उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए संसद में वोटिंग शुरू हो चुकी है. ये लगभग तय है कि वैंकैया नायडू ही देश के अगले उपराष्ट्रपति होंगे. लेकिन शाम को वोटों की गिनती के बाद होने वाली आधिकारिक घोषणा कि इंतज़ार किया जाना चाहिए. तब तक एक नज़र उस राजनैतिक घटा-जोड़ पर डालिए जिसके तहत 18 विपक्षी पार्टियों ने गांधी को कैंडिडेट बनाया है.
राष्ट्रपति चुनाव अपने हाथों से फिसल जाने देने के बाद विपक्ष ने इस बार अपनी गलती सुधार ली थी. 11 जुलाई को दिल्ली में हुई एक बैठक में देश की 18 विपक्षी पार्टियों ने आपसी सहमति से गोपालकृष्ण गांधी को उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया. सोनिया गांधी इस मीटिंग की अध्यक्षता कर रही थीं. उन्होंने कहा कि गोपालकृष्ण गांधी ने विपक्ष का कैंडिडेट बनने के लिए हामी भर दी है.
सिर्फ गांधी के पोते ही नहीं हैं गोपालकृष्ण
ये सब जानते हैं कि गोपालकृष्ण के पिता देवदास गांधी थे. देवदास के पिता थे महात्मा गांधी. तो गोपालकृष्ण फेमस दादाजी के फेमस पोते हैं. लेकिन उनका ननिहाल भी कम दमदार नहीं था. उनकी मां लक्ष्मी भारत के आखिरी गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी की बेटी थीं. तो गोपालकृष्ण के नाना जी भी फेमस आदमी थे.
गोपालकृष्ण पढ़ाकू किस्म के रहे हैं. सेंट स्टीफेंस कॉलेज से उन्होंने इंग्लिश लिटरेचर की पढ़ाई की, जिसके बाद 1968 में आईएएस में सेलेक्ट हो गए. लगभग दस साल उनकी पोस्टिंग तमिलनाडु में रही. 1985 में वो उपराष्ट्रपति आर वेंकटरमन के सेक्रेटरी बने. आर वेंकटरमन जब राष्ट्रपति भवन गए, तो गोपालकृष्ण को अपना जॉइन्ट सेक्रेटरी बनाकर साथ ले गए. इसके बाद गोपालकृष्ण रिटायर हो गए. लेकिन 1997 में जब के आर नारायणन राष्ट्रपति बने तो गोपालकृष्ण को फिर राष्ट्रपति भवन याद किया गया, इस बार सेक्रेटरी के तौर पर काम करने के लिए.
1992 में रिटायर होने के बाद गोपालकृष्ण ने आराम नहीं किया. वो साउथ अफ्रीका, श्रीलंका, आइसलैंड और नॉर्वे में भारत के राजदूत भी रहे. 2004 से 2009 तक गोपालकृष्ण बंगाल के गवर्नर रहे. उन्हीं के कार्यकाल में सिंगूर और नंदीग्राम में ज़मीन अधिग्रहण के खिलाफ हिंसक आंदोलन हुए थे. आमतौर पर ऐसे समय में सरकारें और विपक्ष राज्यपाल पर एक दूसरे का साथ देने का इल्ज़ाम लगाते मिलते हैं. लेकिन गोपालकृष्ण की स्वीकार्यता लेफ्ट और तृणमूल दोनों में थी. उन्हीं के कहने पर बुद्धदेब भट्टाचार्य और ममता बैनर्जी की मीटिंग हो पाई. फिलहाल वो अशोका यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं.
गोपालकृष्ण के एक भाई रामचंद्र गांधी दर्शनशास्त्री हैं. दूसरे हैं राजमोहन गांधी, जो जाने-माने स्कॉलर हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉय (अमरीका) के साथ-साथ आईआईटी गांधी नगर में भी पढ़ाते हैं. राजमोहन ने गांधी जी, राजगोपालाचारी, गफ्फार खान और वल्लभ भाई पटेल जैसे दिग्गजों की आत्मकथा लिखी है. राजमोहन राजनीति में भी हाथ आज़माते रहे हैं. 1989 में वो अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ जनता दल के टिकट पर लड़े थे. लेकिन 2 लाख से ज़्यादा वोट से हार गए थे. 2014 में भी उन्होंने आप कैंडिडेट के तौर पर पूर्व दिल्ली लोकसभा सीट से पर्चा भरा. इस बार भी नहीं जीते.
हमेशा चर्चा में रहते हैं गोपालकृष्ण
#1. 2014 में गोपाल ने सीबीआई को डिपार्टमेंट ऑफ डर्टी ट्रिक्स कहकर हड़कंप मचा दिया था. ये उन्होंने डी पी कोहली मेमोरियल लेक्चर में कहा था. ये लेक्चर सीबीआई के ऊपर ही हो रहा था. इसमें सीबीआई के 3 हजार अफसर मौजूद थे.
#2. आउटलुक मैगजीन की 2007 की एक रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल के गवर्नर रहते हुए गोपाल वहां के ग्रामीण इलाकों में गुमनाम रहकर घूमा करते थे. नंदीग्राम में चल रही हिंसा के दौरान उन्होंने उसकी बड़ी आलोचना भी की थी.
