नई दिल्ली
टैक्स से बचने के लिए चेन्नै के एक दुकानदार ने एक जोड़ी जूते को अलग-अलग कर बेचना शुरू कर दिया है। वह इसके लिए दो बिल भी बना रहा है। इसी तरह से एक गारमेंट्स विक्रेता टुपट्टे को सलवार सूट से अलग बेच रहा है। सालों तक एक बासमती चावल बेचने वाली कंपनी ने विज्ञापन देकर अपना ब्रैंड बनाया और अब उसने अपना ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन वापस लेने की तैयारी कर ली है। इसने व्यापार ियों को सूचित किया है कि जिन ब्रैंड्स को ट्रेडमार्क नहीं किया जा रहा है, उन पर टैक्स छूट का दावा नहीं करें।
अपने प्रॉडक्ट को जीएसटी के दायरे से बाहर करने या फिर कम टैक्स के दायरे में लाने के लिए व्यापारी अजब-गजब तरीके अपनाने लगे हैं। ज्यादातर व्यापारी जीएसटी काउंसिल के ग्राहकों, खास तौर पर आम लोगों को बचाने के प्रयासों का लाभ ले रहे हैं। 500 रुपये से कम के फुटवेअर पर 5 फीसदी जीएसटी लगाया गया है जबकि उससे अधिक कीमत के फुटवेअर पर 18% टैक्स लगाया गया है। इसी तरह 1,000 रुपये से कम कीमत के अपैरल्स पर 5% जीएसटी तय किया गया और उससे अधिक की कीमत पर 12% जीएसटी लगेगा।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, (जीएसटी काउंसिल का) उद्देश्य यह नहीं था। अगर इस तरह के मामले ज्यादा बढ़े तो काउंसिल प्रावधानों पर पुनर्विचार कर सकती है। सपरा ने कहा, 'अगर जीएसटी रेट रजिस्टर्ड ब्रैंड के नाम के आधार पर निर्धारित किया जाना है तो कई ऐसे भी प्रॉडक्ट्स हैं जो रजिस्टर्ड नहीं हैं, लेकिन काफी लोकप्रिय हैं। जीएसटी रेट तय करने का आधार वस्तुगत होना चाहिए न कि भेदभावपूर्ण।'
जीएसटी के अंतर्गत टैक्स रेट अलग-अलग होने के कारण इसका दुरुपयोग संभव हो पाया है। सरकार ने जीएसटी में 0,5,12, 18 और 28 फीसदी की दर से टैक्स के पांच नए टैक्स स्लैब्स निर्धारित किए हैं। केंद्र सरकार के ऐसे कर्मचारी जिन्होंने एक्साइज ड्यूटी में क्लासिफिकेशन डिस्प्यूट देखे थे, वो वैल्यू के आधार पर अलग-अलग टैक्स रेट के समर्थन में नहीं थे। इसी तरह कुछ खाद्य पदार्थों पर जीएसटी नहीं वसूला जाएगा। इनमें पनीर, प्राकृतिक शहद, आटा, चावल और दालें आदि शामिल हैं। ऐसे प्रॉडक्ट्स जो कंटेनर में आते हैं या जो रजिस्टर्ड ब्रैंड्स हैं उनपर 5% जीएसटी लगाया गया है। सरकार व्यापारियों के इस कदम से चकित नहीं है। लेकिन, कम टैक्स दर का लाभ लेने के लिए प्रॉडक्ट्स में बदलाव करना अलग बात है और प्रावधानों का गलत इस्तेमाल करना अलग बात।