कमी ना छोड़ी थी और ससुराल भी अपने नजदीक ऐसा पसंद किया था जो हर किसी लड़की के अरमानों पर पूरा उतरे,,,।
उन्हें क्या ख़बर थी कि यह महल नहीं सोने का पिंजरा है जहां कैद होकर एक बुलबुल अपने मीठे स्वर भूल जाएगी वह सब कुछ किस्मत पर छोड़कर अपनी जिंदगी संवारने की कोशिश के उपाय सोचने लगी आख़िर अब उसे क्या करना है,,,,,,।
"रह-रह कर उसे नदीम की बात याद आती है,,,,,!"
" तुम्हें इस घर में रहने सहने और खाने पहनने की कोई कमी ना होगी,,, !"
"और सीमा का ख़ून खौलने लगता है,,,!"
" क्या मेरे घर में खाने पहनने की कमी थी,,,, !"
"क्या मेरे सर पर छत नहीं थी,,,,।"
"मैं भी अच्छे खाते पीते घर से आई हूं!"
" मैं भी राजकुमारियों की तरहां पली हूं"
" मेरे बाप ने कभी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होने दी,,,,,।"
"अब वह किससे क्या कहेगी!"
"क्या बताएगी सहेलियों को,,,,,!"
"वो तो उसकी क़िस्मत पर रश्क कर रहीं थी,,"
"ऐसा शौहर ख़ुदा सबको दे!"
"ये तो अब पता चला,,,!"
"या ख़ुदा ऐसा किसी लड़की के साथ नहो,,!"
"उफ़्फ,,दिलके अरमान आंसुओं में बह गए,,!"
सीमा इन्हीं ख़्यालों मे खोई,, खुद से ही बातें करती रही हज़ारों सवाल उसके दिमाग़ में उतर गए और वह उनका जवाब अपने में ही ढूंढती रही,,, किस वक़्त उसकी आंख लग गई उसे पता नहीं चला,,।
"तभी दरवाज़े पर नदीम की चाची जान ने हल्के से दस्तक दी,,,,!"
" घबराकर सीमा उठ कर बैठ गई,,,,!"
" बाहर से हंसने की आवाजें आ रही थी,,, !"
"नदीम ने बढ़कर दरवाजा खोला और चुपचाप बाहर चला गया,,,,,!"
" नदीम की बहने और चाची हंसते हुए कमरे में आईं,,!"
" सब लोग बहुत ख़ुश हो रहे थे,,,!"
"नदीम की चाची ने सीमा के कान में हंसते हुए कुछ कहा,,!"
" जिसे सुनकर सीमा का चेहरा शर्म से लाल हो गया,,,।"
"साथ ही वह गुस्से में पागल हो रही थी,,,।"
"पास डिब्बे में रखे हुए कंगन,,, उसका दिल जला रहे थे!"
" चाची जान ने फिर अपना सवाल दोहराया,, अरे बताओ ना रात कैसी गुजरी,,,,।"
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिए धारावाहिक
कसक तेरे प्यार की,,
👉👉👉👉👉👉👉👉 क्रमशः
मौलिक रचना सय्यदा खा़तून,, ✍️
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