लंच ज्यादा महत्वपूर्ण होता है या डिनर?
पितृसत्तात्मक समाज में एक कहावत चलती है. मर्द के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है. भारत के दो बड़े नेताओं के बीच ये बात एक तरीके से सही साबित हो रही है.
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार बाढ़ का मुआयना करने पहुंचे. पूर्णिया एयरबेस से निकलकर लगभग 50 मिनट तक हवाई मुआयना करने के बाद वो नीतीश कुमार के द्वारा आयोजित लंच में पहुंचे.
पर 7 साल पहले नीतीश कुमार ने थाली लगाकर खींच ली थी
ठीक 7 साल पहले 2010 में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच इसका उलटा हुआ था. उस वक्त नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री थे. नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. बिहार में बाढ़ आई हुई थी कोसी नदी में. ठीक अबकी बार की तरह 1 अणे मार्ग पर डिनर आयोजित था. तब नीतीश कुमार ने डिनर कैंसिल कर दिया था. यही नहीं, गुजरात सीएम का दिया हुआ 5 करोड़ रुपयों का रिलीफ फंड चेक भी वापस कर दिया था.
नीतीश कुमार खुद को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से कतई कम नहीं मानते थे. जहां 2010 से ही मोदी गुजरात मॉडल के दम पर खुद को विकास पुरुष साबित करने में लगे थे, नीतीश भी बिहार मॉडल के नाम पर विकास पुरुष ही बन रहे थे. पीएम पद की आकांक्षा दोनों लोगों के मन में थी.
2005 का बिहार चुनाव
हालांकि नीतीश पहले से ही भड़के हुए थे. 2005 में भी चुनाव के दौरान उन्होंने नरेंद्र मोदी को अपने पक्ष में प्रचार करने से मना कर दिया था. बार-बार कहते कि अटल बिहारी वाजपेयी की मेहनत पर मोदी ने पानी फेर दिया है. फिर सीएम बनने के बाद नीतीश ने भागलपुर दंगों की फाइल भी खुलवाई और लोगों को सजा भी दिलवाई, जिनमें भाजपा से जुड़े कुछ लोग भी थे. इसके बाद भाजपा के साथ गठबंधन में थोड़ी दरार आने लगी थी.
2009 का लोकसभा चुनाव
तो 2009 के लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया जाना था. इसी संदर्भ में लुधियाना में एक बड़ी जनसभा रखी गई. एनडीए के सारे दल आ रहे थे. पर नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा नहीं करना चाहते थे. हालांकि अरुण जेटली के कहने पर वो चले गए. वहां मंच पर नीतीश थोड़े अनमने से बैठे थे, तभी नरेंद्र मोदी दूसरी तरफ से आए और उनका हाथ पकड़कर उठा दिया. नीतीश चौंक गए. पर मैदान में तालियां गूंज उठीं. बाद में नीतीश कुमार ने कई लोगों को लताड़ लगाई कि ये क्या तरीका है. ये तो प्रायोजित था. ऐसी राजनीति नहीं करता मैं. अगले दिन अखबारों में मोदी और नीतीश की हाथ लहराते हुए तस्वीर थी. नीतीश के गुस्से की सीमा नहीं थी.
फिर 2010 में जब बिहार में बाढ़ आई थी, नीतीश कुमार ने भाजपा के नेताओं को बिहार से जाने से पहले डिनर पर बुलाया, जिसकी चर्चा हम लोग ऊपर कर चुके हैं. सारी तैयारियां हो चुकी थीं, नीतीश ने खुद ही सब कुछ मॉनीटर किया था. डिनर के एक दिन पहले सुबह के अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपे थे, जिनमें 5 करोड़ रुपए रिलीफ फंड में देने के लिए नरेंद्र मोदी को धन्यवाद ज्ञापित किया गया था. इसमें नीतीश और मोदी की हाथ पकड़े तस्वीर भी थी. नीतीश कुमार ने सारी तैयारियां रुकवा दीं और डिनर कैंसिल कर दिया. मुख्यमंत्री आवास पर टेंट लगाकर पकवान बन रहे थे, नीतीश कुमार ने टेंट तक उखड़वा दिया. उनकी नजर में मोदी का ये बेहद भद्दा तरीका था प्रचार पाने का. अगले दिन अपनी स्पीच में नरेंद्र मोदी ने ये भी कह दिया था कि बिहार के गड्ढे से निकलकर आप गुजरात आएं और देखें कि कितना धनी बना दिया गया है गुजरात को. नीतीश कुमार के लिए ये भी आघात जैसा था.
