नोटबंदी सही कदम था या गलत, ये अब तक यक्ष प्रश्न था. कोई ठोस जानकारी थी ही नहीं, इसलिए हर कोई अपने हिसाब से तुक्के लगाता था. लेकिन 30 अगस्त, 2017 को जारी हुई रिज़र्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट में नोटबंदी का पूरा गणित पब्लिक कर दिया गया है. नोटबंदी के बाद ये पहला मौका है कि रिज़र्व बैंक ने सटीक आंकड़े जारी किए हैं.
इस रिपोर्ट के मुताबिक 1000 रुपए के नोटों में से सिर्फ 1.3 फीसदी ऐसे थे, जो रिज़र्व बैंक को वापस नहीं मिले.
नोटबंदी का शुरुआती लॉजिक यही था कि जिनके पास 1000 और 500 के नोटों की शक्ल में काला धन जमा है, वो नए नोटों के चलते चलन से बाहर हो जाता. इस हिसाब से चलन से बाहर हुए नए जारी हुए नोटों के अंतर को (कैश) काला धन मान लिया जाता. अनुमान था कि काला धन ज़्यादातर 1000 के नोटों की शक्ल में था. इसीलिए 1.3% का आंकड़े ने कई लोगों को हैरान किया.
# 8 नवंबर को जब नोटबंदी हुई, तब देश में 1000 रुपए के 67 करोड़ नोट चलन में थे.
# नोट बदलने की कवायद पूरी होने के बाद इन 67 करोड़ नोटों में से सिर्फ 8 करोड़ 90 लाख नोट वापस नहीं आए.
# नोटबंदी के बाद नए नोटों की किल्लत को लेकर रिज़र्व बैंक को खूब कोसा गया था. रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद के महीनों में रिज़र्व बैंक ने 2,380 करोड़ नोट जारी किए. इनकी कुल कीमत 5.54 लाख करोड़ थी.
# मार्च 2017 के अंत में देश के बाज़ारों में कुल 13.1 लाख करोड़ का कैश सर्कुलेट हो रहा था. ये आंकड़ा पिछले साल की तुलना में 20.2% कम है.
# रिज़र्व बैंक ने साल 2016-17 में नोट छापने पर 7,965 करोड़ रुपए खर्च किए. पिछले साल ये खर्च 3,420 करोड़ था. इस साल हुए खर्च का बड़ा हिस्सा 500 और 2000 के नए नोट छापने में इस्तेमाल हुआ.
# नोटबंदी से पहले देश का 86.4% कैश 500 और 1000 के नोटों की शक्ल में मौजूद था. नोटबंदी के बाद 500 और 2000 रुपए के नोटों (माने बड़े नोटों) का देश के कैश में हिस्सा 73.4% पर आ गया था.
# मार्च 2017 के अंत तक 2000 के नोटों का शेयर देश के कुल कैश में 50.2% था.
इस सब पर सरकार का पक्ष रखने वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक प्रेसकॉन्फ्रेंस भी की. लगभग पूरे नोटों के वापस आ जाने पर उन्होंने कहा कि नोटबंदी का लक्ष्य नोटों को ज़ब्त करना नहीं था. भारत की अर्थव्यवस्था कैश आधारित है, और इसे बदलने की ज़रूरत है. कैश का चलन 17% नीचे आया भी है. सरकार का अगला लक्ष्य चुनावों में लगने वाले काले धन को खत्म करना है.