बमों में जो ‘बम-बम’ होता है उसे न्यूक्लियर बम कहते हैं. किन्नी जोर से फटता है और फटने के बाद क्या होता है, ये जानने के लिए आप हिरोशिमा-नागासाकी गूगल करें. ऐसे नतीजे होते हैं जिसके लिए भयानक और भयंकर शब्द बहुत छोटे पड़ जाते हैं. लेकिन न्यूक्लियर बम जब किसी शहर पर नहीं भी गिर रहा होता, तब भी लोगों की दर्दनाक मौतें उसकी वजह से जा रही होती हैं. क्योंकि न्यूक्लियर बम बनाने की प्रक्रिया भी उतनी ही खतरनाक होती है. इन सब में सबसे खतरनाक होती है बम की टेस्टिंग. टेस्टिंग साइट के आस-पास रहने वालों की ज़िंदगी नर्क हो जाती है. खत्म हो जाती है. उनकी ज़मीन बंजर हो जाती है. परिवार में पीढ़ियों तक ऐसे बच्चे पैदा होते हैं जिन्हें जन्मजात कई तरह के कैंसर होते हैं.
इसी से उकता कर 1996 में Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty मतलब ‘व्यापक परमाणु परीक्षण-प्रतिबंध संधि’ लाई गई. लेकिन बात वहां फंस गई कि ‘तुमने बना लिया, हमें बनाने से रोक रहे हो!’ खैर, दुनिया को बरबाद होने से रोकने की दूसरी कोशिशें जारी हैं. 2010 से हर साल 29 अगस्त को International Day against Nuclear Tests मनाया जाता है. मतलब परमाणु परीक्षण के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय दिवस. संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसका ऐलान 2 दिसंबर 2009 को एक प्रस्ताव पास करके किया था.
साल में 365 (या 366) दिन होते हैं. तो 29 सितंबर ही क्यों चुना गया? यही सवाल हमारे दिमाग में आया. हमने ये जाना.
बात ऐसी है कि 1991 में 29 सितंबर को ही कज़ाकिस्तान में मौजूद दुनिया की सबसे बदनाम और खतरनाक न्यूक्लियर टेस्ट साइट ‘सेमिपलातिंस्क’ को बंद करने का ऐलान किया गया था. 1945 में अमेरीका के जापान पर बम गिराने के बाद की भयानक मानवीय त्रासदी के बावजूद दुनिया में न्यूक्लियर बम बनाने की होड़ लग गई. 1948 में सोवियत यूनियन ने कज़ाकिस्तान में ज़मीन का एक बड़ा सा (बेल्जियम जितना) पट्टा देखकर न्यूक्लियर टेस्ट साइट बना ली. उसे ये नाम दिया ‘सेमिपलातिंस्क- 21’. इसे STS या पॉलिगॉन भी कहते हैं. यहां से कुछ 150 किलोमीटर दूर टेस्ट साइट पर काम करने वाले तकरीबन 20,000 वै ज्ञान िकों, इंजीनियरों और फौजियों के लिए कुर्चातोव शहर बसाया गया.
सेमिपलातिंस्क में सोवियत यूनियन ने 456 न्यूक्लियर टेस्ट किए. ज़मीन पर और हवा में 116 टेस्ट किए गए. इस पर 1963 में बैन लगा तो ज़मीन में गहरी सुरंगें बना कर टेस्ट करने लगे. कई बार तो सिर्फ इसलिए न्यूक्लियर बम दाग दिया जाता कि पता चले कि बम के बाजू में दूसरा बम फट गया तो क्या होगा! कई बार ये देखने के लिए बम दागा जाता कि बम ढंग से नहीं फटा तो क्या होगा? इस सब की वजह से ये दुनिया में सबसे ज़्यादा न्यूक्लियर रेडिएशन वाली जगह बन गई.
ये सब शांति के नाम पर होता था!
सोवियत संघ का मानना था कि परमाणु हथियार शांति (?) के लिए ज़रूरी हैं. उन्होंने Nuclear Explosions for the National Economy नाम से एक पूरा प्रोग्राम चला रखा था जिसमें शांति (?) के कामों के लिए न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल होता था. मिसाल के तौर पर चगान टेस्ट कर के ये देखा गया कि न्यूक्लियर बम दाग कर झील बनाई जा सकती है क्या. झील बनी, जिसे आज चगान झील कहा जाता है, लेकिन इसका पानी हज़ारों सालों के लिए रेडियोएक्टिव हो चुका है. इसके किनारे जाना भी इंसानी सेहत के लिए हानिकारक है.
भांडा फूटा 1991 में
साइट पर सोवियत फौज का पहरा रहता था. किसी को अंदर जाने नहीं दिया जाता था. इसलिए आस-पास के लोगों को मालूम ही नहीं चला कि उनके बगल में चल क्या रहा है. टेस्ट होता तो उन्हें लगता कि भूकंप आया है. कई बार ऐसा हुआ कि न्यूक्लियर कचरा आस-पास के गावों पर गिरा. लेकिन गांव वाले अंजान रहे. आज भी यहां रहने वाले लोग बड़े पैमाने पर कैंसर के शिकार होते हैं. सोवियत संघ ने यहां बहुत सख्त पहरा रखा, इसलिए लोगों की सेहत पर पक्का डाटा आसानी से हासिल नहीं होता. लेकिन अलग-अलग स्रोत प्रभावितों की संख्या 15 लाख तक बताते हैं. इलाके के आसपास की हज़ारों एकड़ सदियों के लिए बंजर हो गई है.
सेमिपलातिंस्क का पूरा कच्चा चिट्ठा सामने आया जब 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ. सोवियत संघ के टूटने पर सोवियत फौज 500 कज़ाक फौजियों को टेस्ट साइट की चाबी पकड़ा कर निकल ली. कज़ाक बेचारे जानते ही नहीं थे कि अंदर क्या है. जब साइट पर गए तो देखा कि सोवियत न्यूक्लियर टेस्टिंग की लगभग पूरी मशीनें पीछे छोड़ गए थे. डेगेलेन माउंटेन कॉम्प्लेक्स में ऐसे कई बोर (ज़मीन में छेद) न्यूक्लियर कचरे के साथ यूं ही छोड़ दिए गए थे. एक छेद में तो एक पूरा का पूरा न्यूक्लियर बम छूटा हुआ था.
इससे डर पैदा हो गया कि ये न्यूक्लियर मटीरियल गलत हाथों में पड़ गया तो इसका इस्तेमाल आतंक फैलाने के लिए भी हो सकता है. डर था तो अमरीका, कज़ाकिस्तान और रूस साथ में आए और इस साइट की सफाई शुरू की. 17 साल चलने के बाद ये प्रोग्राम 2012 के अक्टूबर तक चला. आज साइट पर मौजूद ज़्यादातर न्यूक्लियर कचरा सुरक्षित कर लिया गया है. छेद कॉन्क्रीट से भर दिए गए हैं.
सफाई पूरी होने के बाद यहां पत्थर का स्मारक बनाया गया. इस पर अंग्रेज़ी, कज़ाक और रूसी भाषा में लिखा हैः
” 1996-2012. दुनिया पहले से ज़्यादा सुरक्षित हो गई है. ”
साभार: द लल्लनटॉप