कहा जाता है की बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं अगर इन्हें सही समय पर सही आकार न दिया जाये तो ये बिखर जाते हैं। “लाइट दे लिट्रेसी” संगठन ने लाखों बच्चों को एक भविष्य दिया है। बता दें लाइट दे लिट्रेसी- "एक आशा नवनिर्माण की” एक प्रयास है उन बच्चों के लिए जो शिक्षा से वंचित है और जिनको शायद शिक्षा का महत्व नहीं पता, ऐसे बच्चों को शिक्षा प्रदान करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए इस संगठन की शुरुआत की गई। इस प्रयास की शुरुआत 2012 में झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने से हुई और 27 सितंबर, 2014 के बाद से इसे एक NGO का रूप दिया गया जिसका नाम "लाइट दे लिटरेसी" रखा गया । 'लाइट डे लिट्रेसी' का अर्थ है "साक्षरता का प्रकाश" एक ऐसा प्रकाश जो अशिक्षा के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश भर समाज को सशक्त और शिक्षित बना सके।
लाइट दे लिट्रेसी में लगभग 1500 कार्यकर्त्ता हैं जो कि प्रतिदिन 800 से 1000 बच्चों को रोज़ अलग अलग जगह दिल्ली, गाज़ियाबाद, नॉएडा, ग्रेटर नॉएडा, अजमेर, गोरखपुर, लखनऊ, जमशेदपुर में पढ़ाते हैं ताकि हर वंचित बच्चा शिक्षा की अहमित को जान पाए।
लाइट दे लिट्रेसी ने लाखों बच्चों को सिखाया है कि झुग्गियों के बाहर भी एक ज़िंदगी है। साथ ही पढ़ाई की ज़िंदगी में क्या अहमियत है इससे भी बच्चों और उनके परिवार को अवगत कराया है। आज हम आपसे ऐसे ही दो मासूमों की कहानी साझा करने जा रहे हैं जिनकी ज़िंदगियाँ “लाइट दे लिट्रेसी” ने बदलीं।
दिव्या पानी
दिल्ली मेरठ रोड पर झुग्गियों में रहने वाली दिव्या हर रोज़ दूसरे बच्चों को कंधे पर बस्ता, गले में पानी की बोतल ले जाते देखती तो ज़रूर थी पर पढ़ाई क्या है और ज़िंदगी में पढ़ाई की क्या अहमित है इस बात से वह बिल्कुल अंजान थी। दिव्या के पिता मजदूरी कर उसके पूरे घर का लालन-पालन करते हैं और माँ भी मजदूरी में पिता का हाथ बटातीं है।दिव्या की चार बहनें और एक भाई हैं।दिव्या के परिवार को मजदूरी की अहमियत तो पता थी पर पढ़ाई से ये कोसों दूर थे। लेकिन लाइट दे लिट्रेसी संगठन की टीम जब इन झुग्गियों में पहुंचीं और जब दिव्या का परिवार इनके संपर्क में आया तो मानों दिव्या के साथ पूरे परिवार की ज़िंदगी बदल सी गई। अब ये परिवार पढ़ाई और पढ़ाई के महत्त्व को समझता है।दिव्या की उम्र 14 वर्ष हैं और वो कक्षा आठ में पढ़ती हैं।
“लाइट दे लिट्रेसी” के साथ दिव्या का सफ़र दिव्या की ज़ुबानी
मेरा नाम दिव्या पानी है और मेरी उम्र 14 वर्ष है। मैं कक्षा आठ की छात्रा हूँ। मुझे आर्ट बनाना, डांस करना और खाना बनाना बेहद पसंद है। “लाइट दे लिट्रेसी” संगठन से मेरी मुलाकात आज से चार साल पहले हुई थी उसी समय से मैंने सही ढंग से पढ़ना और पढ़ाई के महत्त्व को समझना शुरू किया। तब से आज तक भैया-दीदी हर रोज़ शाम को हमारी झुग्गियों के पास आते हैं और हम सभी को पढ़ाते हैं।लाइट दे लिट्रेसी ने हर तरह से हमारी और हमारे परिवार की मदद की है फिर चाहे वो स्कूल की फीस भरना हो, तबियत ख़राब होने पर अस्पताल ले जाना हो, नए नए खेल सीखना हो या पढ़ाई के महत्त्व को बताना हो। लाइट दे लिट्रेसी एक परिवार की तरह हमेशा हमारे लिए खड़ा रहा हैं।हमारे साथ हर ख़ुशी और हर त्यौहार भी लाइट दे लिट्रेसी के भैया दीदी मनाते हैं।उन्होंने न केवल हमें पढ़ाई की अहमियत सिखाई बल्कि परिवार, खुशियां, त्यौहार सबका महत्त्व भी समझाया है।
