डीयू, जेएनयू, अम्बेडकर यूनिवर्सिटी समेत दिल्ली की कई यूनिवर्सिटियों में दूसरे शहरों से आई लड़कियां आजकल एक आन्दोलन चला रही हैं. ‘पिंजरा तोड़’. यानी हॉस्टल, पीजी और मकानमालिकों के बनाए गए सेक्सिस्ट नियमों को तोड़ने के लिए एक मुहिम. अक्सर देखा गया है कि लड़कियों के आने-जाने के समय में मकान मालिक का हॉस्टल मैनेजमेंट पचास तरह की रोक लगाकर रखता है. पर ये लड़कों के साथ नहीं होता. वो कहीं भी घूमते हैं, किसी भी समय अपने रूम में वापस आ-जा सकते हैं.
पिंजरा तोड़ के सदस्यों का एक फेसबुक ग्रुप है. जिसपर एक ऐसी पोस्ट दिखी कि रोंगटे खड़े हो गए. शायद सुनने में ये आपको अपने जैसा इकलौता वाकया लगे. पर ऐसा हैरेसमेंट दिल्ली के पीजी में रहने वाली लड़कियां अक्सर झेलती हैं. पढ़िए, इस लड़की ने क्या बताया:
‘8 सितंबर, गुरुवार को जब मेरी क्लास ख़तम हुई, मैं अपने पीजी में वापस आकर लंच बनाने लगी. तबीयत ठीक नहीं थी, तो सोचा कुछ हेल्दी खाऊं. अचानक मुझे लगा कि मेरे सिवा कोई और भी किचन में है. मुझे लगा डस्टबिन साफ़ करने वाला होगा, तो मैं काम में लगी रही.
अचानक किसी ने अपनी बियर की बोतल स्लैब पर रखी. मैं पीछे घूमी तो पाया एक दारू पिया हुआ आदमी पीछे खड़ा है. बिलकुल मेरे पीछे. उसकी पैंट का बटन खुला हुआ, उसका लिंग उसके हाथ में था. मैंने पास में रखी एक कुर्सी खींची और उसी की मदद से आदमी को धक्का दे दिया. उसे बाहर कर खुद को किचन में बंद कर लिया. वो दरवाजा खटखटाता रहा. और उसके बाद दूसरे कमरे में घुस गया. मैंने पीजी के केयरटेकर को फ़ोन किया जो उसी बिल्डिंग में चौथे फ्लोर पर रहते हैं. वो आए, देखा वो आदमी दूसरे कमरे में घुस गया है. पीजी के मालिक की बहू संयोग से हमारे ही फ्लोर पर थीं. उन्होंने कहा जब तक मकान मालिक नहीं आते, तब तक मैं पुलिस को न बुलाऊं. मकान मालिक जाम में फंसे हुए थे. 40 मिनट बाद आए. तब तक वो आदमी दूसरे कमरे में रहा. वहीं एक मैगजीन का रोल बनाया. फिर वहीं पड़े लड़की के रबर बैंड से बांध उसमें अपना लिंग डालकर हिला रहा था.
जब मकान मालिक आए, उन्होंने उस आदमी को खूब पीटा, बाहर निकाल दिया, लेकिन पुलिस से शिकायत नहीं करने दी. हमारे आग्रह करने पर पीजी ओनर इस बात को मान गए कि पीजी का गेट बदल देंगे. क्योंकि ये वाला गेट कोई भी बाहर से खोलकर अंदर आ सकता था. जिस लड़की के कमरे में वो आदमी घुसा था, वो रात 11 बजे ऑफिस से आई. अपने कमरे की हालत देखकर वो घिना गई. उसने पुलिस से शिकायत कर दी.
हमने दो पुलिस वालों को बुलाया. और पीजी के मालिक ने श्याम सुंदर नाम के एक हेड कॉन्स्टेबल को बुलाया, जिससे उनकी दोस्ती है.
पीजी के मालिक और पुलिस ने हमें समझाया कि हमें रात 11 के बाद घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए. और बताया कि किस तरह गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड पार्क में बैठ कर पुलिस के लिए मुश्किल खड़ी करते हैं. जैसे बॉयफ्रेंड के साथ सेक्स करना और किसी से रेप हो जाने में कोई फर्क ही नहीं है. ऐसा लगता है कि पुलिस का फर्ज कपल्स को पकड़ना है, अपराधियों को नहीं.
पूरा सीन CCTV में कैद हुआ, फिर भी पीजी के मालिक या पुलिस ने हमें कंप्लेंट नहीं करने दी. वजह दी गई, ‘लड़की जात हो, क्या कोर्ट कचहरी जाओगी.’ इसके बाद वो लगातार होने वाली चोरियों के उदाहरण देने लगे. जैसे एक बिजली की मोटर और औरत के शरीर में कोई फर्क ही नहीं है.
पुलिस वाले CCTV फुटेज देखते समय हंस रहे थे. उन्होंने ये तक कहा कि फुटेज में मैं तो दिख ही नहीं रही, जैसे मैं झूठ बोल रही हूं. साफ़ साफ़ दिख रहा था कि आदमी अपनी पैंट का बटन खोल रहा है. मेरा दिमाग ख़राब हो गया. लेकिन पीजी के मालिक के लड़के और कॉन्स्टेबल को हंसी आ रही थी.
