सपा और बीएसपी नेताओं ने जनता का ढेर सारा पैसा बचा दिया है. यह पैसा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके चार मंत्रियों को सदन का सदस्य बनाने के लिए होने वाले विधानसभा चुनाव में खर्च होना था. हालांकि अब ऐसी नौबत नहीं आने वाली है. ऐसा इसलिए, क्योंकि सपा नेता अशोक वाजपेयी और सपा से नाता तोड़ चुके अंबिका चौधरी ने 9 अगस्त को विधानपरिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. इससे पहले सपा की सरोजनी अग्रवाल और उनसे भी पहले बुक्कल नवाब, यशवंत सिंह और बीएसपी के जयवीर सिंह भी विधानपरिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं. इन इस्तीफों के बाद विधानपरिषद में विधनासभा कोटे की कुल छह सीटें खाली हो गई हैं, जबकि बीजेपी को जरूरत सिर्फ पांच सीटों की है. इन सबके पीछे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का दिमाग बताया जा रहा है, जिन्होंने विपक्षी दलों के एमएलसी को इस्तीफा देने पर राजी कर लिया.
विधानपरिषद में ये है पार्टियों की स्थिति
कुल सीट-100
सपा-61
बीएसपी-9
बीजेपी-8
कांग्रेस-2
आरएलडी-1
शिक्षक-5
स्नातक-5
निर्दल-1
असंबद्ध-1
खाली-7
आसान हो गई बीजेपी की राह
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले 312 सीटों पर कब्जा किया था. सहयोगियों को भी मिला लिया जाए तो पार्टी ने 403 में 325 सीटों पर जीत हासिल की थी. नतीजों के बाद बिना किसी सदन का सदस्य बने योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाए गए. वहीं केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा, स्वतंत्रदेव सिंह और मोहसिन रजा भी बिना किसी सदन के सदस्य बने मंत्रिमंडल में शामिल किए गए. 19 सितंबर तक उन्हें विधानसभा या विधानपरिषद में से किसी एक सदन का सदस्य बनना है. कयास लगाए जा रहे थे कि सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य विधानसभा का चुनाव लड़ेगें. वहीं दिनेश शर्मा और अन्य दो मंत्रियों को विधानपरिषद का सदस्य बनाया जाएगा और इसके लिए बीजेपी के ही एमएलसी इस्तीफा देंगे. हालांकि सपा और बीएसपी के एमएलसी ने बीजेपी की राह आसान कर दी. पिछले 15 दिनों में सपा के पांच और बीएसपी कोटे के एक सदस्य के इस्तीफे के बाद अब कुल सात सीटें खाली हैं. इनमें से छह पर ही चुनाव होना है, क्योंकि सातवीं सीट स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र की है,जो बनवारी सिंह यादव के इस्तीफे के बाद से खाली चली आ रही है. अब अनुमान लगाया जा रहा है कि बीजेपी योगी और केशव प्रसाद मौर्य के सांसद पद से इस्तीफे के बाद खाली हुई गोरखपुर और फूलपुर की सीट पर पूरा ध्यान देगी और योगी मंत्रिमंडल के सदस्यों को सदन तक पहुंचाने के लिए विधानपरिषद का सहारा लेगी.
बीजेपी को हुआ छह सीटों का फायदा
इसके अलावा बीजेपी को एक फायदा और भी होगा. अभी तक बीजेपी के विधानपरिषद में 8 सदस्य हैं. अगर सीएम योगी और उनके चार मंत्री विधानपरिषद सदस्य बनते हैं, तब भी एक सीट खाली है. विधानसभा की सीटों के मुताबिक यह सीट भी बीजेपी के पाले में ही जाएगी. इस तरह से सदन में बीजेपी के सदस्यों की संख्या 8 से बढ़कर 14 हो जाएगी.
इनको भी जानिए, जिन्होंने बचाया जनता का पैसा
अंबिका चौधरी
यूपी चुनाव में सपा का दामन छोड़ हाथी पर सवार हुए एमएलसी अंबिका चौधरी ने 9 अगस्त को पद से इस्तीफा दे दिया. वह बलिया की कोपाचीट विधानसभा सीट (वर्तमान में फेफना) से तीन बार विधायक रह चुके हैं. 2012 में वो बीजेपी के उपेंद्र तिवारी से हार गए थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथ में आने के बाद अंबिका चौधरी ने सपा छोड़ दी थी और बीएसपी के साथ चले गए थे. 2017 में वो बीएसपी के टिकट पर फेफना से चुनाव मैदान में थे, लेकिन एक बार फिर उपेंद्र तिवारी ने उन्हें शिकस्त दे दी.
अशोक वाजपेयी
सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे अशोक वाजपेयी ने भी 9 अगस्त को विधानपरिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. हरदोई की पिहानी विधानसभा सीट से छह बार विधायक रहे अशोक वाजपेयी सपा का ब्राह्म्ण चेहरा माने जाते थे. पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें लखनऊ लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन अंतिम वक्त में उनका टिकट काटकर अभिषेक मिश्रा को दे दिया गया. इसके बाद पार्टी ने उन्हें विधानपरिषद में भेज दिया. 9 अगस्त को इस्तीफा देते हुए अशोक वाजपेयी ने कहा था कि अखिलेश के नेतृत्व में पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा हो रही है, जिससे वो आहत हैं.
