2013 में एक ऐसा व्यक्ति राजनीति और व्यापार के चक्रव्यूह में फंसा जो 2014 में पीएम बने नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया का चेहरा हो सकता था. उस व्यक्ति ने दस सालों के अंदर भारत में 10 वर्ल्ड क्लास स्टॉक एक्सचेंज खड़े किए थे जो साउथ अफ्रीका और सिंगापुर तक फैले हुए थे. ये कारनामा दुनिया में किसी ने नहीं किया था. यूआईडी के जनक और फिर से इंफोसिस में शामिल नंदन निलेकणी ने अपनी किताब इमैजिनिंग इंडिया में इस व्यक्ति की बहुत बड़ाई की थी.
2013 में ही इस व्यक्ति को जेल जाना पड़ा. स्कैम के आरोप में. इनका नाम था जिग्नेश.
सच क्या था?
मुंबई के कांदिवली से निकला लड़का जो इनोवेशन का मास्टर था या फिर 5600 करोड़ रुपये के NSEL स्कैम का मास्टरमाइंड था ये?
ह्वार्टन से पढ़े पत्रकार शांतनु गुहा रे ने इस मामले की पड़ताल कर The Target नाम से किताब लिखी है. शांतनु को इन्वेस्टिगेटिव पत्रकारिता में तीन दशक से ऊपर हो गए हैं. 2011 में उन्होंने कोल स्कैम पर खुलासा किया था. दिल्ली में हुए एयरपोर्ट स्कैंडल का भी खुलासा किया था. वो महेंद्र सिंह धोनी की बायोग्रफी Mahi भी लिख चुके हैं. क्रिकेट के ही काले धन पर भी किताब लिख चुके हैं. पहले ही बता दें कि शांतनु ने जिग्नेश शाह की तरफ के तर्क पेश किये हैं, पर पड़ताल उनकी अपनी है. जिग्नेश के तर्क पब्लिक में नहीं हैं. पब्लिक में सरकार और कोर्ट की बातें हैं. शांतनु ने इसके लिए वो बातें रखी हैं, जो खोजने पर ही मिलती हैं. इसके लिए उन्होंने अखबारों और सरकारी कागज़ों की रिपोर्ट भी दी है. किताब में लिखी हर बात शांतनु की खोज है.
क्लियर कर दें कि ये वन साइडेड किताब है. सरकार के तर्क कहीं शामिल नहीं हैं.
2013 में जब 1300 इन्वेस्टर्स के पैसों को लेकर नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड का घोटाला उछला तो कमॉडिटीज़ एक्सचेंज के हीरो जिग्नेश शाह को इसी मामले में दो बार जेल जाना पड़ा. चोर-चिकारों के साथ रातें गुजारनी पड़ी. पुलिस की कड़ी पूछताछ का सामना करना पड़ा. साथ ही सामना करना पड़ा कॉर्पोरेट की दुनिया में अपमान का, जहां कुछ दिन पहले तक ही वो सम्माननीय व्यक्ति थे. शांतनु के मुताबिक जिग्नेश को बर्बाद किया गया था. कॉर्पोरेट के कहने पर सरकारी अफसरों और नेताओं द्वारा.
शांतुनु के मुताबिक:
NSEL की समस्या को तीन लोगों- पी चिदंबरम (तत्कालीन वित्तमंत्री), के पी कृष्णन (एडिशनल सेक्रेटरी, वित्त मंत्रालय) और रमेश अभिषेक (चेयरमैन, फॉरवर्ड मार्केट कमीशन) ने इस्तेमाल किया जिग्नेश शाह के साम्राज्य को खत्म करने के लिए. जिस पर उनकी पहले से नजर थी.
पर इस समस्या के असली जनक थे वो ब्रोकर्स जिन्होंने फर्जी प्रोडक्ट और फर्जी कस्टमर बनाया था. बोगस ट्रेडिंग हुई और बाकी लोगों के पैसे फंस गए. जांच हुई पर कोई ब्रोकर नहीं फंसा बल्कि जिग्नेश को फंसा दिया गया. पर किसी भी स्कैम में जिग्नेश का नाम नहीं आ रहा था, बल्कि ब्रोकर्स का ही आ रहा था.
इस किताब में कई तार्किक प्रश्न उठाये गए हैं पर कहीं से भी दूसरे पक्ष को नहीं बताया गया है कि जिग्नेश की वजह से जो समस्या खड़ी हो रही थी उसका क्या इलाज थाः
#1. क्या जिग्नेश अपनी जगह पर पूरी तरह सही थे?
#2. क्या सरकार एक व्यक्ति को बढ़ावा देने के लिए दूसरे को दबाने लगती है?
#3. क्या सरकार से लड़ने वाला व्यक्ति इसी अवस्था को प्राप्त होता है?
इन सारी चीज़ों को समझने के लिए ये किताब एक बार पढ़ना ज़रूरी है. अब बिजनेस और राजनीति के घालमेल पर कई किताबें आ रही हैं. परंजय गुहा ठाकुर्ता ने भी रिलायंस को लेकर ‘गैस वार्स’ लिखी थी. जोसी जोसेफ ने ‘फीस्ट ऑफ वल्चर्स’ लिखी थी. ये सारी किताबें भारत के एक दूसरे पहलू को समझने में मदद करती हैं.