ये सब मेरी समझ के बाहर है.
पुलिस ने हमारा बिल्कुल भी साथ नहीं दिया. उन्होंने कहा कि अगर शिकायत दर्ज भी हो जाए, आदमी पकड़ा भी जाए, वो उसे जेल में बंद नहीं रख पाएंगे. उसे एक दिन छोड़ देंगे. जब पुलिस वाले ही इस तरह बर्ताव करेंगे, हम कैसे इस समाज में किसी भी तरह के न्याय की उम्मीद रख सकेंगे? उन लोगों के मुताबिक मेरे लिए चुप रहना ही ठीक होगा, क्योंकि अगर उस आदमी के दोस्त बदला लेने आ गए तो मेरे ऊपर तेज़ाब भी फेंक सकते हैं. आप सोच सकते हैं, मेरे पीजी के मालिक ने उस आदमी को ‘बच्चा’ बुलाया. कहा, ‘ये 7 बच्चे हैं, मेरे सामने ही बड़े हुए हैं. यहीं सपना सिनेमा के पास बैठते हैं. मुझसे उस आदमी के बचाव में कहा गया कि वो तो नशे में था. मुझे लगता है ये बात उसके बचाव नहीं, उसके विरोध में होनी चाहिए. ये सच है कि मैंने आदमी को धक्का देकर बाहर कर दिया था. लेकिन CCTV फुटेज में मैंने देखा कि वो काफी देर तक मेरे बाहर आने का वेट करता रहा था. वो हार नहीं मान रहा था. उसकी नीयत मुझे मोलेस्ट करने की थी.
मेरे मां-पापा, टीचरों और और दोस्तों ने मुझे हमेशा ये सिखाया है कि अपने लिए लड़ूं. कुछ भी न करूं, ये मैं स्वीकार नहीं कर सकती. ये तो इन हरकतों को बढ़ावा देने जैसा होगा. वीमेन डेवलपमेंट सेल और लेडी श्री राम कॉलेज कॉलेज समेत मेरे पीजी की लड़कियां मेरे सपोर्ट में हैं, कदम उठाने को तैयार हैं. मैं उस आदमी को इतनी आसानी से नहीं जाने दूंगी. कॉन्स्टेबल श्याम सुंदर का रवैया वैसा नहीं था जैसा पुलिस वालों का होना चाहिए. उनका काम हमारा साथ देना है, हमारी हालत पर हंसना नहीं.’
फेसबुक पर ये पोस्ट देखते ही मैंने ये किस्सा अपनी एक दोस्त को बताया. तो उसने कहा, कि उसकी दोस्त के पीजी में भी एक बार ऐसा ही हुआ था. उनके पीजी में रोज कूड़ा उठाने वाला आता था. कभी कभी उसका बेटा भी आता. एक दिन वो लड़की अपने पीजी में अकली थी. गेट खटका. उसको लगा शायद वो पैसे लेने आया है. लड़की ने खोला तो देखा लड़का खड़ा होकर मास्टरबेट कर रहा था. जब पूरा वाकया उसने अपने बॉयफ्रेंड को बताया, तो उसने कहा, ‘जरूर तुम्हारी ही गलती होगी. वो तुम्हें ही देखकर क्यों हिला रहा था?’
एक स्टूडेंट की तरह मैंने 5 साल दिल्ली यूनिवर्सिटी में गुजारे हैं. लगभग हर लड़की से इस तरह के किस्से सुने हैं कि लड़के लड़कियों के पीजी या हॉस्टल के बाहर आकर मास्टरबेट करते हैं. बल्कि इस बारे में हम पहले भी लिख चुके हैं. उस मानसिकता के बारे में जो पुरुषों को सिखाती है कि कुछ भी करो, ‘इट्स ओके’.
जिस लड़की के साथ ये सब हुआ, वो इस समय चिकनगुनिया से जूझ रही है. कॉल लेने की हालत में नहीं हैं. हमने उनकी सहेली सृष्टि से बात की. ये कहना है LSR में पढ़ने वाली सृष्टि का:
असल मुद्दा ये है कि लोगों को झक मारकर पीजी लेना पड़ता है. क्योंकि डीयू में हॉस्टल हैं नहीं. पीजी के रेट वैसे ही इतने ज्यादा हैं. मैक्सिमम सिक्योरिटी चाहो तो 20 हजार रुपए महीने तक में घर मिलता है. हॉस्टल, पीजी वाले सेफ्टी के नाम पर लड़कियों के घर वापस आने का समय तय कर देते हैं. लेकिन देखिए, ये वाकया दोपहर में हुआ. घर के अंदर हुआ. औरतें किस जगह सेफ हैं फिर?
जिस तरह इस लड़की ने फैसला लिया कि वो खुद को हैरेस करने वाले आदमी को इतनी आसानी से बचकर नहीं जाने देगी, आप भी इसी तरह अपने हक के लिए डटे रहिए. पुलिस, मैनेजमेंट सबके खिलाफ. याद रखिए, एक फेसबुक पोस्ट भी आपको न्याय दिला सकती है. हिम्मत सिर्फ आवाज उठाने के लिए चाहिए.
साभार: द लल्लनटॉप