जावेद हबीब. देश के सबसे मशहूर नाई. देशभर में उनके कई सलून हैं. उनके अब्बा जाहिर हबीब भी नाई रहे हैं. ऐसे-वैसे नहीं. कहते हैं कि वो नेहरू परिवार के बाल काटते थे. जावेद के नाम पर एक बिल फटा है. हुआ यूं कि उनके एक सलून ने एक विज्ञापन निकाला. इसमें कुछ देवी-देवता जैसी शख्सियतें सलून में बैठकर सर्विस लेती दिख रही हैं. गणेश जी तो साफ पहचान में आ रहे हैं. शेर पर एक देवी बैठी हैं, देखकर लगता है पक्का दुर्गा मां होंगी. जोर से बोलो जय माता की. आगे शायद लक्ष्मी जी भी हैं. शीशे के पास बैठी हैं. सफेद हंस के साथ सरस्वती जी भी आई हुई हैं.
एक और देवता हैं पोस्टर में. पास में मोर है, सो कन्फर्म है कि शिव-पार्वती पुत्र कार्तिकेय ही हैं. इस पोस्टर का आना था कि तलवारें निकल आई हैं. बहुत सारे लोग आहत हो गए हैं. जावेद हबीब को कोस रहे हैं. कह रहे हैं कि हिम्मत हो तो अपने ‘वालों’ के लिए ऐसा-वैसा बोलकर देखो. हमारी नजर में तो ये सारा गुस्सा गैरजरूरी है. इसमें अपमान वाली तो बात ही नहीं है. असल में इस विज्ञापन से वो क्लियर हुआ जो बहुत पहले साफ हो जाना चाहिए था. देवता लोग सचमुच सलून का इस्तेमाल करते होंगे.
देवता लोग कहीं न कहीं तो कटवाते ही होंगे अपने बाल
बात तो शीशे की तरह साफ है. सलून तो पक्का यूज करते होंगे. याद करो उनकी तमाम तस्वीरें. ये बात हमने मन से नहीं गढ़ी. उनकी तस्वीरों ने ही हमें ये बात बताई है. वो तस्वीरें जो आपके घर की दीवार के आले में रखी हैं. अगरबत्ती स्टैंड और दीये के पीछे. राम जी. कृष्ण भगवान. शिव जी. लक्ष्मी जी. सरस्वती जी. दुर्गा मां. याद कीजिए. एक बाल इधर से उधर दिखा है कभी. गाल पर दाढ़ी का एक बाल भी नजर नहीं आता. जो पुरुष देवता हैं, उनको दाढ़ी तो आती ही होगी. ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि दाढ़ी न आए. आती होगी, हटाते होंगे, तभी तो इतने ग्रूम्ड नजर आते हैं.
सारी लटें भी एकदम ठिकाने पर. चेहरे पर भी एकदम उजियारा. क्या ग्लो होता है. इस सबके लिए सलून की जरूरत नहीं पड़ती होगी क्या? जरूर पड़ती होगी. भगवान जब हमारे और आपके जैसे दिख सकते हैं, तो उनके शरीर का सिस्टम भी तो सेम होगा. बाल बढ़ते होंगे. गंदे भी होते होंगे. धुलना पड़ता होगा. दाढ़ी भी आती होगी. तो उसको कटवाए बिना कैसे क्लीन शेव दिखेंगे. हां, कौन से सलून में जाते होंगे या कि सलून वाला होम सर्विस देता होगा, इसको लेकर विवाद हो सकता है.
पोस्टर वाली बात तो हम आपको बता चुके हैं. सलून वाला मामला भी क्लियर हो गया. अब आगे की बात जानिए. लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा तो जावेद को सामने आना पड़ा. उनके मुताबिक, मामला कुछ ऐसा है कि देशभर में उनके कई सलून हैं. फ्रेंचाइजी वाले. तो इनमें से एक कोलकाता वाले सलून ने एक विज्ञापन निकाला. इसमें लिखा है, ‘गॉड टू विजिट जेएच सलून’. जे एच माने जावेद हबीब. आदमी और ब्रांड का सेम-टू-सेम नाम.
विज्ञापन का मतलब है कि देवता भी हमारे ही यहां आते हैं. इस पोस्टर में एक किनारे सरप्राइज गिफ्ट का कोना भी है. यही सलून का ऑफर है. 1 सितंबर से 31 अक्टूबर के बीच जो भी ग्राहक सलून आएंगे, उनको औचक तोहफा मिल सकता है. माने सरप्राइज गिफ्ट. आगे त्योहार का मौसम आ रहा है. ठीक आगे है दशहरा. फिर आएगी दीवाली. लेडीज स्पेशल करवा चौथ भी इसी बीच कभी आएगा.
