“मैंने 2000 में डेब्यू किया था. तब मैं 20 साल का हूं. और ये एक बहुत लम्बा सफ़र रहा है. लेकिन ये सब कुछ काफी जल्दी होता हुआ लगा और कई बार काफी कुछ धुंधला सा लगता है. इन सालों में मैं बहुत बार फ़ेल हुआ और कई बार मैं सब कुछ छोड़कर खुद को मार देना चाहता था. कई बार मैंने सोचा कि मैं क्रिकेट छोड़कर 9 से 5 वाली नौकरी करने लगूं. लेकिन जब मैं अपनी पुरानी तकलीफ़ों के बारे में सोचता हूं तो मुझे आज की सक्सेस ज़्यादा मीठी मालूम देती है.”
एक क्रिकेटर 10,000 फर्स्ट क्लास रन बनाता है. ज़ाहिर सी बात है कि ऐसे मौके पर उसे अपने बुरे दिन ज़रूर याद आये होंगे. खुद को मार डालने के बारे में सोचना, सब कुछ छोड़कर 9 से 5 की नौकरी के बारे में विचार करने लगना. हालांकि इन दोनों में कोई ख़ास अंतर नहीं होता. 20 साल की उमर में डेब्यू करने वाला ये लड़का चेन्नई सुपर किंग्स की रीढ़ बना. धोनी चेहरा थे. चेहरे की चमक के लिए रीढ़ की मज़बूती ज़रूरी होती है. लेकिन फिर भी डोमेस्टिक का पकचिकपक राजा बाबू इंडिया के लिए दीवाना मस्ताना नहीं बन सका. इंडिया के लिए 2 टेस्ट मैच, 7 वन डे और 1 टी-20. टी-20 करियर में 2300 रन बनाने के बावजूद बद्रीनाथ कभी भी इतनी मजबूत दावेदारी पेश नहीं कर सका कि टीम में उसकी कमी को जस्टिफाई ही न किया जा सके. बद्रीनाथ एक मिडल क्लास फ़ैमिली का वो बेटा मालूम देता है जो अपने भाई बहनों के लिए खुद को रगड़ता रहता है लेकिन उसकी खुद की कुंडली में ज़िन्दगी के मज़े लेने का योग नहीं दिखाई देता.
स्कूल के ही दिनों से क्रिकेट में नाम कमाने वाला बद्रीनाथ सचिन तेंदुलकर का फैन था. 90 में पैदा हुआ हिन्दुस्तानी लड़का सचिन का फैन होना अपनी किस्मत में लिखवाकर आता था. इसलिए बद्रीनाथ भी कुछ अलग नहीं कर रहे थे. उनकी पढ़ाई उसी पद्मा शेषाद्री बाल भवन स्कूल में हुई जहां से सुन्दर पिचाई, सुरैया और राम चरण तेजा पढ़े हैं.
2000 में बद्रीनाथ ने डेब्यू किया और अपने दूसरे ही रणजी मैच में चेन्नई में सेंचुरी मारी. सामने करारी गेंदबाजी वाली कर्नाटक की टीम खेल रही थी. अपने पहले मैच में बद्रीनाथ ने गोआ के खिलाफ़ बुरा प्रदर्शन किया था. लेकिन इसके बावजूद उन्हें कर्नाटक के खिलाफ़ ओपेनिंग पर भेजा गया. रजत भाटिया के साथ ओपेनिंग करने उतरे बद्रीनाथ ने फिर जो इनिंग्स खेली, उन्हें ये विश्वास हो गया कि वो इस लेवल को बिलॉन्ग करते हैं. उस मैच में चेन्नई की तरफ़ से हेमंग बदानी और रॉबिन सिंह ने भी सेंचुरी मारी.
इस मैच का एक मज़ेदार किस्सा बद्रीनाथ खुद सुनाते हैं. उन्होंने बताया कि उस मैच में जब वो 40 रन के आस पास थे तो एक लेगस्पिनर को बैकफ़ुट पर खेलने के चक्कर में उनका पैर स्टम्प पर लग गया. ये वो वक़्त था जब रणजी मैच की ऐसी कवरेज नहीं होती थी कि अम्पायर रीप्ले देख सके. वहां खड़े कीपर ने अपील शुरू की जिसमें सभी कर्नाटक के प्लेयर्स जुड़ गए. अम्पायर ने कहा कि चूंकि उन्होंने पैर लगते नहीं देखा है इसलिए वो यकीन से नहीं कह सकते कि गिल्ली बद्रीनाथ का पैर लगने के बाद ही गिरी है. उन्हें नॉट आउट बताया गया. इसके बाद बद्रीनाथ ने सेंचुरी मारी.
2004 के सीज़न में साउथ ज़ोन के लिए खेलते हुए इंग्लैंड ए की टीम को हराया. इंग्लैंड ए की टीम में केविन पीटरसन, एड स्मिथ, माइकल लम्ब, मैत प्रायर, ग्राहम नेपियर, जेम्स ट्रेडवेल, साजिद महमूद और साइमन जोन्स थे. बद्रीनाथ ने उस मैच में वेणुगोपाल राव के साथ 212 रन की पार्टनरशिप की. बद्रीनाथ ने हंड्रेड और वेणुगोपाल राव ने डबल हंड्रेड मारे.
