आज़ादी की ख़ुशी मनाई जा रही है. लोगों ने अपनी डीपी को तिरंगा कर डाला है. व्हाट्सएप सुबह से टुन-टुन किए पड़ा है. शाम होने को है और मैसेज बंद नहीं हो रहे. कई बच्चे आज भी धुली-धुली व्हाइट ड्रेस पहिन कर सुबह स्कूल पहुंच गए होंगे दो लड्डू लेने. हर कोई अपने अंदाज़ में आज़ादी के जश्न में डूबा है. लेकिन हिमाचल का लाहौल स्पीति कुछ अलग ही ढंग से आज़ादी मनाता है
हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति में केलौंग एक कबीलाई इलाका है. हर 15 अगस्त को यहां एक मेला लगता है. मज़े की बात ये है कि इस मेले में प्यार करने वाले लड़के-लड़कियों की मौज होती है. वो यूं कि यहां अपने मन का पार्टनर चुनने की आज़ादी मिलती है. ‘वीर ज़ारा’ का ‘लोहड़ी’ सीन याद आया न. कुछ वैसा ही मामला है मगर थोड़ा और दिलचस्प. मेले में प्यार करने वाले एक-दूसरे के साथ भाग जाते हैं और परिवार वालों को उनकी शादी माननी पड़ती है.
युवाओं को आती है शर्म
मेले की ये परंपरा बहुत पुरानी है. लेकिन समय के साथ-साथ और पढ़ाई-लिखाई का माहौल बनने के बाद युवा अब इससे कतराने लगे हैं. उन्हें भाग कर शादी करने में शर्म आने लगी है. लेकिन इसके बाद भी 14 से 16 अगस्त के बीच कुछ लड़के-लड़कियों के गायब होने की खबर आती है. हालांकि प्यार की ये सारी कहानियां हर बार शादी तक नहीं पहुंचती.
संभलकर उठाते हैं कदम
स्थानीय लोगों की मानें तो भागने का ये कदम बहुत सोच समझकर उठाया जाता है. क्योंकि अगर भागते वक़्त लड़का-लड़की पकड़े जाते हैं तो भीड़ लड़के को पीटती है और लड़की के मां-बाप को ये आज़ादी मिल जाती है कि वो शादी से इनकार कर दे.
पहले कुछ और होता था
करधान के मोहन लाल (78) कहते हैं कि पहले इस परंपरा को बेहद संजीदगी से निभाया जाता था. लेकिन फिर इसमें अपहरण के मामले सामने आने लगे. जब लड़की को जबरन उठाया जाने लगा. मगर फिर हालात सुधरे. और इस परंपरा को लड़कियों की रज़ामंदी मिल गई. इसके पीछे एक वजह शादी के खर्च से बचना भी था. मोहन लाल बताते हैं कि मेरे दो बेटों ने शादी के लिए यही तरीका अपनाया. मोहन मुस्कराते हुए बताते हैं कि जब हमने अपने बेटे को एक लड़की से शादी करने से मना कर दिया तो उसने यही तरीका अपनाया.
लड़कियों को मिली सहूलियत
इस परंपरा से लड़कियों को बहुत सहूलियत मिली. जब लड़की के मां-बाप उसके मनपसंद लड़के से शादी के लिए नहीं मानते तो उसके पास ये एक रास्ता होता है. अगर लड़की किसी लड़के के साथ मेले में भाग जाती है और अपने मायके के कपड़े पहन लेती है तो उसके मां-बाप को ये शादी माननी ही पड़ती है. उनके पास और कोई चारा नहीं बचता.
अंडरग्राउंड हो जाता है जोड़ा
मज़े की बात ये भी है कि भागने के बाद जोड़ा कुछ दिन के लिए अंडरग्राउंड हो जाता है. इस दौरान लड़के के मां-बाप शराब की सजी हुई बोतल लेकर लड़की के घर जाते हैं और उसके मां-बाप को मनाने की कोशिश करते हैं. उन्हें ये दिलासा देते हैं कि लड़की उनके घर में सुरक्षित रहेगी. जिस्पा की अंगमो (49) बताती हैं कि,
‘इन कबीलों में दहेज़ की प्रथा कभी नहीं रही. लड़के के घर वाले या मां-बाप लड़की को बतौर सिक्योरिटी कुछ रुपए देते हैं.’
एक परंपरा और भी है
लाहौल-स्पीति में शादी की एक और दिलचस्प परंपरा है. यहां जब दूल्हा किसी वजह से अपनी शादी में शामिल नहीं हो सकता तो उसकी बहन सेहरा बांध लेती है और सारे रिवाज़ निभाकर दुल्हन को ले आती है. सदियों पुरानी यह परंपरा लाहौल घाटी में आज भी निभाई जाती है. और तो और अगर बहन भी नहीं है तो कई बार दूल्हे के छोटे भाई भी दूल्हा बनकर अपनी भाभी को ब्याहने जाते हैं. सच में अपना देश रंगीला है. हर कोने में रंग ही रंग है.