लाइट दे लिट्रेसी से जुड़ने से पहले स्कूल जाना मेरे लिए बस एक काम था मन किया तो गई नहीं किया तो नहीं गई। पर जब पढ़ाई का महत्त्व समझा उसके बाद से स्कूल के प्रति रूचि बढ़ गई। मैं स्कूल में अच्छे नंबर ले कर आयी। बहुत से स्कूल के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया, खेल-कूद में भी कई बार जीत हासिल की।
लाइट से लिट्रेसी से जुड़ने के बाद सबसे पहले मैंने बात-चीत करना सीखा। पहले तो हमें ये भी नहीं पता था कि बड़ों से आप कर के बात करनी चाहिए।मैंने वो सारी छोटी-छोटी आदतें सीखीं जिसकी ज़िंदगी में बहुत ज़रूरत है।लाइट दे लिट्रेसी ने मुझे आत्मविश्वास जगाया।पहले मैं किसी के सामने कुछ बोलने से भी डरती थी पर आज मैं कहीं भी अपना पक्ष रखने से नहीं घबराती।
लाइट दे लिट्रेसी द्वारा जितने भी भैया-दीदी हमें पढ़ाते हैं वे सभी मेरे इडिअल हैं। और मैं भी बड़े हो कर इन की तरह टीचर या पुलिस ऑफिसर बनना चाहती हूँ।मेरा एक छोटा सा सपना है मैं आगे ज़िंदगी में एक स्कूल खोलना चाहती हूँ जिसमें खूब सारे बच्चे पढ़े और ज़िंदगी जीना सीखें।जो भैया और दीदी लोगों ने हमें सब सिखाया मैं भी गरीब बच्चों को सीखना चाहती हूँ।
पहले मेरा भी पढ़ाई में मन नहीं लगता था पर अब मुझे पढ़ने में बहुत मज़ा आता है। स्कूल से भी ज्यादा अच्छा यहाँ शाम को लगता है क्योंकि यहां हम केवल पढ़ाई ही नहीं करते बल्कि रोज़ नई-नई चीज़ें सीखते हैं।इससे पहले मानों ज़िंदगी पिंजरे के पंछी की तरह थी, “लाइट दे लिट्रेसी” ने हमें जीवन का असली आधार सिखाया। मैं “लाइट दे लिट्रेसी” के भैया-दीदी की जितनी तारीफ करूँ वो कम है।
मैं अपने साथ के सभी बच्चों को यही बोलना चाहती हूँ कि पहले खुद मन लगाकर पढ़ाई करो और आगे चलकर उन बच्चों को पढ़ाओ जिन्हें कोई पढ़ाने नहीं आता।
पिंकी बोरा
पढ़ाई ज़िंदगी में क्या अहमियत रखती है इसका एहसास या तो पढ़े-लिखे लोग या पढ़ते हुए लोग ही अच्छे से समझते हैं।लेकिन जिन्होंने पढ़ाई के बारे में कभी ठीक से जाना ही नहीं उन्हें ये एहसास ही नहीं होता की पढ़ाई क्या होती है।ऐसे ही कहानी है झुग्गी में रहने वाली 10 साल की पिंकी की।जिसे आज से चार साल पहले ये तक पता नहीं था कि पढ़ाई होती क्या है तो इसकी अहमियत समझना तो दूर की बात है।अपने माता- पिता और दो भाइयों के साथ पिंकी भी झुग्गियों की गुमनाम ज़िंदगी जीती आ रही थी।झुग्गियों के बाहर की दुनिया से पिंकी बिल्कुल बेखबर थी।फिर उसकी ज़िंदगी में “लाइट ने लिट्रेसी” ने उस उजाले की किरण की तरह दस्तक दी जिससे उसकी पूरी की पूरी ज़िंदगी बदल गई।
