डिप्लोमेसी यानि कूटनीति. दो देशों के बीच मधुर संबंध बने रहें, इसके लिए इसका प्रयोग किया जाता है. भारत भी इसका खूब इस्तेमाल करता है. पर अबकी बार तरीका थोड़ा हटके है. इसे आप कल्चरल डिप्लोमेसी कह सकते हैं. इसके तहत भारत कई साउथ ईस्ट एशियन देशों की ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरों को संवार रहा है. इसका जिम्मा उठाया है भारतीय पुरातत्व विभाग यानी ASI ने. भारत के लिहाज से महत्वपूर्ण इन सांस्कृतिक स्थलों को बचाने में एएसआई UNESCO ( United Nations Educational, Scientific and Cultural Organisation) की वर्ल्ड हेरिटेज कमिटी की मदद भी ले रहा है. एक नजर ऐसे ही 5 प्रॉजेक्ट्स पर-
— Narendra Modi (@narendramodi) September 6, 2017
6 सितंबर को प्रधानमंत्री का म्यांमार से किया हुआ ट्वीट.
1. ता प्रोम मंदिर, कंबोडिया
12-13वीं सदी में कंबोडिया के अंकोर में बने इस मंदिर को पहले राजविहार कहा जाता था. इसे ख्मेर वंश के जयवर्मन सप्तम ने स्थापित करवाया था. इसे यूनेस्को (UNESCO) ने साल 1992 में अपनी हेरिटेज साइट्स वाली लिस्ट में जगह दी. भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसको संरक्षित करने का काम 2004 में शुरू किया था, जो अब तक चल रहा है. इस मंदिर की बाउंड्री के अंदर आने वाली नौ साइट्स का काम निपट चुका है. इस प्रॉजेक्ट का फिलहाल तीसरा फेज़ चल रहा है. इसमें आईआईटी मद्रास की भी मदद ली जा रही है. भारतीय सांस्कृतिक मंत्रालय अब तक इसके लिए 34 करोड़ रुपए जारी कर चुका है.
2. चाम स्मारक, वियतनाम
चंपा वंश के शाषकों ने 4-14 सदी के बीच इन स्मारकों को बनवाया था. 2010 में भारत और वियतनाम के बीच हुए कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत एएसआई इसे भी रेनोवेट कर रहा है. 2010 में पुरातत्व विभाग की एक टीम वहां गई और इसकी जांच कर लौट आई थी. इस पर काम 2014 में एमओयू साइन होने के बाद शुरू हुआ. यूनेस्को हेरिटेज साइट की लिस्ट में शामिल इन स्मारकों के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने तकरीबन 14.21 करोड़ रुपए दिए हैं.
3. तिरुकेतीश्वरम मंदिर, श्रीलंका
श्रीलंका के मन्नार में बसा ये शिव मंदिर रामायण काल का माना जाता है. कहा जाता है कि रावण वध के बाद अयोध्या जाने से पहले भगवान राम को बुरे सपने आने लगे थे. इसका कारण ये था कि रावण ब्राह्मण था और श्रीराम ने ब्राह्मण वध किया था. इन सपनों से बचने के लिए राम जी ने भगवान शिव की आराधना की, जिसके बाद शिव जी ने उन्हें इस दोष से मुक्त होने के लिए चार जगहों ( मनावरी, तिरुकोनेश्वरम, तिरुकेतीश्वरम और रामेश्वरम) पर शिवलिंग स्थापित करने को कहा. यही मान्यता इस मंदिर से जुड़ी हुई है.
भारत-श्रीलंका के बीच हुई एक संधि के बाद इसे भी संरक्षित करने का फैसला लिया गया. अगस्त 2010 में पुरातत्व विभाग ने इस पर काम शुरू किया. इसके लिए भारत ने 13.35 करोड़ रुपए दिए हैं.
4. वाटफू मंदिर, लाओस
ये मंदिर 5वीं सदी में स्थापित हुआ था, लेकिन इसका फिलहाल जो स्ट्रक्चर है वो 11-12वीं सदी का है. ये मंदिर साउथ लाओस में बसा हुआ है और मान्यताओं के अनुसार हिंदू मंदिर है. इस प्रॉजेक्ट पर भारत ने 2009 में काम शुरू किया था और इसके पहले फेज का काम पूरा हो चुका है. इसके संरक्षण पर करीब 18.5 करोड़ रुपए का खर्च आने के आसार हैं.
5. पशुपतिनाथ मंदिर, काठमांडू
नेपाल में बागमती नदी के किनारे बसे भगवान शिव के इस मंदिर को दीमकों के खा जाने के बाद लिच्छवी वंश के राजा शुपुस्प ने दोबारा से 15वीं सदी में बनवाया था. नेपाल के देवता और भगवान शिव के रूप भगवान पशुपति के इस मंदिर को हिंदुओं का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है. इस मंदिर को 1979 में यूनेस्को ने अपनी हेरिटेज साइट की लिस्ट में शामिल किया था.
2014 में सार्क ( SAARC- South Asian Association For Regional Cooperation) सम्मेलन से प्रधानमंत्री के वापस लौटने के बाद विदेश मंत्रालय ने इस मंदिर को संरक्षित करने का फैसला किया. इसके बाद एक समझौता हुआ और खर्चे का एस्टीमेट बनाया गया जो तकरीबन 24.50 करोड़ था. जल्द ही इस पर भी पुरातत्व विभाग काम शुरू करेगा.