अतीत हमारी स्मृतियों में हमेशा जीवित रहता है। कभी-कभी हम विचारों में ऐसा खो जाते हैं की कई युगों तक के विचार अपने मन मस्तिष्क में ला देते हैं ।
जिसके कारण बहुत देर तक हम अपने वास्तविक जीवन को छोड़कर एक दूसरे आभासी जीवन से जुड़ जाते हैं जो घटनाएं हमारे सामने घटित होती हैं या फिर जिन के विषय में हमने कहीं न कहीं सुना होता है ।
उनसे जुड़ कर हम उसे ही एकदम यथार्थ महसूस करने लगते हैं ऐसा ही कुछ कलावती के साथ होता है ,जब वह अपने पुत्री को लेकर अस्पताल से हवेली की ओर आती है तो उसे पुरानी वह सारी बातें याद आ जाती है जो कभी हवेली के बड़े बड़े दरवाजों मे बंद कर दी गई थी ।
क्योंकि वह उस परिवार का हिस्सा थी इसलिए हवेली के अंदर होने वाली जो भी बातें एवं कार्य थे कहीं ना कहीं वह उनसे अछूती नहीं रह सकती थी,
इसी कारण अवनी का जो उसने यौवन देखा वह इतना दर्दनाक था कि उसे वह भूल ही नहीं पाई इसी कारण से वह नहीं चाहती थी कि इस हवेली में फिर कभी बेटी का जन्म हो।
क्योंकि जब कलावती बेटी के जन्म के बारे में सोचती तो उसके सामने अवनी का हंसता खिलखिलाता चेहरा उसके आंखों के सामने आ जाता।
और वह ऐसा विचार ही छोड़ देती भले ही ठाकुर साहब अब इस दुनिया में नहीं है तो क्या हुआ ?वह तो एक लोकप्रिय प्रजा पालक और एक अच्छे पिता थे, उनके न रहने से हवेली और हवेली के अंदर रहने वालों की क्या सोच बदल गई ?या फिर उसी सोच के सहारे कलावती अपनी पुत्री को बड़ा करें या फिर उसके जन्म का विचार ही छोड़ दें ।
अचानक वह पुरानी यादों से बाहर आती है तो उसे महसूस होता है कि यह सब बीते दिनों की बातें हैं लेकिन अवनी का चेहरा और उसकी हंसी उसकी बातें पुत्री के जन्म के बाद से ही कलावती को बरबस याद आ जा रही थी ।
इस विषय में वह अखंड प्रताप से कहती भी है। लेकिन अखंडत भी यह कह कर टाल देते हैं की ठाकुर साहब का फैसला सबके लिए था और अब उन बातों को बहुत दिन हो गए तो शायद हमें उन्हें भूल जाना चाहिए जबकि कलावती भी अच्छी तरह जानती थी कि अखंड प्रताप भी भूले कुछ नहीं थे उन्हें आज भी अवनी की कमी हमेशा महसूस होती थी इन सब बातों को जानने के बाद बहुत दिनों तक तो उन्होंने ठाकुर साहब से बात ही नहीं की किंतु हवेली का हिस्सा होने के कारण वह भी कहीं ना कहीं इस गुनाह में शामिल थे, भले ही सुनंदा इन सब चीजों से अनजान थी लेकिन कहीं ना कहीं कलावती ने उसे इतना जरूर बताया था की अवनी इस हवेली का अगर हिस्सा ना होती तो शायद हमारे साथ रहती और जीवित रहती कभी-कभी कलावती को यह महसूस होता कि ठकुराइन ॎॎअम्माॎ ने यह सब कैसे बर्दाश्त किया फिर सोचती कि आखिर वह भी तो इसी हवेली का हिस्सा है उनकी रगों में भी तो उन्हीं ठाकुरों का रक्त दौड़ रहा है ।तो फिर वह अलग कैसे हो सकती हैं। किंतु मैं इन सब से अलग हूं भले ही मेरी रगों में ठाकुरों का खून हूं लेकिन मेरी सोच उनसे कहीं ज्यादा अलग है ।