हमें बचपन से अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस और जापान जैसे देशों का हवाला देते हुए बताया गया है कि ये देश दुनिया में अव्वल हैं. इन देशों के इतिहास और संविधान पर नजर डालने पर पता चलता है कि ये सिर्फ तकनीकी सम्पन्नता या रिच हिस्ट्री के चलते महान नहीं बने हैं. बल्कि ये उस खुलेपन्न और आजादी की वजह से महान बने हैं जो वहां की सरकारों ने अपने नागरिकों को दे रखी हैं. अब हमारा देश भी इस मामले में एक कदम आगे बढ़ गया है. 24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया है. इसका सीधा सा मतलब है कि निजता का अधिकार अब संविधान के अनुच्छेद 21 के जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ही हिस्सा है. एक सामान्य आदमी के लिए इस फैसले की क्या अहमियत है, आइए जानते हैं.
1. आधार कार्ड
मैं हरदोई के हरपालपुर गांव का रहने वाला हूं. मुझसे आधार बनवाने के लिए कहा जा रहा है, लेकिन मैं आधार कार्ड नहीं बनवाना चाहता हूं.
सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि करीब 13.5 करोड़ आधार कार्ड से डाटा लीक हो गया है। क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी ने भी आरोप लगाए थे कि उनका आधार कार्ड का डाटा लीक हो गया है, जिस पर केंद्र सरकार को भी दखल देना पड़ा था. ये किसी भी आम आदमी के साथ हो सकता है. 24 अगस्त को आए फैसले के बाद आधार पर भी बहस की गुंजाइश शुरू हो गई है. सरकार की ओर से अभी तक 92 योजनाओं के लिए आधार कार्ड अनिवार्य किया गया है. आधार के तहत लोगों को निजी सूचनाओं के साथ बायोमैट्रिक्स यानी फेस डिटेल्स, अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के निशान देने पड़ते हैं. आधार को इनकम टैक्स के साथ ही ट्रेन, हवाई टिकट, क्रेडिट कार्ड और अन्य कई अन्य जगहों पर जरूरी कर दिया गया है. आधार की अनिवार्यता और बायोमैट्रिक्स के सरकारी डेटाबेस को प्राइवेसी के खिलाफ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फाइल हुई थी. प्राइवेसी के मामले पर बनी 9 जजों की बेंच के फैसले के बाद अब पांच जजों की बेंच ‘आधार’ पर सुनवाई करेगी.
2. सेक्शुअल ओरिएंटेशन
मैं फैशन डिजाइनर हूं. मुंबई में रहता हूं. गे हूं.
अभी तक गे होना आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध है. अब आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध घोषित करने का मामला फिर से कोर्ट में आ सकता है, जो एलजीबीटी समुदाय के लिए राहत भरा हो सकता है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा है कि एलजीबीटी समुदाय का सेक्शुअल ओरिएंटेशन जीवन जीने के अधिकार में निहित है. आईपीसी की धारा 377 का मामला पांच जजों की बेंच के सामने लंबित है. अब यह मामला फिर से सामने आ सकता है.
3. खाने-पीने और कपड़े पहनने की आजादी
मैं स्टूडेंट हूं. केरल में रहता हूं. बीफ खाता हूं
मुझे बीफ खाना पसंद या फिर मैं शराब पीता हूं या फिर मैं आड़े-तिरछे, छोटे-बड़े कपड़े पहनता हूं, ये मेरा व्यक्तिगत मसला है. देश में बहस चल रही है कि कोई बीफ खाए या न खाए. शराब पिए या न पिए. लड़कियां जींस या फिर छोटे कपड़े पहने या न पहने. अभी पिछले ही साल नोएडा के दादरी में ही भीड़ ने अखलाक की पीटकर हत्या कर दी थी. इसके पीछे जो वजह बताई गई थी, उसमें कहा गया था कि अखलाक के फ्रिज में बीफ था. 24 अगस्त को जो फैसला आया है उसमें जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि कोई क्या खाएगा, यह उसकी निजता का अधिकार है. इससे यह साफ हो गया है कि बीफ खाने या शराब पीने के मुद्दे पर एक नई बहस सामने आएगी.
