जनवरी 2017: मेघालय. 14 साल की एक बच्ची का रेप हुआ. आरोप लगा एक निर्दलीय विधायक पर. यानी ऐसे आदमी पर, जिसे जनता ने अपने लिए नियम-कानून बनाने के लिए चुना था.
मार्च 2017: दिल्ली, होली का समय. गोविंदपुरी इलाके से एक नाबालिग लड़के को उठाया गया, रेप कर रात 10 बजे उसके घर के पास छोड़ दिया गया. लड़की रेपिस्ट की पहचान नहीं कर पाई क्योंकि होली का मौका था.
मार्च 2017: पिछले साल केरल में हुए नाबालिग लड़की के रेप का पर्दाफाश हुआ. जिसपर आरोप लगा, वो एक पादरी था. जिन्होंने उसे पनाह दी, वो चाइल्ड वेलफेयर यानी बच्चों की बेहतरी के लिए बनी एक संस्था में थे.
जून 2017: पूर्वी दिल्ली में एक आदमी ने 4 साल की बच्ची का रेप करने की कोशिश की. लोगों ने उसे पीट-पीटकर मार डाला.
जुलाई 2017: शिमला के जंगलों में एक लड़की की लाश मिली, नग्न अवस्था में. लड़की को रेप करने के पहले, काटा, नोचा, पीटा गया था. गिरफ्तारियां हुईं, मगर लड़की के पिता ने पुलिस को बताया कि मामले को ढंकने के लिए गलत लोगों को गिरफ्तार किया गया.
अगस्त 2017: किस तरह रेप के बाद महज 10 साल की एक लड़की प्रेगनेंट हो गई, इस खबर से अखबार भरे हुए हैं.
ये चंद केस हैं जो इस साल सामने आए हैं. सामने आए हैं, यानी अखबारों में छपे हैं. इससे 3 गुना ज्यादा केस दर्ज करवाए गए होंगे. उससे भी 3 गुना ज्यादा केस हुए होंगे. इनकी गिनती सिर्फ इसलिए की जा रही है, कि हम जान सकें कि कितनी लड़कियां हैं जो आज महज आंकड़े बन गई हैं. अपने शरीर पर किसी पुरुष के सख्त हाथ और अपने नन्हे शरीर में किसी पुरुष को घुसते हुए बर्दाश्त करने का ट्रॉमा कुछ अंकों में सिमट गया है. हजारों में एकाध लड़कियां और शामिल हो गई हैं.
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‘चले जाओ यहां से. मैं एक गरीब आदमी हूं… तुम लोगों के लिए ये बिजनेस हो गया है. तुमसे कोई सहानुभूति नहीं चाहिए. कुछ भी नहीं. तुमने इसे पैसे कमाने का जरिया बना रखा है. ये मेरी निजी ज़िन्दगी है. हमें अकेला छोड़ दो… मैंने बीस साल लगा दिए इज्जत कमाने में. सब एक झटके में ख़त्म हो गया. निकल जाओ वरना पुलिस को बुलाऊंगा.’
द वीक मैगजीन के लेटेस्ट अंक में नमिता कोहली लिखा, जब वो पहली बार उस लड़की के घर पहुंची, जो फिलहाल 10 साल की उम्र में गर्भवती हो गई है. नमिता ने उस बच्ची, उसकी बहन और मां-बाप के साथ समय बिताया. रेप के बाद इस बच्ची का गर्भ ठहर गया था. ये वही बच्ची है जिसको कोर्ट एबॉर्शन की इजाज़त नहीं दे रहा है क्योंकि भ्रूण 20 हफ्ते से ज्यादा बड़ा है. हालांकि स्पेशल केसेज में कोर्ट को छूट होती है कि वो तय करे उसे एबॉर्शन की इजाज़त देनी है या नहीं. फ़िलहाल कोर्ट ने चंडीगढ़ के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्टल से एक कमिटी बनाने को कहा है जो बच्ची की सेहत की जांच करेगी.
सुनकर लगता है कि 10 साल की उम्र में प्रेगनेंट होना मुमकिन नहीं. मगर असलियत में जिस भी लड़की को पीरियड होने लगते हैं वो कोख में बच्चा पाल सकती है. ये बात अलग है कि उका शरीर अपनी जन्म देने जितना विकसित नहीं हुआ होता. इसलिए 10 साल की पिंकी बच्चा पाल तो सकती है, मगर डिलीवर नहीं कर सकती. आज नहीं तो कल उसका ऑपरेशन करना ही होगा. फिर भी कोर्ट एबॉर्शन के लिए ऑपरेशन करने के बजाय डिलीवरी के लिए ऑपरेशन के पक्ष में लग रहा है. डॉक्टर कहते हैं कि टीनएज प्रेग्नेंसी के बाद पैदा हुए बच्चे अक्सर जीवित नहीं बचते. फिर भी कोर्ट चाहता है कि 10 साल की ये बच्ची प्रेग्नेंसी से जुड़ी हर शारीरिक और मानसिक परेशानी झेले.