जावेद हबीब के पास ‘गीता ज्ञान ’ वाला पोस्टर है शायद, कहते हैं कैंची ही उनका धर्म है
तो पूरा फेस्टिव सीजन आने को बेताब है. हर कोई चाहेगा सुंदर दिखे. बाल कटाना तो बेसिक सी बात है. बाकी ब्यूटी सर्विस भी तो लेंगे लोग. तो क्रिएटिविटी के दौर में सलून ने अपने दिमाग से निकालकर एक मस्त आइडिया चेंप दिया. वही, ‘देवता भी हमारे ही यहां आते हैं’. इस पोस्टर पर खूब हो-हल्ला मच गया है. जावेद ने सफाई दी है. कि उनकी फ्रेंचाइजी के सलून ने बिना इजाजत ये ऐड निकाला. उन्होंने माफी भी मांगी है. बोले कि मेरा तो बस एक ही धर्म है और वो है मेरी कैंची.
ये कैंची वाली बात हमको खास पसंद आई. हमारे गांव के घर के बाहर दीवार पर टंका है- कर्म ही पूजा है. हमने एक दफे पूछा था इसका मतलब. बाबा बोले कि काम करो अपना और मानो वही तुम्हारा भगवान है. हम समझ गए. लगता है जावेद हबीब को भी कोई यही ज्ञान दिया था. वो भी कैंची को ही धर्म मानते हैं. बहुत खूब करते हैं. गीता में भगवान कृष्ण ने कितनी बार ये ही बताया है. न समझें हो तो गीता पढ़िए.
मन में सोचो राम, तो मन में जो राम आ जाते हैं, वो कहां से आ जाते हैं?
एक बड़े आदमी हुए. आदमी से बढ़कर तो वो चित्रकार थे. बहुत फेमस. राजा रवि वर्मा. 1848 में पैदा हुए. केरल के किल्लीमनूर में. हमारे हिंदुस्तान की धरती में जितने चित्रकारों ने जन्म लिया, उनमें इनका नाम काफी मशहूर है. महाभारत और रामायण की कहानियां सबने सुनी थीं. इनकी तस्वीरें राजा रवि वर्मा ने बनाईं. रवि वर्मा ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया जो उनके तमाम कारनामों पर भारी है. देवी-देवताओं को उकेरने का काम. मजाक बात नहीं है. भक्ति सबके मन में होती है, लेकिन भगवान की कल्पना कौन कर पाता है. ऊपर से चेहरा-मोहरा ठीक से दिखाने का दबाव अलग. जाने कैसी बने. जाने लोगों को कैसी लगे. लेकिन शायद उस जमाने में लोग कम आहत होते थे. बात-बात में लोगों की भावना को ठेस नहीं लगती थी.
भगवान की फोटो को गौर से देखना, सलून वाली बात झूठी निकल जाए तो कहना
राजा रवि वर्मा ने तस्वीर बनाई और लोगों ने सोचा भगवान बिल्कुल ऐसे ही दिखते होंगे. कवियों की कविता ओं जैसे सुंदर. देखकर मन कहे कि वाह, क्या रूप है. इन तस्वीरों ने न केवल घरों में जगह बनाई. बल्कि हिंदुओं से पूछो कि फलां भगवान कैसे दिखते होंगे तो भक्क से राजा रवि वर्मा की पेंटिग वाले भगवान की छवि याद आती है.
हम सबके मन में भगवान की जो छवि है, वो रवि वर्मा की तस्वीरों से ही एक्सपोर्ट हुई है. एकदम इंसानों जैसे. अंतर बस इतना कि बहुत सुंदर, सुगढ़ और करीने से तैयार होकर फोटो खिंचवाई है. मनोहारी छवि वाले. हमारी कई पीढ़ियां इसी रूप में भगवान की पूजा करते-करते पार घाट लग गईं. वो तस्वीरें झूठी नहीं हो सकतीं. और बिना सलून गए भगवान लोग इतने मैंटेन्ड नहीं दिख सकते हैं. मुमकिन ही नहीं है. उम्मीद है कि बात आपकी भी समझ में आ गई होगी. अब सलून वाली बात पर नाराज होने की जरूरत नहीं. शुक्र मनाइए कि आपको नई, लेकिन सोलह आने सही बात पता तो लगी.
साभार: द लल्लनटॉप