पाकिस्तान इतिहास के मामले में हमेशा कमज़ोर रहा है. 1947 से पहले का सारा इतिहास भारत का इतिहास कहलाया जाने लगा. ऐसे में पाकिस्तान के हाथ कुछ न रहा. अपने हिसाब का इतिहास दर्ज करवाने की ज़िद में बेतुकी हरकतें भी की है पाकिस्तान ने. इसी चक्कर में मुस्लिम आक्रांता मुहम्मद बिन कासिम को पहले पाकिस्तानी का दर्जा दे रखा है. ऐसी ऊलजलूल हरकतें आम बात है वहां. अब बच्चों को भी ये बकवास परोसी जा रही है.
हाई स्कूल में पढ़ने वाले नोमान फज़ल को पता है कि कैसे ‘नमकहराम’ हिंदुओं ने पार्टीशन के वक़्त ख़ून की गंगा बहा दी थी. कैसे बंटवारे के वक़्त जो हजारों जानें गईं, उसके ज़िम्मेदार सिर्फ ‘हिंदू’ थे. उसे ये पता है क्योंकि ये उसकी इतिहास की किताबों में लिखा है.
‘हिंदू’ हत्यारे हैं
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की क्लास 5 की हिस्ट्री की किताब में ऐसा ही भयानक इतिहास परोसा जा रहा है. इस किताब में बच्चों को बताया जा रहा है कि हिंदू हत्यारे हैं, मुसलमानों का क़त्लेआम किया है उन्होंने. हिंदुओं ने उनकी संपत्तियां ज़ब्त की और उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर किया. उन्होंने मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाए, इसीलिए हमने पाकिस्तान बना लिया.
अब वहां के बच्चे इसी इतिहास को पढ़ कर भविष्य निर्माण करेंगे. अपने पड़ोसी मुल्क से नफरत करते रहेंगे. बचपन में ही ज़हर पिला दिया गया है. जो बड़े होते-होते नस-नस में फ़ैल जाएगा. सरहद के इस पार बच्चों को आज़ादी की लड़ाई के बारे में कुछ और ही पढाया जाता है. तथ्यात्मक. इधर के इतिहास में दुश्मन अंग्रेज़ है. उधर के इतिहास में भारत. उनके लिए 1947 में हासिल आज़ादी अंग्रेजों से कम, भारत से ज़्यादा थी.
अब वहां के बच्चे इसी इतिहास को पढ़ कर भविष्य निर्माण करेंगे. अपने पड़ोसी मुल्क से नफरत करते रहेंगे. बचपन में ही ज़हर पिला दिया गया है. जो बड़े होते-होते नस-नस में फ़ैल जाएगा. सरहद के इस पार बच्चों को आज़ादी की लड़ाई के बारे में कुछ और ही पढाया जाता है. तथ्यात्मक. इधर के इतिहास में दुश्मन अंग्रेज़ है. उधर के इतिहास में भारत. उनके लिए 1947 में हासिल आज़ादी अंग्रेजों से कम, भारत से ज़्यादा थी.
गांधी भी हैं नदारद
आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी का योगदान किसी हाल में इग्नोर नहीं किया जा सकता. जहां एक तरफ भारत के इतिहास में उनके काम को पूरी तवज्जो मिली है, वहां पाकिस्तान ने उनको गायब ही कर के रख दिया है. उनका उल् लेख नाममात्र है उन इतिहास की किताबों में. सब कुछ मुहम्मद अली जिन्ना को समर्पित कर रखा है.
जब तक ये बच्चे जवान होंगे इनके दिलों में ये बात गहरी पैठ चुकी होगी कि भारत इनका दुश्मन है. भारत ने उनपर ज़ुल्म ढाए हैं. इस कच्ची उम्र में जो दिमाग में लिख जाए, उसे बदलना आगे चल कर नामुमकिन हो जाता है.
विरोध भी करते हैं कुछ लोग
ऐसा नहीं है कि इसके खिलाफ़ वहां कोई बोल नहीं रहा है. कुछ लोग हैं जो सही इतिहास के आग्रही हैं. इस्लामाबाद के प्रोफ़ेसर तारिक़ रहमान कहते हैं कि इसके लिए फॉरेन पॉलिसी में बदलाव किए जाने की ज़रूरत है. लेकिन प्रशासन को इसे बदलने में कोई दिलचस्पी नहीं है. भारत विरोध पर ही तो उनका तामझाम टिका है.
जब कच्चे ज़हनों को झूठ परोस दिया जाए, तो भविष्य की नींव में खामी आना लाज़मी है. ये न सिर्फ चिंता का, बल्कि दुःख का विषय भी है. उम्मीद करते हैं कि कोई इसे बदल पाए वहां.