साक्षी महाराज. बीजेपी के सांसद. भाजपा की उन मिसाइलों में से एक जिन पर पार्टी का कोई कंट्रोल नहीं दिखाई देता. खुद ब खुद चल जाती है. याद नहीं आता आख़िरी बार कब इस शख्स ने कोई ऐसी बात कही हो जो सेंसिबल हो, बेतुकी न हो. एक से बढ़कर एक ऊलजलूल बयानों के लिए मशहूर साक्षी महाराज ने इस बार भी एक और मूर्खताभरी बात कह डाली है.
पंचकुला कोर्ट ने बाबा राम रहीम को दोषी ठहराया. रेप के आरोप में. हरियाणा जलने लगा. उनके समर्थकों ने सड़क पर उतर कर भयानक उत्पात मचाया. दर्जनों लोग मारे गए. सैकड़ों घायल हैं. करोड़ों की राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया. राम रहीम का स्टेटस अब आरोपी नहीं रहा. अब वो कनविक्टेड क्रिमिनल है. कोर्ट ने लंबी चली सुनवाई के बाद उन्हें दोषी ठहराया है. ऐसे शख्स के बचाव में साक्षी महाराज उतर आए हैं.
कहते हैं,
“मैं न्यायपालिका का बेहद सम्मान करता हूं, पर मैं एक बात ज़रूर कहना चाहूंगा. यौन शोषण की शिकायत सिर्फ एक आदमी ने की है. करोड़ों लोग बाबा को सच्चा मान रहे हैं, भगवान मान रहे हैं. ऐसे में एक की बात तो सुनी जा रही है, लेकिन करोड़ों लोगों की कोर्ट क्यों नहीं सुन रही है?”
क्या मतलब हुआ इसका? कोर्ट तथ्यों पर फैसला देगा या इस बात को देखेगा कि किस पार्टी के पक्ष में कितने लोग हैं? कल कोई अंडरवर्ल्ड डॉन कोर्ट के बाहर अपने गुर्गों की फ़ौज खड़ी कर देगा, तो कोर्ट को उसे बाइज्ज़त बरी कर देना चाहिए? मूर्ख भीड़ की जाहिलियत से कोर्ट अपने फैसले पर फर्क क्यों पड़ने दे?
साक्षी महाराज राम रहीम को सीधा-सादा बताते हैं. आगे कहते हैं कि यौन शोषण के आरोप भारतीय संस्कृति की छवि को धूमिल करने की कोशिश हो सकती है. मने यौन शोषण से संस्कृति की छवि को कुछ नहीं होता, लेकिन उसका आरोप लगने से वो तुरंत कोमा में चली जाती है. साक्षी महाराज ने कर्नल पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का हवाला देते हुए कहा कि योजनाबद्ध तरीके से साधु-संन्यासी ही नहीं, भारतीय संस्कृति को बदनाम करने का षड़यंत्र हो रहा है. साक्षी महाराज को न जाने ये क्यों नहीं दिखता कि इन साधु-संन्यासियों की करतूतों से भारतीय संस्कृति को ज़्यादा नुकसान हो रहा है.
साक्षी महाराज कोर्ट को ऐसे मामलों में गंभीरता बरतने की नसीहत देते हैं. कहते हैं कि अगर ज़्यादा बड़ी घटनाएं होती हैं, तो उसके लिए डेरा के लोग नहीं न्यायालय ज़िम्मेदार होगा. इसका साफ़ मतलब तो यही हुआ कि राम रहीम के भक्तों की उग्र प्रतिक्रिया से डर कर कोर्ट को उसे छोड़ देना चाहिए था. ऐसा होने लगा तो न्यायपालिका एक मज़ाक बनकर रह जाएगी.
इस हिंसा को साक्षी महाराज जायज़ भी ठहरा रहे हैं. कहते हैं अस्मिता ख़तरे में है इसलिए हिंसा हो रही है. ऐसी अस्मिता का क्या करें महाराज जो आम आदमी की जान की ग्राहक बन जाए? हिंसा की वकालत किसी भी तरह सही नहीं ठहराई जा सकती. भले ही उस हिंसा के, उस उन्माद के समर्थन में लाखों की भीड़ हो. हम लोकतंत्र है. लॉ एंड ऑर्डर से चलने वाली व्यवस्था. कोई कबीलाई संस्कृति नहीं, जहां फैसले इंसाफ के लिए नहीं बाहुबल को देखकर किए जाते है
साभार: द लल्लनटॉप