सरोजनी अग्रवाल
मेरठ की रहने वाली सपा एमएलसी सरोजनी अग्रवाल ने भी 4 अगस्त को इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गईं. उनका कार्यकाल 2021 में खत्म होना था. सरोजनी अग्रवाल को पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खां का करीबी माना जाता है. वो 1995 में मेरठ के जिला पंचायत अध्यक्ष बनी थीं और तब से ही वो राजनीति में हैं. 1996 से ही वो सपा की राष्ट्रीय सचिव थीं. 2007 में मुलायम सिंह यादव ने उन्हें पहली बार विधानपरिषद में भेजा था.
बुक्कल नवाब
लखनऊ के नवाब परिवार से ताल्लुक रखने वाले और राष्ट्रीय शिया समाज के फाउंडर बुक्कल नवाब ने 29 जुलाई को विधानपरिषद की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी जॉइन की थी. बुक्कल नवाब ने आरोप लगाए थे कि अखिलेश सरकार ने उनकी कौम के साथ ज्यादती की थी. बुक्कल नवाब ने मुलायम के अपमान का भी आरोप लगाया था. हाई कोर्ट के आदेश पर बुक्कल नवाब पर लखनऊ में मुकदमे भी दर्ज किए गए हैं. माना जा रहा है कि इनसे बचने के लिए ही बुक्कल नवाब ने सपा छोड़ दी थी.
यशवंत सिंह
आजमगढ़ के रहने वाले और सपा के एमएलसी यशवंत सिंह ने भी 29 जुलाई को इस्तीफा दे दिया था. यशवंत सिंह ने अपने इस्तीफे की वजह अखिलेश यादव के उस बयान को बताया, जिसमें अखिलेश ने चीन की तारीफ की थी. इस्तीफे के बाद सपा को इंटरनैशनल पार्टी बताते हुए यशवंत ने अपना इस्तीफा मुख्यमंंत्री योगी को समर्पित किया था. यशवंत सिंह ने राजनीति का ककहरा गोरखपुर से ही सीखा है. वो यूपीपीएसी में कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ भी मुखर रहे हैं. उन्हें कुंडा के निर्दलीय विधायक राजा भैया का बेहद करीबी माना जाता है.
जयवीर सिंह
अलीगढ़ के रहने वाले बीएसपी के दिग्गज नेता ठाकुर जयवीर सिंह ने भी 29 जुलाई को विधानपरिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने बीजेपी का दामन थामते हुए कहा था कि बीएसपी अपने मूल उद्देश्य से भटक गई है और उसका जनाधार नहीं रह गया है. ठाकुर जयवीर सिंह ने कहा था कि मायावती,कांशीराम के मिशन से दूर चली गई हैं. जाति और धर्म से भला होने वाला नहीं है. इससे पहले ठाकुर जयवीर सिंह 2002 और 2007 में अलीगढ़ की बरौली विधानसभा सीट से विधायक बने थे.
अखिलेश यादव ने बोला था हमला
सपा कोटे के विधानपरिषद सदस्यों के इस्तीफे के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हमला बोला था. अखिलेश ने अपने ट्वीट में लिखा था
पत्थर फेंको, MLC तोड़ो
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) August 4, 2017
इसके अलावा अखिलेश ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था,
‘हमारे एमएलसी भाग रहे हैं. पता नहीं बीजेपी उन्हें कौन सा प्रसाद दे रही है. उस प्रसाद के बारे में हमें भी बताएं, आगे हमें भी जरूरत पड़ेगी.’
सभापति रमेश यादव भी हैं नाराज
विधानपरिषद के सभापति रमेश यादव भी सपा से नाराज बताए जा रहे हैं. रमेश यादव सपा की सीट से 31 जनवरी 2015 को चौथी बार विधानपरिषद के सदस्य चुने गए थे. वह मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे हैं. मुलायम जब 1977 में प्रदेश के सहकारिता मंत्री थे, तो उन्होंने रमेश यादव को 18 मई 1978 को एटा जिला उपभोक्ता सहकारी संघ का अध्यक्ष बनवाया था. 1985 में एटा के निधौली कलां विधानसभा क्षेत्र से लोकदल प्रत्याशी के तौर पर विधायक चुने गए. 27 जून 1990 को वह मथुरा-एटा-मैनपुरी स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार विधान परिषद सदस्य चुने गए. 31 जनवरी 2003 को दूसरी बार और 31 जनवरी 2009 को तीसरी बार वह विधानपरिषद के सदस्य निर्वाचित हुए. रमेश यादव के बेटे आशीष यादव 2012 में एटा विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर विधायक बने थे. सपा की कमान जब अखिलेश यादव के हाथ में आई, तो उन्होंने आशीष यादव का टिकट काट दिया, जिसके बाद आशीष ने पार्टी छोड़ दी थी.