“लाइट दे लिट्रेसी” के साथ पिंकी का सफ़र पिंकी की ज़ुबानी
मेरा नाम पिंकी है और मेरी उम्र 10 साल है।मैं कक्षा छः की छात्रा हूँ। मुझे ड्रॉइंग करना और गाना गाना बेहद पसंद है। “लाइट दे लिट्रेसी” से मेरी मुलाकाता आज से चार साल पहले हुई थी।वो दिन मुझे आज भी याद है कुछ भैया लोग हमारे झुग्गियों में आये थे और उन्होंने मेरे जैसे कई बच्चों के माता- पिता से बात की और उन्हें समझया कि हर शाम वो हम बच्चों को पढ़ाएंगे।वही समय था जब मैंने पढ़ना शुरू किया और तभी से लाइट दे लिट्रेसी के भैया-दीदी हमें पढ़ा रहें हैं।उस दिन के बाद से ऐसा लगा की मानों ज़िंदगी की नयी शुरुआत हुई हो।लाइट दे लिट्रेसी हमारे लिए एक मात्र संगठन नहीं है बल्कि ये हमारा परिवार है, जो ज़रूरतें एक बच्चे की उसका परिवार पूरी करता है वो हमारे लिए लाइट दे लिट्रेसी ने पूरी की, फिर चाहे वो स्कूल की फीस भरना हो या फिर ज़िंदगी की मूल बातें सीखना हो।
लाइट दे लिट्रेसी से जुड़ने के बाद हमने वो सभी चीजें सीखीं और जानी जिसके लिए हमें पहले कभी मौका नहीं मिलता था।भैया और दीदी लोगों की वजह से मैंने JNV की परीक्षा पास की, बहुत सारे कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और काफी अच्छा प्रदर्शन भी किया। लाइट दे लिट्रेसी से जुड़ कर हमने जीवन का और पढ़ाई का महत्त्व जाना है।
मुझे याद है जब पढ़ाई के समय पहले दिन क्लास में भैया- दीदी ने जब हमसे हमारा परिचय लेना शुरू किया था तो उस समय हम लोग बस अपना नाम बता के चुप हो जाते थे। उसके बाद क्या बोलना हैं हमें समझ नहीं आता था। उस समय एक भैया ने हमें समझाया कि घबराओ नहीं जो समझ आता है बस वो बोलो उनकी ये बात मुझे बहुत ही अच्छी लगी और आज हम ये सभी चीज़े सीख चुके हैं।
मेरे इडिअल की बात की जाये तो लाइट दे लिट्रेसी में पढ़ाने वाले सभी भैया और दीदी ही मेरे इडिअल हैं। इन लोगों ने ही मुझे ज़िंदगी और पढ़ाई की अहमित बताई और ज़िंदगी की एक नई दिशा दिखाई।मैं भी बड़े हो कर बच्चों की पढ़ाई को लेकर कदम उठाना चाहती हूँ ताकि कोई भी वंचित बच्चा पढ़ाई से वंचित न रहे। मैं बड़े हो कर डॉक्टर बनना चाहती हूँ जिसके लिए में अभी से खूब मन लगा के पढ़ाई कर रहीं हूँ और मुझे भैया-दीदी इसके लिए पूरा सपोर्ट करते हैं।
लाइट दे लिट्रेसी से मिल कर मानों ज़िंदगी बदल सी गई पहले मुझे बहुत सी चीज़ें समझ नहीं आती थीं, हालाँकि कुछ चीज आज भी समझ नहीं आती पर आज मुझे पता है की मेरी समस्याओं का समाधान करने के लिए हमारे भैया दीदी तो हैं ही।इन्हीं लोगों की वजह से मैंने अच्छी और बुरी चीज़ों में फ़र्क करना भी सीखा है।
मैं बस अपने साथ के बच्चों को इतना ही कहना चाहती हूँ कि जो भी हमारी तरह गरीब तबके के बच्चे हैं वो भी हमारे साथ आ कर यहां पढ़ें और पढाई का महत्त्व जानें।
“लाइट दे लिट्रेसी न सिर्फ एक संस्था की तरह काम कर रही हैं बल्कि ये इस देश के बिखरे भविष्य को समेट कर उनकी ज़िंदगी और देश के भविष्य की सूरत बदलने का एक प्रयास कर रही है।”