ऊपर जो फोटो दिख रही है, उसमें कुछ लिखा है. वो भी दिख ही रहा होगा. ये वॉट्सऐप के एक मेसेज की फोटो है. देश की चिंता में रोज 50 ML खून जलाने वाले पिछले कई दिनों से ये मेसेज शेयर कर रहे हैं. फेसबुक पर तो बाढ़ है ही, वॉट्सऐप पर इस मेसेज की सुनामी आ चुकी है. फैमिली ग्रुप, ऑफिस ग्रुप, XXX ग्रुप… कोई ग्रुप नहीं छोड़ा गया, जहां ये मेसेज गया न हो. लोगों को इतनी चिंता है कि पर्सनल मेसेज कर-करके बता रहे हैं कि भइया ओपो और वीवो के ब्लड डोनेशन कैंप में न घुस जइयो. बिना नाथ-पगहे वाले इस मेसेज पर लोग भरोसा किए ले रहे हैं.
लेओ, एक बार फिर देख लो.
जब ये हमारे पास आया, तो हमने इस पर भरोसा नहीं किया. इसे खोदना शुरू किया. हम भी कहे कि लाओ देखें देसी कंपनियों के रहते इन विदेशी कंपनियों को खून चूसने का मौका कहां से मिल गया. पहले इंटरनेट खंगाला, फिर बड़े वाले डॉक्टरों से बात की और इस मेसेज का सब तिया-पांचा सामने आ गया. आओ बांट लें.
#1. क्या Oppo और Vivo वाकई ब्लड डोनेशन कैंप आयोजित करा रही हैं?
बिल्कुल नहीं. ये मोबाइल बनाने वाली कंपनियां हैं. दोनों चीनी हैं. OPPO 2004 में बनाई गई थी और Vivo 2009 में बनी है. दोनों के हेडक्वॉर्टर चीन के जॉन्गुआन (Dongguan) में हैं. ये उच्चारण अंग्रेजी का है, चीनी में कुछ और कहते हों, तो पता नहीं. इन दोनों कंपनियों का इंडिया में अच्छा-खासा धंधा है, लेकिन इनमें से कोई भी ब्लड डोनेशन कैंप नहीं ऑर्गनाइज कर रही हैं.
#2. क्यों नहीं कर रही हैं?
क्योंकि दुनिया की किसी भी कंपनी को लोगों से ब्लड डोनेट करवाने और खुद रखने की इजाजत होती ही नहीं है. फिर वो चाहे स्मार्टफोन बेचने वाली कंपनी हो, ज़हर बेचने वाली कंपनी हो, हॉस्पिटल का सामान बनाने वाली कंपनी हो या एलोवीरा बेचने वाली कंपनी हो. अगर किसी कंपनी को ब्लड डोनेशन कैंप ऑर्गनाइज कराना भी हो, तो उसे किसी रजिस्टर्ड और लाइसेंस वाले ब्लड बैंक से टाइअप करना होता है. फिर ब्लड बैंक वाले ही सिरिंज, पारलेजी और फ्रूटी का इंतजाम करते हैं. इसके बाद ब्लड की प्रॉसेसिंग का अधिकार भी सिर्फ ब्लड बैंक वालों के पास ही होता है.
ये बात पक्की करने के लिए हमने युद्धवीर सिंह लांबा से बात की. ये वो जनाब हैं, जो ग्लोबल इवेंट वर्ल्ड ब्लड डोनर्स डे पर इंडिया की तरफ से अलग-अलग देशों में जाते हैं. वर्ल्ड ब्लड डोनर्स डे 14 जून को होता है, जो पिछले साल चीन में हुआ था, इस साल वियतनाम में हुआ और अगले साल ग्रीस में होगा. युद्धवीर चीन और वियतनाम जा चुके हैं और अगले साल ग्रीस जाएंगे. उन्होंने बताया कि रजिस्टर्ड और लाइसेंस वाला ब्लड बैंक ही लोगों से ब्लड ले सकता है और जैसे ही ब्लड किसी इंसान के शरीर से बाहर आता है, वो ब्लड बैंक की संपत्ति हो जाता है. फिर चाहे चीन की कंपनी हो, अमेरिका की हो या इंडिया की, उसका कोई अधिकार नहीं रह जाता.
#3. तो कौन ब्लड डोनेशन कैंप लगवा रहा है?
वीवो लगवा रहा है. लेकिन ये वो वीवो नहीं है, जिसके मेसेज आपको भेजे जा रहे हैं. ये वीवो हेल्थकेयर सेंटर है, जो इंडिया की कंपनी है और जिसका हेडक्वॉर्टर गुड़गांव में हैं. वीवो हेल्थकेयर लोगों के लिए एजुकेशनल और ट्रेनिंग प्रोग्राम ऑर्गनाइज कराती है, जिसमें करियर ट्रेनिंग, हेल्थ, सेफ्टी और इमरजेंसी लाइफ सपोर्ट की ट्रेनिंग दी जाती है. वीवो हेल्थकेयर काफी समय से ब्लड डोनेशन कैंप ऑर्गनाइज कराता आ रहा है, जिसकी खबरें मीडिया में भी आई हैं.
#4. क्या खून एक देश से दूसरे देश ले जाया जा सकता है?
