उस बच्ची के वीडियो ने तो हंगामा काट दिया भाईसाब. पहले तो सब देखकर खी खी खी खी कर रहे थे. लेकिन विराट कोहली ने जब कुछ गरम सा लिख दिया तो सब ठंडे पड़ गए. सबको अपने हंसे पर गिल्ट होने लगा. लेकिन फिर भी कुछ लोग कतई ढीठ निकले. उनका डायलॉग था “अरे बच्चे ऐसे ही होते हैं, सख्ती करनी पड़ती है.”
खैर अब उस बच्ची और उसके खानदान का पता लग गया है. बच्ची का नाम हया है. बॉलीवुड की सिंगर जोड़ी तोशी और शरीब साबरी की भांजी है. तोशी साबरी भी पर्याप्त गुस्साई हुई हैं जिस तरह से उनकी बहन को बदनाम किया जा रहा है. कि उनको बच्चे पालने का शौक नहीं है. तोशी का कहना है कि “कोई विराट या शिखर हमारे बारे में नहीं जानते. हमारा बच्चा कैसा है वो हमको पता है. उसका नेचर ऐसा है. वो जिद्दी और सबकी लाडली है. उसे छोड़ देंगे तो पढ़ाई नहीं कर पाएगी.”
तो प्यारे पैरेंट्स
पढ़ाई और मार का कनेक्शन क्या है, कभी समझ नहीं आया. पढ़ाई न होने की वजह से मार पड़ती है, मार पड़ने से पढ़ाई अच्छी होती है, मार एग्जाम में अच्छे नंबर दिलाती है, मार अपनी खुन्नस निकालने का जरिया है, इसलिए मारते हैं कि हमको भी बचपन में मारा गया, या बिना किसी वजह पीट देते हैं, अभी तक कुछ क्लियर नहीं हुआ. हो सकता है बिना मार के पढ़ाई कंप्लीट ही न होती हो. जैसे बिना हाजमोला के खाना कंप्लीट नहीं होता. मार और पढ़ाई का रिश्ता जायज है कि नाजायज, ये भी नहीं पता.
हमारे स्कूल में एक रोहित सिंह (बदला हुआ नाम) पढ़ते थे. पढ़ाई में लीचड़ थे तो सारी उम्र घर वालों से लेकर टीचर्स तक की नजर में चढ़े रहे. उनका पढ़ाई से पहले मार से सामना हो गया था. इसलिए मार वाला ग्राफ बढ़ता गया, पढ़ाई वाला गिरता गया. पहले उनको घर से स्कूल जाने के लिए मार पड़ती थी. स्कूल पहुंचते तो टीचर सबसे पहले उनको ही खड़ा करते. क्योंकि उनको पता था कि घरैतिन ने पराठा नहीं बनाया तो गुस्सा किस पर उतारना है. रोहित बेचारे फोकट में पिट जाते. और पिटाई का ये दौर लगभग हर क्लास में रिपीट होता. जिस दिन वो मार से बच जाते, वो दिन उनके लिए दशहरे जैसा होता था. स्कूल और घर दोनों कुंआ और खाई हो गए थे. रोहित ने बीच का रास्ता निकाला. वो घर से निकलते थे स्कूल के लिए, रास्ते में कभी खेतों में तो कभी पुल के नीचे छिप जाते थे. शाम को बच्चों के साथ वापस आते थे. इस तरह उनकी पढ़ाई कंप्लीट हुई, आजकल ईंट भट्ठा चला रहे हैं.
एक और बालक अजय सिंह (बदला हुआ नाम) पढ़ने में शुरुआत से तेज था. उसके पापा उन पापाओं में नहीं थे जो स्कूल आकर मास्साब से कहते हैं “इसको थोड़ा टाइट करिए.” उल्टे एक दिन प्रिंसिपल साहब ने ‘टाइट’ कर दिया था तो उनको खूब खरी खोंटी सुनाई. प्रिंसिपल साहब को पढ़ा दिया कि पढ़ाया कैसे जाता है. वो लड़का हर काम में अव्वल था. क्योंकि उसे न टीचर्स से डर लगा न घर वालों से. इसलिए स्कूल बंक करने की जरूरत नहीं हुई. आगे ही आगे बढ़ता गया. सबकी पढ़ाई एक ही जैसे होती थी लेकिन वो लड़का एयरफोर्स में पायलट बन गया है. ये कहानी नहीं है. फेसबुक पर आशुतोष उज्ज्वल नाम के लड़के को खोज के मैसेज करना. फिल्टर्ड में भी जाएगा तो जवाब जरूर आएगा. वो तुमको इन महानुभावों का पता दे देगा.
अगर बच्चा पढ़ने से चिढ़ता है तो उसकी रुचि से ज्यादा आपमें रुचि की कमी है. आप उसे पढ़ाने में बेगार सी टालते हैं. आपके पढ़ाने का तरीका इंटरेस्टिंग नहीं उबाऊ है. उसके ऊपर आपका रोज का टॉर्चर बढ़ते जाना बच्चे को पढ़ाई से दूर करता है. प्लीज ये मत कहें कि हमने मार खाई है, सब खाते हैं, मार खाने से ही पढ़ाई आती है, तुम अपने बच्चों को पढ़ाना तो बताना. सबका ठेका मत लो, अपने घर से शुरू करो. पढ़ाते वक्त फोन दूर रखकर देखो. फायदा मिलेगा. अगर आपके पास गारंटी है कि पीटने से बच्चा लाट गवन्नर बन जाएगा तो कोई बात नहीं.
साभार: द लल्लनटॉप