साल 2009. तमिलनाडु वर्सेज़ मुंबई. रणजी मैच. सुबह 9 बजे पहली गेंद फेंकी गई और 11 बजे तक तमिलनाडु के 5 विकेट गिर चुके थे. लेकिन तमिलनाडु ने 501 रन बनाये. बद्रीनाथ बैटिंग करने उतरा और खेलता ही गया. डबल सेंचुरी. बद्रीनाथ और चंद्रशेखर गणपति के बीच 329 रन की पार्टनरशिप हुई. मुंबई की टीम बुरी हालत में भी एक सॉलिड टीम रहती है. ऊपर से जब बैटिंग में वसीम जाफ़र, अजिंक्य रहाने, अभिषेक नायर और स्पिन डिपार्टमेंट में रमेश पोवार मौजूद हों तो बड़ी टक्कर देना मुश्किल होता है. 50 रन पर 5 विकेट खोने के बाद भी तमिलनाडु ने वो मैच पहली इनिंग्स की बढ़त के नाम पर जीता. 250 रन बद्रीनाथ का सबसे बड़ा स्कोर है.
इतना सब कुछ करने के बावजूद इस खिलाड़ी के मन में सब कुछ छोड़ देने का ख़याल चल रहा था. खुद को मार देने का ख़याल. खेल छोड़कर 9 से 5 की नौकरी का ख़याल. वजह – इंडिया की टीम में जगह न मिलना. बद्रीनाथ केथ सबसे बड़ी समस्या ये थी कि वो उस वक़्त दावेदारी पेश कर रहे थे जब टीम में सचिन, सहवाग, द्रविड़, गांगुली और लक्ष्मण सभी मौजूद थे. 2012 में लक्ष्मण ने सीरीज़ में चुने जाने के बाद जब अपना रिटायरमेंट अनाउंस किया, आनन फानन में बद्रीनाथ को उनकी जगह बुलाया गया. ये बुलावा 2 साल बाद आया था. अब तक इसकी उम्र भी 31 साल हो चुकी थी. इससे पहले बद्रीनाथ के खाते में 3 टेस्ट इनिंग्स में 56 रन का अधिकतम स्कोर दर्ज था. साउथ अफ़्रीका के खिलाफ़ आये वो 56 रन तब बनाये गए थे जब टीम का कोई भी और खिलाड़ी दहाई का आंकड़ा पाने में असफ़ल था. मज़े की बात ये है कि इससे ठीक 4 महीने पहले जब द्रविड़ रिटायर हुए थे तो बद्रीनाथ का नाम आने पर बीसीसीआई के अफ़सर ने बताया था कि बद्रीनाथ 30 पार कर चुके हैं ऐसे में उन्हें करियर शुरुआत करने को कहना ठीक नहीं होगा. ये बताता है कि अधिकारियों के मन में बद्रीनाथ को टीम में रखने से ज़्यादा उसे टीम से बाहर रखने के तर्क ज़्यादा मौजूद थे.
द्रविड़ के इंजर्ड होने पर वो टीम में आता है. एक अच्छी इनिंग्स खेलता है और तब तक द्रविड़ ठीक हो जाते हैं तो वो चला जाता है. 12 महीने बाद उसे वेस्ट इंडीज़ भेजा जाता है जहां वो अच्छा नहीं कर पाता है लेकिन रोहित शर्मा नाम का एक पतला सा लड़का खिल जाता है. बद्रीनाथ को फिर से बाय-बाय कह दिया जाता है. अगली बार जब जगह खाली होती है तो सुधिजन को उसकी उम्र कुछ ज़्यादा लगती है और 2 टेस्ट मैच को ‘काफी मौका दिया गया है’ समझ लिया जाता है.
चेन्नई सुपर किंग्स का गो-टु-मैन होने के बावजूद उसे इंडिया के लिए टी-20 टीम में एक दफ़ा खेलने को मिलता है और फिर उसकी ओर देखा तक नहीं जाता. चेन्नई जो उसकी कितनी ही इनिंग्स की क़र्ज़दार है, 2015 में उसे खरीदती ही नहीं है. 6 साल चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेलने के बाद उसे सातवें आईपीएल में एक भी टीम नहीं खरीदती है. तमिलनाडु अब उसे रास नहीं आ रहा था. उसे लगता था कि स्टेट क्रिकेट बोर्ड बहुत आसानी से किसी को भी स्टेट क्रिकेट खेलने की कैप दे देता है. वो विदर्भ शिफ्ट हो जाता है. कप्तानी संभालता है और वहां के छोटे क्रिकेट को बड़ा करने की कोशिश में लगा है.
क्रिकेट खेलने के दो तरीके हैं. न हारने के लिए खेलना और जीतने के लिए खेलना. बद्रीनाथ जीतने के लिए खेलता आया लेकिन, बद्रीनाथ के साथ ये बड़ा सा ‘लेकिन’ जुड़ा रहा. और ये लेकिन ही बद्रीनाथ की क्रिकेट यात्रा का निचोड़ मालूम देता है.
साभार: द लल्लनटॉप