मैं अपनी बेटी के अधिकारों के लिए इस हवेली की मान मर्यादाओं को भी छोड़ने के लिए तैयार हूं कलावती यही सब सोचती रहती है तभी अखंड प्रताप आते हैं और कहते हैं अभी के अभी हमको हवेली चलना है कलावती ने पूछा डॉक्टर साहब ने जाने की छुट्टी दे दी क्या अखंड प्रताप ने कहा डॉक्टर साहब से तो मैंने कल ही छुट्टी ले ली थी बस कुछ formalities थी वह भी पूरी हो गई और अखंड प्रताप इतना कहकर उस नन्हीं सी बच्ची को गोद में उठाकर उसके माथे को चूम लेते हैं।
इधर हवेली में सबके मन में उत्सुकता रहती है कि कब नन्हीं सी बच्ची हवेली में कदम रखेगी सुनंदा भी बच्चों के साथ हवेली वापस आ जाती है, सब कलावती के घर आने का बड़ा बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं। ठकुराइन भी बैठकर अखंड प्रताप और कलावती के आने का इंतजार करती रहती है।
कलावती उस नन्हीं सी बच्ची को लेकर हवेली में प्रवेश करती हैं तभी अम्मा कहती है जरा देर रुक जाओ मैं बच्चे की नजर उतार लूं तो फिर अंदर लेकर आना ठकुराइन जैसे ही पास आती है वह बच्चे की नजर उतारती रहती हैं तभी बड़ी बड़ी आंखों से वह बच्ची कहीं एक ओर देखती रहती है नजर उतारने के बाद ठकुराइन बच्चे को चूम लेती हैं और जाकर बरामदे के में रखी कुर्सी पर बैठ जाती है।
तभी सभी बच्चे दौड़ कर और साथ में सुनंदा भी कलावती के समीप आते हैं और बच्चे को देखकर सब खुश हो जाते हैं थोड़ी देर के बाद अखंड प्रताप ने भी अपने हाथ में उस बच्ची को लिया और उसे एक छोटी सी झूले वाली पलंग जैसे बिस्तर पर लेटा दिया
बच्ची जोर से रोने लगती है किसी को कुछ समझ नहीं आता कि अचानक से बच्ची कैसे रोने लगी तभी उस बच्ची को देखते ही ठकुराइन अपनी अतीत की यादों में खो जाती हैं वह बच्ची उन्हें बिल्कुल अवनी की तरह दिख रही थी उसका चेहरा बिल्कुल अवनी का प्रतिरूप ही था ठकुराइन उसे चूमने के पश्चात शांत होकर एक सोफे पर बैठ जाती हैं। उनको
चुपचाप शांत बैठे देख कलावती उनकी मनः स्थिति को समझ जाती है वह अच्छी तरह जान जाती है कि कोई भी मां कैसी भी हो वह अपने बच्चे का बुरा कभी नहीं चाहती भले ही बच्चा कितना भी नालायक क्यों ना हो फिर चिरनिद्रा से भी तो ठकुराइन को बाहर करना जरूरी था।
कलावती बच्चे को सुनंदा की गोदी में देते हुए कहती हैं कि सारे बच्चे तो तुम्हारे ही पास रहते हैं अब इसको भी तुम अपने पास रख कर दिखाओ तो जानूं सुनंदा ने कहा बच्चे तो भगवान का प्रतिरूप होते हैं, अर्थात यह हमारी हवेली में लक्ष्मी बनकर आई है और हमेशा लक्ष्मी बन कर ही रहेगी।
कलावती ने कहा भगवान करे ऐसा ही हो और इतना कहने के बाद धीरे-धीरे उसके बालों को सहलाने लगती है वह बच्ची चुपचाप इधर-उधर देखने लगती है।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए प्रतिउतर छ्🙏क्रमशः।।।।