तब नीतीश कुमार ने अपना बेहद मशहूर डायलॉग मारा था: बिहार में एक ही मोदी काफी है. ये सुशील मोदी के लिए कहा गया था.
इसके बाद नीतीश के लिए नरेंद्र मोदी का नाम थर्ड पार्टी हो गया था
2010 की इस घटना के बाद माहौल कुछ ऐसा बना था कि नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी का नाम भी नहीं लेते थे. उनको थर्ड पार्टी कहते थे. कहते कि एनडीए के साथ कोई दिक्कत नहीं थी, पर थर्ड पार्टी के हस्तक्षेप की वजह से अलग होना पड़ा.
नरेंद्र मोदी ने उस वक्त कहा था कि नीतीश कुमार उनको अछूत मानकर व्यवहार कर रहे हैं.
इसके बाद 2012 में एक रैली में नीतीश कुमार ने देखा कि उनके ही मंच के नीचे नरेंद्र मोदी के पोस्टर लगे हुए हैं. उन पर लिखा था: देश का नेता कैसा हो? नरेंद्र मोदी जैसा हो. यूपी-बिहार में ये बहुत कॉमन नारा है. किसी छुटभैये के लिए भी ये लिख दिया जाता है. पर नीतीश कुमार इस बात से भड़क गए. भड़के तो वो पहले से ही थे.
पर कालांतर में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और बाकी लोग मुख्यमंत्री ही रहे. इस बीच नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़कर विपक्ष का झंडा बुलंद करना शुरू कर दिया. अब ऐसा माना जाने लगा कि नीतीश कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के नेता हो सकते हैं. पर 2016 के बाद नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच रिश्ते बदलने लगे. नीतीश स्पेशल पैकेज को लेकर अगस्त 2016 में नरेंद्र मोदी से मिले. इसके तुरंत बाद उन्होंने नमामि गंगे प्रोग्राम की बड़ाई की.
हालांकि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों लोगों के बीच कुछ इस तरह की बातें भी हुई थीं:
नरेंद्र मोदी: इनके डीएनए में ही कुछ गड़बड़ है.
नीतीश कुमार: मैं स्वतंत्रता सेनानी का बेटा हूं. मुझे सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है.नरेंद्र मोदी: बिहार में जंगलराज है.
नीतीश कुमार: 2002 में क्या हुआ था गुजरात में? मंगलराज था ये?
पर सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के बाद कई डिनर लंच हो गए
फिर अक्टूबर 2016 में जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों पर सर्जिकल स्ट्राइक किया तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने भाजपा को घेर लिया था. पर नीतीश कुमार ने इसकी तारीफ की थी. फिर जब सारे लोग नोटबंदी को लेकर पीएम पर आरोप लगा रहे थे, नीतीश कुमार ने इसकी भी तारीफ कर दी थी. जनवरी 2017 में पटना साहिब गुरुद्वारा में प्रकाश पर्व के मौके पर दोनों लोग हंसी-मजाक भी करते दिखे थे. दोनों लोग केसरिया पगड़ी पहने हुए थे. इनके साथ रामविलास पासवान भी इसी पगड़ी में थे. 2002 गुजरात दंगों के वक्त रामविलास पासवान ने एनडीए छोड़ दिया था. हालांकि 2014 में वो एनडीए के साथ आ गए.
तो लंच और डिनर की बात में जब नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी को छोड़ मोदी का डिनर कबूल किया, तब राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा था कि नीतीश को पीएम का लंच ही ज्यादा स्वादिष्ट लगता है.
फिर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जब विपक्ष एकजुट हो रहा था, तब नीतीश कुमार ने पीएम द्वारा आयोजित प्रणव मुखर्जी के विदाई समारोह में भी डिनर किया. हालांकि नीतीश कुमार ही पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने विपक्ष को एकजुट होकर राष्ट्रपति कैंडिडेट चुनने को कहा था.
इसके पहले मॉरीशस के पीएम प्रविंद जगन्नाथ के स्वागत में नरेंद्र मोदी ने लंच रखा था जिसमें नीतीश कुमार भी आए थे. इसके लिए उन्होंने सोनिया गांधी का लंच ठुकरा दिया था. उस वक्त मोदी से नीतीश कुमार की नजदीकियां बढ़ रही थीं.
तो फिलहाल तो यही लग रहा है कि लंच का मतलब है दोस्ती बढ़ रही है. डिनर हो तो थोड़ा सोचना पड़ेगा.