ये बात सही है कि 20 हफ़्तों से ज्यादा उम्र का भ्रूण काफी विकसित हो चुका होता है. एक नन्ही सी जान को ख़त्म करना किसी को अच्छा नहीं लगेगा. ये भी सच है कि भ्रूण के विकसित होने के बाद अधिकतर एबॉर्शन के केस लिंग पर आधारित होते हैं. यानी ये वो लोग होते हैं, जो बेटियां नहीं चाहते. लेकिन पिंकी का केस ही अलग है. उसे 4 महीनों तक पता ही नहीं था वो प्रेगनेंट है. उसे आज भी नहीं पता वो प्रेगनेंट है. जाहिर सी बात है, आपकी 10 साल की बेटी को अगर पीरियड न आएं तो आप ये नहीं सोचेंगे कि वो गर्भवती हो गई है. आप सोचेंगे कि इस उम्र में अनियमित पीरियड होना आम है, इसलिए आपकी बेटी को ऐसा हो रहा है. उसका पेट सूजेगा तो आपको लगेगा कि उसे कोई पेट की तकलीफ है.
पिंकी के दिल में छेद था. कुछ समय पहले उसके दिल की सर्जरी हुई थी. इसलिए कभी पिंकी को चक्कर या मितली आते भी तो घर वालों को लगता कि ये सर्जरी की वजह से आई कमजोरी है. मगर लगातार पीरियड मिस होने पर उसकी मां ने घर पर प्रेग्नेंसी टेस्ट किया. टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद शायद वो एक मां का फौलादी सीना ही था जो इसे झेल गया. मैं 25 की उम्र में अपने शरीर के अंदर किसी बच्चे को पालने के बारे में सोचती हूं तो सिहर उठती हूं. वो 10 साल की बच्ची थी. खुद ही बच्ची थी, बच्चा क्या पालेगी.
जिस आदमी ने बच्ची का रेप किया वो उसका मामा था. उसकी मां का दूर का भाई. इस घटना के बाद कोई अपने रिश्तेदारों पर कैसे विश्वास करेगा मुझे नहीं मालूम. हम जब छोटे थे तो जाने कितने ऐसे बच्चे से जो गांवों से शहर आकर चाचा-मामा के घर रुक पढ़ाई करते थे. वो यूं ही बड़े हुए हैं. वो आपके और हमारे पेरेंट्स भी हो सकते हैं. आप और हम भी हो सकते हैं. क्या हमें इस दुनिया में अपने ही रिश्तेदारों से डरना शुरू कर देना चाहिए?
नमिता लिखती हैं कि पड़ोसी ने बताया कि उसका मामा बड़ा ही शर्मीला इंसान था. जिन आंखों को वो ऊंची नहीं करता था, उन्हीं से उस बच्ची को हिंसक नजरों से देखता था, किसी को भरोसा नहीं होता. पिंकी ने पुलिस को बताया था कि मामा ने कहा था कि अगर किसी को बता दिया तो वो उसकी बहन का बुरा हाल कर देगा. हाय! बच्ची का दिल. जो अपनी बहन की सुरक्षा के लिए बलात्कार करवाती रही.
मामा भी गरीब परिवार से था. उसे ये भी नहीं मालूम था कि अचानक पता चलेगा लड़की प्रेग्नेंट है. इसलिए दो दिन के भीतर पकड़ा गया. घरवाले कहते हैं उन्हें उस मामा के लिए फांसी के अलावा कुछ नहीं चाहिए.
बच्ची के स्कूल की प्रिंसिपल का कहना है कि उन्हें भरोसा ही नहीं होता कि उनकी स्कूल की बच्ची के साथ ऐसा हो सकता है. लोग अब भी बच्ची के दर्द से ज्यादा उसकी पहचान का व्यक्ति होने का डर महसूस कर रहे हैं. कैसे जी पाएंगे वो इस सच के साथ कि एक जूठी हो चुकी लड़की के जानने वाले हैं वो.
(पिंकी बदला हुआ नाम है.)
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मां होने के बड़े अर्थ हैं हमारे यहां. किसी ने मां को देवी माना है, किसी ने साक्षात ईश्वर. धरती और देश की इज्जत करने के लिए हम उन्हें मां कहते हैं. ये सबसे बड़ा दर्जा है जो किसी को दिया जा सकता है. किसी को बेइज्जत भी करना हो तो उसे मां की गाली देते हैं. क्योंकि हमें मालूम है कि वो गाली ही हमें सबसे बुरी लगेगी, क्योंकि उसमें मां की बात है.
जो औरतें अच्छी माएं नहीं बन पातीं, उन्हें बुरी औरतें कहते हैं. जाने इस बच्ची को क्या कहेंगे, जिसे मालूम ही नहीं कि व मां बनने वाली है. हो सकता है वो इससे बच जाती, लेकिन उसके गर्भ का पता नहीं चला. और जब चल गया, तो कोर्ट ने ये सुनिश्चित किया कि मामला इतना टलता रहे कि प्रेग्नेंसी बढ़ती रही. एक बच्चा, जिसका होना न ही मानसिक रूप से बच्ची के लिए ठीक है, न ही शारीरिक, उसके पेट में जबरन पलवाया जा रहा है. सरकार का कहना है कि वो इस लड़की की जिम्मेदारी भी लेंगे और होने वाले बच्चे की भी. लेकिन क्या इतना भर कर देने वो बच्ची भूल जाएगी जो उसके साथ हुआ है?
कोर्ट के सेफ खेल ने के चलते खुद मां का पल्लू पकड़ सोने वाली बच्ची एक बच्चे को तबतक पालेगी, जबतक वो उसे सीजेरियन जन्म न दे दे. कोर्ट चलता रहेगा. हम अखबार चाटते रहेंगे.