#3. गोपाल ने कई किताबें भी लिखी हैं. सरनाम लिखा और एक नाटक दारा शिकोह भी लिखा. विक्रम सेठ के उपन्यास ए सुटेबल बॉय का हिंदी में अनुवाद किया. इसका नाम है कोई अच्छा सा लड़का. इसके अलावा गांधी एंड साउथ अफ्रीका, गांधी एंड श्री लंका, नेहरू एंड श्री लंका, इंडिया हाउस कोलंबो और गांधी इज गॉन भी लिखी हैं.
#4. 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो गोपालकृष्ण गांधी ने ओपन लेटर लिखा था:
इंडिया की माइनॉरिटीज अलग हिस्सा नहीं है, बल्कि इंडिया के मेन पार्ट में समाहित हैं. भारत माता की जय बोलिए, लेकिन सुभाषचंद्र बोस के जय हिंद को साइड कर के नहीं.
#5. 26 जनवरी, 2017 को भी नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा:
आपका जन्म उसी साल हुआ था ,जब देश का हुआ. आपने देश के संविधान को पवित्र किताब कहा है. तो आप दो बार संविधान पुरुष हुए. एक जब आपका जन्म हुआ, दूसरा जब आपने शपथ ली. ढाई साल बीत गए और अब आप खुद को किस रूप में देखते हैं. आप कह सकते हैं कि इंडिया के लोगों से पूछो. इसमें कोई शक नहीं है कि आपकी लोकप्रियता बढ़ी है. पर आज ये जानना जरूरी है कि आप संविधान की बातों को कितना अमल में लाते हैं.
#6. 2016 में गोपालकृष्ण गांधी ने एक किताब लिखी थी एबॉलिशिंग द डेथ पेनाल्टी. इसमें उन्होंने नेताओं से कहा था कि नेल्सन मंडेला से सीखें. फ्रांस के पूर्व प्रेसिडेंट फ्रैंक मिट्रेंड से सीखें जिन्होंने पब्लिक ओपिनियन स्ट्रॉन्ग रहने के बावजूद डेथ पेनाल्टी अपने-अपने देशों में खत्म कर दी थी. गांधी कहते हैं कि इसमें एक ही दिक्कत आती है. वो है विक्टिम के परिजनों का गुस्सा. पर ये गुस्सा और डेथ पेनाल्टी की क्रूरता दोनों अलग-अलग चीजें हैं. गांधी की ये किताब पढ़ने लायक है.
#7. गोपाल ने ये भी कहा था कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अपने हत्यारे नाथूराम गोडसे के लिए फांसी की सजा की मांग नहीं करते.
गोपालकृष्ण की उम्मीदवारी से विपक्ष को क्या मिलेगा ?
विपक्ष एक बार फिर उस बात को भुनाने की कोशिश करेगा जो उसने राष्ट्रपति चुनाव में खो दी थी – गोपालकृष्ण का गांधी होना. गांधी जी की अपील पूरे देश में हैं लेकिन गुजरात जाने पर बात भारत के साथ-साथ गुजराती अस्मिता पर भी आ जाती है. इस साल गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं. विपक्ष इस मौके ज़रूर भुनाना चाहेगा. खासकर कांग्रेस. लेकिन ये फिलहाल भविष्य के गर्भ में है. मोदी ‘गांधी’ को साधने में लगे हुए हैं. तो गोपालकृष्ण उनके लिए एक अलहदा चुनौती साबित हो सकते हैं.
फिर भी विपक्ष को समय रहते राजमोहन को कैंडिडेट घोषित करने का कम से कम एक फायदा तो तय तौर पर मिल ही गया है. वो ये कि राष्ट्रपति चुनावों में बरती हीला-हवाली का नतीजा ये निकला था कि एनडीए जदयू के नीतीश विपक्ष से झटक कर अपनेे पाले में ले गया था. लेकिन 11 जून को हुई मीटिंग में जदयू के शरद यादव शामिल हुए और गोपालकृष्ण के नाम पर सहमति जताई. गोपालकृष्ण का नाम तय करने वाली टीम में जदयू को छोड़कर बाकी सब पार्टियां वही हैं जो राष्ट्रपति चुनाव के समय साथ आई थीं.
राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार के तौर पर कभी द्रौपदी मुरमु का नाम चला कभी नजमा हेपतुल्ला तो कभी स्पीकर सुमित्रा महाजन का. लेकिन एनडीए ने अपने ‘मन की बात’ किसी को बताई नहीं. तो बाकी लोगों की तरह विपक्षी पार्टियां भी कयास लगाते रह गए और अपनी तरफ से कोई ऐसा कैंडिडेट उतार ही नहीं पाए जिसकी उम्मीदवारी के इर्द-गिर्द एक नैरेटिव गढ़ कर उसे सही भी ठहराया जा सके.
ये वजह थी कि एनडीए ने जब रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी का मास्टर स्ट्रोक चला तो अखबारों में ओपीनियन पीस लिखने के साथ ही पूरे विपक्ष की सेटिंग भी बिगड़ गई. रामनाथ कोविंद एक ऐसे कैंडिडेट थे जिसकी काट विपक्ष अपनी शर्तों पर कर ही नहीं सकता था. मजबूरी में उसे एनडीए के बनाए नियमों पर चलने को मजबूर होना पड़ा और मीरा कुमार की उम्मीदवारी का ऐलान हुआ – बिहार के दलित राज्यपाल के खिलाफ बिहार की दलित बेटी.
उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष ने अपनी गलती सुधार ली है. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों के पद कुछ हद तक सेरेमॉनियल होते हैं. दोनों के चुनाव भी आगे-पीछे होते हैं. लेकिन फिर भी इन दोनों चुनावों की पॉलिटिक्स बिल्कुल अलग होती है.