4. इच्छा मृत्यु की स्वतंत्रता
मेरी मां पिछले 10 साल से वेंटिलेटर पर है, वो अब इच्छा मृत्यु चाहती है
इस तरह के मामले अक्सर कोर्ट के सामने आते हैं. 24 अगस्त को फैसले के दौरान जस्टिस जे चेलमेश्वर ने कहा कि मेडिकल के आधार पर जीवन जीने से इनकार करना या फिर किसी तरह से अपने जीवन को खत्म करने का अधिकार भी किसी की निजता के अधिकार में ही आता है. यह मामला अरुणा शानबाग वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया का था, जो 7 मार्च 2011 को सामने आया था. अरुणा शानबाग एक केईएम अस्पताल में नर्स थी. उसी अस्पताल की डॉग रिसर्च लैबोरेटरी में सोहनलाल काम करता था. उसने अरुणा पर हमला कर दिया और रेप की कोशिश की, जिसके बाद अरुणा की आंख की रोशनी चली गई. बाद में वो कोमा में रही. 42 साल तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद उसने कोर्ट से इच्छा मृत्यु मांगी, लेकिन नहीं मिली. हालांकि 18 मई 2015 को अरुणा की मौत हो गई. अब 24 अगस्त के निजता के अधिकार के फैसले के बाद इच्छा मृत्यु के मामले में भी फैसला आ सकता है, जिसकी सुनवाई पांच जजों की बेंच के सामने चल रही है. इलाज से इनकार करने के अधिकार को भी कोर्ट इसी साल मार्च में मना कर चुकी है. निजता के अधिकार के बाद इस मामले में भी नई बहस शुरू हो जाएगी.
5. अबॉर्शन की इजाजत मिल सकती है
मैं छह महीने की गर्भवती हूं, लेकिन अबॉर्शन कराना चाहती हूं
कभी रेप केस, तो कभी नासमझी की वजह से बालिग या नाबालिग लड़की को अबॉर्शन की जरूरत पड़ जाती है. ऐसे में अभी तक का कानून यही कहता है 20 हफ्ते से ज्यादा की प्रेगनेंसी होने पर अबॉर्शन नहीं हो सकता. विशेष परिस्थितियों में कोर्ट ही इस मामले में फैसला करती है. निजता का अधिकार लागू हो जाने के बाद गर्भपात पर महिला के नियंत्रण का मसला भी उठ सकता है, जिससे महिलाओं को राहत मिल सकती है.
6. सोशल साइट्स पर डाटा लीक का मामला
मैं फेसबुक इस्तेमाल करता हूं, लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरी निजी जानकारी किसी और तक पहुंचे
अभी तकनीक वॉट्सऐप और फेसबुक का डाटा किसी न किसी तरह से सार्वजनिक हो जाता है. फेसबुक पर अपलोड हमारी किसी भी जानकारी का लोग गलत इस्तेमाल कर सकते हैं. 24 अगस्त को जब निजता के अधिकार के फैसले पर सुनवाई हो रही थी, तो इस दौरान जस्टिस कौल ने डाटा के निजी हाथों में जाने पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि फेसबुक और वॉट्सऐप जैसी सोशल साइट पर हम जो कुछ भी शेयर करते हैं, वह गोपनीय रह सकता है और वह सार्वजनिक भी हो सकता है और ऐसा होना भरोसे के टूटने जैसा है. वॉट्सऐप और फेसबुक पर डाटा लीक होने का मामला पांच जजों की दूसरी बेंच के सामने लंबित है. दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 सितंबर,2016 को एक आदेश दिया था जिसके मुताबिक वॉट्सऐप अपनी नई प्राइवेसी पॉलिसी लागू कर सकता है. लेकिन 25 सितंबर, 2016 तक एकत्रित हुए डाटा को फेसबुक या अन्य कंपनियों को शेयर नहीं कर सकता है.
7. डाटा शेयर करना
मैं मोबाइल इस्तेमाल करता हूं, हर रोज मुझे विज्ञापन के मैसेज आते हैं
आप मोबाइल इस्तेमाल करिए, जीमेल इस्तेमाल करिए या फिर कुछ और, वहां से आपका डाटा लेकर कभी घर बेचने वाले लोग तो कभी मोबाइल बेचने वाले लोग आपको परेशान करते हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत में अभी तक डाटा की सुरक्षा को लेकर कोई कानून नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के दौरान सरकार से ये उम्मीद जताई है कि वो डाटा को लेकर निजता और सरकार की जरूरतों को ध्यान में रखकर एक बैलेंस सिस्टम बनाए. इस दौरान कोर्ट को बताया गया है कि मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक एंड इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी ने डाटा प्रोटेक्शन के लिए एक कमिटी गठित की है.
साभार: द लल्लनटॉप