उसे अपने ज़माने का सबसे स्टाइलिश क्रिकेटर कहा गया. जो सिंगर भी था, एक्टर भी. भीड़ उस पर मरती थी. अपने छोटे से करियर में ही उसने विपुल लोकप्रियता हासिल की. लेकिन जिसने एक गैर-जिम्मेदाराना शॉट खेल ा और वो उसका आख़िरी टेस्ट मैच बन गया.
हम बात कर रहे हैं संदीप पाटिल की. वो खिलाड़ी जो कई वजहों से लोगों की याददाश्त में महफूज़ है. चाहे बॉब विलीस को एक ओवर में मारे 6 चौके हो, या लेन पास्को की बाउंसर सर में लगने से उनका बीच मैदान में धाराशाई होना. सब कुछ बड़े ही चाव से याद किया जाता है क्रिकेट की दुनिया में.
कोच भी, सिलेक्टर भी
संदीप पाटिल वो शख्स हैं, जिन्होंने केन्या जैसी कमज़ोर टीम को जीतना सिखाया. उसमें किलर इंस्टिंक्ट भरा. अपने खुद को अग्रेशन को उन्होंने इस टीम में उतार दिया. इसी का नतीजा था कि ये टीम बड़े-बड़े दिग्गजों की मौजूदगी के बावजूद 2003 वर्ल्ड कप के सेमी-फाइनल में पहुंची. हालांकि वहां उसे अपने कोच की होम टीम से हार मिली, लेकिन इतना लंबा सफ़र करना भी कोई कम उपलब्धि नहीं थी. इसे टीम से ज़्यादा कोच का यानी संदीप पाटिल का करिश्मा माना गया. पाटिल BCCI के चीफ सिलेक्टर भी रह चुके हैं.
संदीप पाटिल पर लिखने को यूं तो बहुत कुछ है, लेकिन आज हम उनके उस शॉट की बात करेंगे, जिसने एक तरह से उनके टेस्ट करियर का अंत कर दिया.
करियर को निगल जाने वाली भूल
बात 1984 की है. इंग्लैंड की टीम इंडिया दौरे पर थी. दिल्ली में दूसरा टेस्ट चल रहा था. भारत ने टॉस जीत कर पहले बैटिंग ली थी. 307 रन का ठीक-ठाक स्कोर बना लिया कोटला की पिच पर. जवाब में इंग्लैंड ने अपनी पहली पारी में 418 रन मारे. 111 रन की लीड. ज़ाहिर सी बात है दूसरी पारी में भारत को बहुत संभल कर खेलना था. शुरुआती दो झटकों के बाद भारत संभल भी गया था. सुनील गावसकर ने पहले मोहिंदर अमरनाथ और फिर संदीप पाटिल के साथ मिल कर डोलते जहाज को स्थिर कर दिया था. 172 के स्कोर पर गावसकर आउट हो गए. वो टीम का चौथा विकेट था.
आगे बल्लेबाज़ी कमज़ोर थी. संदीप पाटिल और कपिल देव मैदान पर थे. इन्हीं दोनों से उम्मीदें थी. और इन्हीं दोनों से ब्लंडर हो गया.
एक समय भारत का स्कोर 4 विकेट पर 207 हो गया था. मज़बूत फाउंडेशन. इंग्लैंड की लीड हटाकर भी लगभग 100 रन ज़्यादा. 6 विकेट हाथ में थे. आख़िरी दिन था. मैच आराम से बचाया जा सकता था. लेकिन तभी जैसे भारत के बल्लेबाज़ों का दिमाग रिटायर्ड हर्ट हो गया. संदीप पाटिल ने एक बेहद गैर-ज़रूरी, गैर-जिम्मेदाराना शॉट खेला. जहां ज़रूरत लंगर डाल कर पड़े रहने की थी, वहां अपने मिज़ाज के अनुसार वो तलवारबाज़ी के मूड में आ गए. नतीजतन आउट हो गए. उनका आउट होना था कि बाकी टीम में ‘तू चल मैं आया’ शुरू हो गया. कुछ ही मिनटों में पूरी टीम क्रीज़ पर हाज़िरी लगाकर पवेलियन में लौट चुकी थी. स्कोर बोर्ड 207 पर 4 से 235 ऑल आउट तक पहुंच गया था. इंग्लैंड को सिर्फ 127 रन का टार्गेट मिला, जो उसने आसानी से हासिल कर लिया. एक लापरवाही भरा शॉट मैच ले डूबा.
एक की गलती कैसे दूसरे के लिए मौका बन गई?
शॉट चयन में लापरवाही के लिए संदीप पाटिल पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई. अगला टेस्ट कोलकाता में था. उसमें उन्हें और कपिल देव को नहीं खिलाया गया. संदीप पाटिल की जगह जिस खिलाड़ी को मौक़ा मिला, उसने कहर ढा दिया. वो प्लेयर था मुहम्मद अजहरुद्दीन.
अज़हर ने झोली में आ टपके इस मौके को दोनों हाथों से लपक लिया. ना सिर्फ उस टेस्ट में, बल्कि अगले दोनों टेस्ट में सेंचुरी मारी. डेब्यू पर लगातार तीन मैचों में शतक जड़ने का रिकॉर्ड बना डाला. उनकी इस अद्भुत परफॉरमेंस ने संदीप पाटिल के लिए टेस्ट क्रिकेट के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद कर दिए. वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के बाद अज़हर की जगह टीम में पक्की होना लाज़मी था. फिर संदीप पाटिल के लिए जगह न बन सकी. दिल्ली टेस्ट उनके करियर का आख़िरी टेस्ट मैच बन के रह गया.
एक ख़राब शॉट कितना भारी पड़ सकता है इसका सटीक उदाहरण है ये केस. मैदान पर एक कमज़ोर लम्हा आपके लिए बहुत नुकसानदेह हो सकता है. शायद इसे हरभजन सिंह सही से समझ पाएं, जिन्होंने गहमागहमी में श्रीसंत को थप्पड़ जड़ दिया था और लाखों का नुकसान उठा लिया था.