नहीं. युद्धवीर बताते हैं कि वैसे तो हर देश में खून को ट्रांसपोर्ट करने के अपने अलग नियम होते हैं, लेकिन एक देश से ब्लड डोनेट करवा के उसे दूसरे देश ले जाने का कोई प्रावधान नहीं है. कुछ मेसेज में ये दावा भी किया जा रहा है कि Oppo और Vivo इंडिया में ब्लड डोनेट करवा के उसे चीन भेज देंगी, लेकिन युद्धवीर बताते हैं कि कड़े नियमों की वजह से एक देश का खून दूसरे देश में स्वीकार ही नहीं किया जाएगा. कोई भरोसा ही नहीं करेगा. दुनिया में ऐसी कोई पॉलिसी भी नहीं है.
#5. खून को एक से दूसरे देश ले जाना संभव भी है क्या?
बहुत मुश्किल है. शरीर से खून निकाले जाने के बाद ब्लड बैंक के पास दो विकल्प होते हैं. या तो वो उसे वैसे ही प्रिजर्व करके रख लें और जरूरत पड़ने पर उसे मरीज को चढ़ा दें. या फिर वो इसके कंपोनेंट अलग कर लें और फिर जरूरतमंद को पहुंचा दें. धर्मशिला कैंसर हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर ब्लड मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर शम्स बताते हैं कि बॉडी से निकले खून की रेड ब्लड सेल्स को 2 से 6 डिग्री सेल्सियस के तापमान में 35 से 42 दिनों तक बचाए रखा जा सकता है. जमा हुआ खून 10 साल तक बचा रह सकता है, लेकिन खून स्टोर करने का ये सही तरीका नहीं है.
अगर खून के कंपोनेंट्स अलग कर लिए जाएं यानी प्लाज्मा और प्लेटलेट्स वगैरह को अलग कर लिया जाए, तो मामला और पेचीदा हो जाता है. डॉक्टर शम्स बताते हैं कि प्लाज्मा को -40 डिग्री के तापमान पर एक साल तक स्टोर किया जा सकता है. प्लेटलेट्स को नॉर्मल रूम टेंप्रेचर पर पांच दिनों तक ही स्टोर किया जा सकता है. डॉक्टर शम्स बताते हैं कि युद्ध के दौरान सैनिकों को रेड ब्लड सेल्स और प्लाज्मा की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, लेकिन एक देश से ब्लड डोनेट करवा के उसे दूसरे देश ले जाना लगभग नामुमकिन है.
आप खुद सोचिए. अगर आप वॉट्सऐप चलाते हुए देश की इतनी चिंता कर रहे हैं, तो क्या सरकार को इसकी चिंता नहीं होगी कि कोई मोबाइल कंपनी खून का ट्रांसपोर्टेशन कर रही है!
#6. तीन महीने में रक्तदान का क्या नियम है?
युद्धवीर बताते हैं कि ये तीन महीने का समय अंतरराष्ट्रीय मानक है. WHO का तैयार किया हुआ. इंसान का शरीर ऐसा है कि उसमें से एक बार खून निकाले जाने के बाद उतना खून बनने में कम से कम तीन महीने का समय लगता है. अच्छी बात ये है कि तीन महीने के बाद उस इंसान का खून पहले से भी साफ और बेहतर हो जाता है. तो ये नियम तो हर किसी पर लागू होता है कि अगर उसने एक बार खून दिया है, तो वो अगले तीन महीने तक खून नहीं दे सकता.
#7. चीन तो ट्रांसपोर्ट कर रहा है?
ट्रांसपोर्ट नहीं कर रहा है, ट्रांसफर कर रहा है और ब्लड डोनेशन कैंप लगवा रहा है. 17 अगस्त को खबर आई थी कि डोकलाम में भारत के साथ विवाद और लंबा होता देखकर चीन ने उस इलाके में ब्लड डोनेशन कैंप लगवाए. वहां के मीडिया हाउस ग्लोबल टाइम्स ने बताया कि पीपल्स लिब्रेशन आर्मी (चीन की सेना) के कहने पर हॉस्पिटल चीन के कई इलाकों में ब्लड डोनेशन कैंप लगा रहे हैं. ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक 8 अगस्त को चीन के सिचुआन में भूकंप आने से पहले इस खून को संभवत: तिब्बत में ट्रांसफर किया गया.
तो भइया, बुद्धि लगाओ, लेकिन इत्ती भी न लगाओ कि सिर पटकने की नौबत आ जाए. वॉट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का संभलकर इस्तेमाल करो. जनता को डराओ मत. कुछ भी शेयर करने से पहले थोड़ा दिमाग लगाओ. युद्ध की मत मनाओ. युद्ध होगा, तो गेस्पैदरा दोनों तरफ फटेगा. और मुद्दे की बात- ओप्पो और वीवो ऐसा कोई कैंप नहीं लगा रही हैं. लगा भी रही होतीं, तो अपने यहां काी ज्यादातर जनता उन्हें खून नहीं देती, क्योंकि वो चीनी कंपनियां हैं. लेकिन ब्लड डोनेशन अच्छी चीज है. किसी भी कैंप में करो, लेकिन तीन महीने में एक बार कर ही दो.
साभार: द लल्लनटॉप