हमारे शरीर में इंफेक्शन से होने वाली बीमारियों से लड़ने के लिए प्रकृति ने एक सिस्टम बनाया है जिसे रोग प्रतिरोध तंत्र (इम्यून सिस्टम,immune system) कहते हैं. जब भी कोई बैक्टीरिया या वायरस हमारे शरीर में पहली बार प्रवेश करता है तो इस इम्यून सिस्टम की कोशिकाएं (cells) उसको पहचान कर उसके खिलाफ एंटीबॉडी (antibodies) बनाती हैं. यह एंटीबॉडीज उस कीटाणु से लड़ने में हमारी सहायता करती हैं. पहली बार जब इंफेक्शन होता है तो एंटीबॉडीज बनने में काफी समय लगता है. दोबारा जब कभी उसी कीटाणुओं से इंफेक्शन होता है तो वही कोशिकाएं उसको पहचान कर बहुत जल्दी से एंटीबॉडीज बनाने लगती है और उस इन्फेक्शन को पनपने से रोकती हैं.
बीमारियों को होने से रोकने के लिए हम टीकाकरण (vaccination, immunization) द्वारा इसी प्रक्रिया को दोहराते हैं. खतरनाक इन्फेक्शन करने वाले कीटाणुओं को मार कर यह बहुत कमजोर करके उन्हें इंजेक्शन द्वारा शरीर में पहुंचा दिया जाता है (पोलियो वायरस को ड्राप के रूप में देते हैं). इम्यून सिस्टम की कोशिकाएं इन के खिलाफ एंटीबॉडी बनाती हैं. जब कभी असली कीटाणु शरीर में प्रवेश करता है तो पहले से ही तैयार एंटीबाडीज उस कीटाणु को रोकती हैं. साथ ही इम्यून कोशिकाएं तेजी से नई एंटीबॉडीज भी बनाने लगती हैं जो उस कीटाणुओं को मारने में सहायता करती हैं.
वैक्सीनेशन आधुनिक चिकित्सा वि ज्ञान की सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक है. इसके द्वारा दुनियाभर में हर साल करोड़ों लोगों को खतरनाक बीमारियों से बचने में मदद मिलती है. इसके द्वारा चेचक एवं पोलियो को जड़ से खत्म किया जा सका है.
आमतौर पर लोग यह समझते हैं की बीमारियों से बचाने वाले टीके (वैक्सीन) केवल बचपन में ही लगवाने होते हैं. पर बहुत से टीके ऐसे हैं जिन्हें बचपन में लगवाने के बाद बड़े होकर फिर से लगवाना होता है जिससे उनका असर बना रहे. वैक्सीन कि इस तरह की डोज़ को बूस्टर डोज़ कहते हैं.
कुछ वैक्सीन ऐसी हैं जो बच्चों एवं बड़ों सभी में समान रुप से लगाने होती हैं. एकाध वैक्सीन केवल बड़े लोगों में ही लगाने होती है. कुछ लोगों को बचपन में टीके लगे होते हैं पर वह पूरे नहीं लगे होते हैं या उनका कोई सही रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं होता. ऐसे लोगों को भी कुछ टीके लगा कर उन का टीकाकरण पूरा करना जरूरी होता है.
बड़े होने पर जो टीके लगवाना चाहिए उनका विवरण इस प्रकार है –
इन्फ्लूएंजा वैक्सीन: इन्फ्लूएंजा एक वायरल इंफेक्शन है जो कि कभी-कभी खतरनाक रूप ले लेता है. किसी किसी वर्ष में यह तेजी से फैलने वाली महामारी (epidemic) के रूप में होता है जोकि कई देशों को अपनी चपेट में ले सकता है. अधिक आयु के लोगों व हृदय रोग, दमा, डायबिटीज, गुर्दे और लिवर के रोगियों में यह अधिक खतरनाक हो सकता है. इस वायरस के स्वभाव में लगातार बदलाव आता रहता है. इसकी नई वैक्सीन हर साल सितंबर अक्टूबर में आती है. उपरोक्त सभी प्रकार के मरीजो एवं स्वास्थ्य कर्मियों को हर साल यह वैक्सीन लगवानी चाहिए.
वेरीसेला वैक्सीन ( चिकन पॉक्स): जिन लोगों को चिकन पॉक्स निकल चुकी होती है उन्हें दोबारा होने की संभावना नहीं के बराबर होती है. अन्य सभी लोगों को इस वैक्सीन की दो डोज़ लगवा लेना चाहिए( गर्भवती महिलाओं को छोड़कर).
ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) वैक्सीन: 11 से 26 साल की आयु के बीच सभी लड़कियों को इस वैक्सीन की तीन डोज़ लगवा लेना चाहिए (इसको शादी से पहले लगवाना आवश्यक है). यह वैक्सीन गर्भाशय ग्रीवा (uterine cervix) के कैंसर से बचाव करती है.
टिटनेस,डिप्थीरिया एवं काली खासी वैक्सीन: DPT vaccine नाम से एक बहुत सस्ता टीका उपलब्ध है जोकि सरकारी टीकाकरण कार्यक्रम में भी लगाया जाता है. बच्चों में इसके 3 टीके 3, 4, व 5 महीने की आयु पर, चौथा टीका डेढ़ वर्ष पर और पांचवा टीका 5 वर्ष की आयु पर लगाए जाते हैं. इसके हर 10 साल बाद एक विशेष वैक्सीन TDvac (जिस में टिटनेस वैक्सीन की पूरी डोज़ एवं डिप्थीरिया की कम डोज़ होती है) लगवाना चाहिए. यदि यह टीका उपलब्ध ना हो तो केवल टिटनेस वैक्सीन हर 10 साल पर लगवा लेना चाहिए. एक और विशेष वैक्सीन Inj. Boosterix नाम से उपलब्ध है जिसमें काली खांसी की भी हल्की सी डोज़ होती है . 15 से 65 साल के बीच इस वैक्सीन को एक बार लगवा लेना चाहिए.
MMR vaccine (Measles, Mumps & Rubella – खसरा, कनवर एवं रूबेला): यह वैक्सीन इन तीनों बीमारियों से बचाव के लिए लगाई जाती है. सामान्यतः इसकी पहली डोज़ 9 से 18 महीने की आयु पर और दूसरी डोज़ 5 साल की आयु पर लग जानी चाहिए.यदि यह बचपन में ना लग पाई हो तो किसी भी आयु पर इसकी दो डोज़ 1 महीने के अंतराल पर लगवा लेनी चाहिए. यदि यह वैक्सीन बचपन में लगी है लेकिन ठीक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है तो भी इसकी एक डोज़ लगवा लेना चाहिए. लड़कियों को शादी से पहले इसकी एक डोज़ लगवा देना चाहिए क्योंकि यदि गर्भावस्था में रूबेला का इंफेक्शन हो जाए तो बच्चे में जन्मजात विकृतियां (birth defects) होने का डर रहता है.
हेपेटाइटिस बी वैक्सीन : हेपेटाइटिस बी एक विशेष प्रकार का पीलिया होता है जो कि साधारण पीलिया से ज्यादा खतरनाक होता है. इसके लिए एक बहुत अच्छा टीका उपलब्ध है जोकि बहुत महंगा भी नहीं है. यह टीका बच्चे के जन्म के तुरंत बाद लगवा देना चाहिए. यदि बचपन में न लगा हो तो किसी भी आयु में इसकी 3 डोज़ 0, 1 और 6 महीने के अंतर पर लगवाते हैं.
हेपेटाइटिस ‘ए’ वैक्सीन : दूषित पानी व खाने से फैलने वाली हेपेटाइटिस ‘ए’ वैसे तो बच्चों में अधिक होती है लेकिन अगर यह बड़ों में होती है तो अधिक गंभीर हो सकती है. इसका अकेला टीका भी उपलब्ध है और हेपेटाइटिस बी के साथ कंबाइंड टीका भी. यह थोड़ा महंगा होता है पर जो लोग लगवा सकते हैं उन्हें लगवा लेना चाहिए विशेषकर जो बच्चे बाहर रहकर पढ़ते हैं या जॉब करते हैं (जिन्हें बाहर अधिक खाना होता है).
रेबीज वैक्सीन : कुत्ते बिल्ली या किसी जंगली जानवर के काटने से रेबीज अर्थात हाइड्रोफोबिया नाम की जानलेवा बीमारी का डर होता है. इससे बचने के लिए रेबीज के पांच या छह टीके एवं यदि आवश्यकता हो तो रेबीज इम्यूनोग्लोब्युलिन के टीके लगाए जाते हैं. जिन लोगों का जंगली या पालतू जानवरों से अधिक एक्सपोज़र होता है जैसे वेटनरी डॉक्टर, फॉरेस्ट वर्कर आदि उन्हें यह टीके पहले से ही लगवा लेना चाहिए.