कसक तेरे प्यार की (भाग 32)*
अब तक आपने पढ़ा नदीम जे़बा को प्रपोज करता है और उससे शादी करना चाहता है,,, मगर जेबा इंकार कर देती है,,,।
और उससे कहती है जब तुमने शादी कर ली थी तो मैंने यह सोच कर अपने दिल को मना लिया था कि सबको सबका प्यार नहीं मिल सकता,,, जबकि मैं अंदर से बहुत टूट चुकी थी,,,,,,
फिर भी तुम्हें अपना दोस्त मानती रही क्योंकि मैं अपने दोस्त को खोना नहीं चाहती थी,,, पता है जिंदगी में अच्छे दोस्त कितनी मुश्किल से मिलते हैं,,, मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती थी कि तुम सीमा को तलाक़ दे दोगे,,,,।
आज तुम मेरी नज़रों से गिर चुके हो तुम्हारी नज़र में शादी की कोई अहमियत नहीं,,, और मैं ऐसे इंसान से शादी नहीं कर सकती जो औरतों की इज्ज़त नहीं करता,,,, ।
वैसे भी अगले हफ़्ते,,, मेरी शादी हो रही है,,, और मैं चाहती हूं कि तुम भी एक अच्छे दोस्त की तरह सब कुछ भुला कर मेरी शादी में शिरकत करो,,,,।
अब आगे 👉
नदीम जे़बा के जवाब से बिल्कुल टूट जाता है उसको ज़ेबा से यह उम्मीद बिल्कुल नहीं की थी,,,,वह जेबा को आंखें फाड़े देखता ही रह गया,,,, उसके होंठ सूख गए शब्द उसके गले में अटक कर रह गए वह ज़ेबा से बहुत कुछ कहना चाहता था पर एक शब्द भी उसके मुंह से ना निकला उसका दिल मानो बैठा जा रहा था,,,
बड़ी हिम्मत करके उसने जे़बा से कहा मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं जे़बा,,, मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकता,,,।
जे़बा कहती है बहुत देर हो चुकी है नदीम फिर तुम यह क्यों भूल जाते हो प्यार का नाम पाना ही नहीं किसी को खो देना भी होता है,,,।
यूं हिम्मत हार कर अपने प्यार को रुसवा मत करो,,, मैं सीमा की तलाक़ का बोझ लेकर नहीं जी सकती उस औरत के बारे में सोचो जिसे बिना वजह तुमने तकलीफ़ पहुंचाई है,,,,।
अब तो कुछ नहीं हो सकता लेकिन अपने गुनाहों की माफ़ी उस औरत से तुम्हें मांग लेनी चाहिए,,, जिसके माथे पर बेवजह ही तुमने तलाक का कलंक लगा दिया है,,,।
क्या तुम्हें नहीं लगता तुम्हारी गलती थी,,, और नदीम कुछ सोचने समझने की हालत में नहीं था बस अपने दिल में यही कहता रहा मेरे गुनाहों की सज़ा तो मुझे मिलनी ही थी
मैं तुम्हारे प्यार में इतना अंधा हो गया था कि वाक़ई उस औरत के साथ अन्याय कर बैठा जो हज़ारों अरमान लेकर मेरी ज़िंदगी में मेरी हमसफर बन कर दाख़िल हुई थी,,,।
और जिसे हम सफ़र तो क्या मैंने कभी दो घड़ी मुस्कुरा कर देखने की कोशिश तक नहीं की,,,।
कहते हैं ना औरत का प्यार इंसान को अंधा कर देता है और उसकी बेवफ़ाई पागल कर देती है मैं इस वक़्त कुछ भी सोचने समझने की हालत में नहीं,,,
जे़बा नदीम को हिलाते हुए कहती है कहां खो गए बहुत देर हो चुकी है अब तुम्हें घर जाना चाहिए और नदीम मन ही मन बड़बड़ाते हुए,,,,, चारों तरफ़ देखकर कहता है तुम ठीक कहती हो बहुत देर हो चुकी,,,, हां बहुत देर,,,, ।
मैं कितना ग़लत था दोनों में से एक भी औरत के दिल को नहीं समझ पाया,,, एक ने अपने आदर्श के लिए प्यार को छोड़ दिया तो दूसरी ने घरवालों की इज़्ज़त के लिए सब कुछ सहन करके ख़ामोश हो गई,,,।
और मेरी ज़िंदगी में एक औरत के प्यार की कसक तो दूसरी औरत को छोड़ देने की कसक के सिवा कुछ ना रहा
और कसक ,,सिर्फ कसक ही मेरा मुक़द्दर हो गई,,,।
और लगता है सारी उम्र प्यार की कसक मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी,,,,,,, हो सके तो तुम भी मुझे माफ़ कर देना,,,।
जेबा यह कैसी बातें कर रहे हो नदीम हम अच्छे दोस्त थे और अच्छे दोस्त रहेंगे तुम्हें मेरी शादी में आना भी होगा
इस कार्ड को संभाल कर रखो और नदीम कार्ड को अपने हाथ में लिए अपनी गाड़ी की तरफ़ मुड़ जाता है,,,,,,।
जेबा उसको जाते हुए देखती है और दिल में सोचती है यह आदमी भी बस न जाने क्या-क्या सोच लेते हैं,,,,, एक को छोड़ देंगे दूसरी को पा लेंगे जैसे औरत ना हुई कोई खिलौना हो गई,,,,,।
पर भूल जाते हैं कि दुनिया को चलाने वाला सब का हिसाब अपने पास रखता है और वही होता है जो वह चाहता है और वह जो चाहता है इसी में सबकी भलाई होती है,,,।
ख़ैर जो होना था सो हुआ ज़ेबा सोचती है,, काश नदीम तलाक़ देने से पहले एक बार तो मेरे सामने सीमा का जिक्र करता तो मैं उसको यकीनन ऐसा करने से रोक देती,,, ।
रह रहकर यह कसक ज़ेबा के दिल को सताए जा रही है
वह कहीं ना कहीं जाने अनजाने अपने आपको क़सूरवार समझती है,,,,।
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिए धारावाहिक कसक तेरे प्यार की
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मौलिक रचना सय्यदा खा़तून,, ✍️
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**सूचना**
इस कहानी के सभी अधिकार मेरे पास सुरक्षित है इस कहानी से किसी का कोई लेना-देना नहीं यह पूर्णतया काल्पनिक है,,,
--ख़ातून--