कांग्रेस मुक्त भारत के अपने मिशन को भाजपा एक और कदम बढ़ाने के मूड में है. बात हो रही है गुजरात की, जहां 20 साल बाद राज्यसभा चुनाव का मौका आया है. ऐसे में बीजेपी कांग्रेस को पटखनी देने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है. वहीं, कांग्रेस भी इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्र मान रही है क्योंकि दांव पर है अहमद पटेल की दावेदारी. वो अहमद पटेल जो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के एक दशक से ज्यादा वक्त से राजनीति क सलाहकार हैं और कांग्रेस के पावर सेंटर माने जाते हैं. इस बीच चुनाव आयोग के एक आदेश ने गुजरात कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. आदेश है कि गुजरात राज्यसभा चुनाव में वोटर नोटा (NOTA- None of the above) का उपयोग कर सकते हैं.
NOTA से क्यों परेशान है कांग्रेस?
1996 के बाद पहली बार गुजरात में राज्यसभा चुनाव कराने की नौबत आई है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार तीन सीटों के लिए चार प्रत्याशी मैदान में हैं. यह नौबत नंबर गेम की वजह से आई है. दरअसल शंकरसिंह वाघेला के पार्टी छोड़ने के तुरंत बाद ही कांग्रेस के छह विधायकों ने भी इस्तीफ़ा सौंप दिया. इससे 182 सदस्यीय विधानसभा में विधायकों की संख्या घट कर 176 हो गई है. मतलब 8 अगस्त को होने वाले चुनाव में राज्यसभा पहुंचने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 44 वोटों की जरूरत होगी. चुनावी मैदान में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी और कांग्रेस के पूर्व मुख्य सचेतक बलवंत सिंह राजपूत शामिल हैं. कांग्रेस का दावा है कि उसके पास 51 वोट हैं.
गुजरात कांग्रेस ने शंकरसिंह वाघेला सहित 51 विधायकों को पार्टी के उम्मीदवार पटेल को मत देने का व्हिप जारी किया है.व्हिप का मतलब वो आदेश जिसे मानना ही होगा. नहीं तो पार्टी सदस्यता जाएगी. गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी और पूर्व अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया ने कहा है कि पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने वाले छह साल के लिए अयोग्य घोषित हो जाएंगे. कांग्रेस के नए चीफ विप शैलेष पवार ने कहा, ‘कांग्रेस विधायक केवल पार्टी कैंडिडेट अहमद पटेल के लिए वोट करेंगे. बीजेपी झूठा प्रचार फैला रही है. हमने विधायकों को राज्यसभा के चुनाव में क्या करना है, इसके बारे में सचेत किया, इसलिए उन्हें यह बताने की कोई ज़रूरत नहीं है कि क्या नहीं करना चाहिए. हमने तकनीकी पहलुओं का अध्ययन किया है. हमने सभी विधायकों को यह भी बताया है कि NOTA का इस्तेमाल करना भी व्हिप का उल्लंघन माना जाएगा.’ कांग्रेस इतने जतन इसलिए कर रही है क्योंकि उसके 11 विधायक राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर चुके हैं. इधर, भाजपा के मुख्य सचेतक पंकज पटेल ने भी यह कहके कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है कि विधायक NOTA का उपयोग कर सकते हैं. इसका उपयोग करने वाला अयोग्य नहीं होगा.
करो या मरो की लड़ाई
कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए ये करो या मरो की लड़ाई है. उसके लिए ये सीट जीतना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि मामला सीधे उनकी नेता सोनिया गांधी की साख से जुड़ा है. अगर अहमद पटेल यह चुनाव हारते हैं, तो ये संदेश जा सकता है कि गांधी परिवार की पार्टी पर पकड़ कमजोर हो रही है. यही कारण है कि कांग्रेस को अपने 44 वफादार विधायकों को बेंगलुरू के एक रिजॉर्ट में ठहराना पड़ा. इधर इस बार अमित शाह ने सीधा सोनिया गांधी को ललकारा है. यही वजह है कि बीजेपी कांग्रेस को हराने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती. पार्टी यह चुनाव जीतकर एक तरफ जहां अपने कांग्रेस मुक्त भारत अभियान को बढ़ाना चाहेगी, वहीं यह जीत उसके लिए इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी माहौल बनाने का काम करेगी.
राज्यसभा में कांग्रेस का हंगामा
आदेश सुनकर कांग्रेस मंगलवार को राज्यसभा में फैल गई और खूब बवाल काटा. कार्यवाही शुरू होते ही कांग्रेस के नेता आनंद शर्मा ने मामला उठाते हुए कहा कि संविधान में संशोधन या चुनाव आयोग के नियम के बगैर नोटा का विकल्प लागू किया गया. इस पर सभापति हामिद अंसारी ने मामला चुनाव आयोग के सामने रखने का सुझाव दिया. लेकिन विपक्ष ने इसे लेकर हंगामा जारी रखा.
जवाब देते हुए सदन के नेता वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नोटा का प्रावधान किया गया. इस पर शर्मा ने कहा कि उपराष्ट्रपति चुनाव में भी नोटा का विकल्प होना चाहिए. नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने पूछा कि क्या गुजरात के लिए संविधान अलग है। कांग्रेस सदस्यों का विरोध जारी रहने पर सदन की कार्यवाही दो बार स्थगित करनी पड़ी।
चुनाव आयोग की टाइमिंग पर सवाल
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने भी चुनाव आयोग की टाइमिंग पर सवाल खड़े किए. उनका मानना है कि यह फैसला कानून की किताब में खरा नहीं बैठता. वे बोले ये नोटा हो रहा है कि पोटा हो रहा है. जो फैसला चुनाव आयोग ने लिया है मुझे लगता है कि वो कहीं ना कहीं गुजरात के लिए है. क्योंकि बंगाल में तृणमूल के पास इस वक्त संख्या है. चुनाव आयोग ने क्यों ऐसा फैसला लिया है? अगर आप कानून की किताब को देखो या कोई रूल देखो तो कोई ऐसी प्रक्रिया रूल में नहीं है ना ही रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट में है
उन्होंने कहा कि यह तो खुली वोटिंग है. इनडायरेक्ट वोटिंग है, इसमें कोई डायरेक्ट वोटिंग नहीं है इसमें तो आप अपनी प्रेफरेंस देंगे. तो यह फैसला कहां से आ गया? साथ ही उन्होंने कहा कि मैं कोई आरोप नहीं लगाना चाहता. अगर चुनाव आयोग ने फैसला लिया तो ज़रूर सोच-समझ कर लिया है. लेकिन इसकी टाइमिंग ठीक नहीं है.
इस बीच अहमदाबाद में अहमद पटेल ने कहा कि कि पहले जून में तय राज्यसभा चुनाव को स्थगित कर आगे बढ़ाया गया। अब चुनाव की अधिसूचना के बाद नोटा को मंजूरी दी गई।