कभी कभी जीवन में हम अपनी मांगी मुरादे पूरी होते देख यह सोचते हैं कि शायद भगवान को भी यही मंजूर है।
लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि कभी-कभी भगवान को भी कुछ और ही मन्रजूर होता है। एक तरफ तो हम खुश होते रहते हैं और दूसरी तरफ हमारी तकदीर हमें रोने पर मजबूर कर देती है
। राजीव ढेर सारे फूलों का गटृठर सिर पर लादकर हवेली की तरफ तेज कदमों से बढ़ता जा रहा था मन ही मन आज वह बहुत प्रसन्न ना। जैसे उसके मन की कोई बड़ी मुराद पूरी होने जा रही थी।
जैसे ही वह हवेली के दरवाजे पर पहुंचता है। सामने ही अखंड प्रताप खड़े हुए मिलते हैं, राजीव क्यों देखते ही वह बड़े प्रेम से उसके समीप जाते हैं, और पूछते हैं माली काका की तबीयत अब कैसी है?
राजीव बोला बाबा की तबीयत में अब काफी सुधार है। अखंड प्रताप ने पास खड़े नौकर से कहा राजीव के सिर से गट्ठर उतरवा दीजिए और सारे फूलों को मंदिर में पहुंचा दीजिए
, राजीव ने कहा भैया आप चिंता मत करिए मैं खुद ही लेकर मंदिर में चला जाता हूं क्योंकि बापू ने कहा है कि ठाकुर साहब को खुद मैं अपने हाथों से माला पहनाकर उनसे आशीर्वाद लूं।
अखंड ने कहां ठीक है। जाऔ मंदिर चले जाओ पूजा शुरू होने वाली है। कुलदेवी की माला लाए हो ना? राजीव बोला हां भैयाजी, और मंदिर की ओर बढ़ गया,
मंदिर में पूजा की सभी तैयारियां हो चुकी थी । ठाकुर साहब पूजा पर बैठे हुए थे, घर की सभी महिलाएं नौकर नौकरानी पूजा के कमरे में इकट्ठा थी,
तभी राजीव पूजा के कमरे में आता है उसको आता देखकर ठाकुर साहब कहते हैं बहुत अच्छे समय पर आए अब जल्दी से कुलदेवी की माला निकालकर मुझे दे दो ताकि माला पहनाने के बाद मैं कुलदेवी को गुलाल लगा सकूं,
,,,,, फिर होली का त्यौहार शुरू हो, राजीव ने वैसा ही किया कुलदेवी को माला पहनाई गई जोर शोर से माता की आरती हुई उसके पश्चात सभी ने थोड़ा-थोड़ा गुलाल हाथों में लेकर माता को तिलक लगाया,,
उसके पश्चात ठाकुर साहब को सब लोग एक एक करके गुलाल लगाकर आशीर्वाद लेते हैं। राजीव भी ठाकुर साहब को गुलाब की माला पहनाकर गुलाल का टीका लगा देता है ।
ठाकुर साहब ने गुलाल लगवाकर अपनी जेब से कुछ पैसे निकालकर उसके हाथ में रखते हैं।और कहते हैं । जाओ ठकुराइन को भी माला पहनाकर आशीर्वाद लें लो राजीव एक माना देकर ठकुराइन की ओर जाता है।
ठकुराइन माला हाथ में लेकर कहती है ठीक है ठीक है और कुछ पैसे उसके हाथ पर रख देती है। और गुलाल लगा कर कहती है कि अपनी मां को भेज देना हवेली आकर त्यौहारी ले जायेगी
,केशव आते थे तो त्यौहारी भी ले जाते थे अब तबियत कैसी है? पहले से आराम है। ठकुराइन बोली तुम भी खाना खा कर जाना राजीव ने हां में सिर हिलाया,
उसके बाद घर के सभी सदस्य अपनी अपनी मालाएं राजीव से लेने लगे, नीलम और अवनी भी अपनी माला लेने राजीव के पास जाती है।
और पूछती है कि हमारी माना कौन सी है। राजीव कहता है कोई भी ले लीजिए जो आपको पसंद आए, नीलम बोली मुझे तो पीली फूलों की माला अच्छी लगती है।
अवनी बोली मुझे तो अपने ड्रेस से मैच करती हुई हि माला चाहिए। राजीव ने दो मालाएं निकाली एक पीली और एक सफेद दोनों अपनी-अपनी मालाएं लेकर पहन लेती हैं ।
और फिर रंग खेलने के लिए बड़ी उत्सुकता से बाहर की ओर दौड़ती हैं। राजीव उनको बहुत ध्यान से देखता रहता है। और मन में सोचता है ।
कि आज इनको देखकर लगता ही नहीं कि ये हमें जानती भी है। सभी को मालाए देकर राजीव बाहर आता है। बाहर नीलम उसका ही इंतजार कर रही थी।
जैसे ही वह बाहर निकला नीलम ने ढेर सारा रंग बाल्टी में घोलकर उसके ऊपर डाल दिया। वह रंग से सराबोर हो गया हवेली आने के लिए उसने अच्छे कपड़े पहने थे
।उसे नीलम के ऊपर गुस्सा भी आ रहा था। तभी ठकुराइन आ जाती है । राजीव को इस तरह देखकर कहती है कि ये किसकी हरक़त है। नीलम बोली चाचीजी होली है।
ठकुराइन कहती है, तुमने बेचारे। के कपड़े खराब कर दिए ये तो गलत है वह तो माला देने आया था ।न कि होली खेलने, अवनी को भी नीलम की यह हरकत अच्छी नहीं लगी उसने नीलम से कहा यार तुम्हे ऐसे उसके ऊपर रंग नहीं डालना चाहिए था।
, ठाकुराइन ने राजीव से कहा अब पहले होली खेल लो उसके बाद कपड़े बदल कर आना तब खाना खा कर जाना, राजीव और लोगों के साथ होली खेलने में व्यस्त हो जाता है,
गांव के लड़के लड़कियों की लगातार कई टोलियां बारी बारी आई और सब मिलकर खूब जमकर रंग खेलने लगते हैं। लेकिन राजीव कि नजरें अवनी से हट नहीं रही थी।
नीलम यह देखकर, अवनी से कहती है, कि आज तो आग दोनों तरफ लगी है।, अवनी कहती है कि आज तुझे ही रंग का नशा चढ़ गया है।
नीलम बोली तुझे दिख नहीं रहा है या तो तुम देखना नहीं चाहती, अखंड प्रताप ने सब होली खेलने वालो को ठंडई पिलाई जिसमें भाग पड़ी रहती है।
भांग वाली ठंडई राजीव को भी देते हैं। और वह मना करने लगता है। लेकिन अखंड प्रताप उसके हाथ में जबरदस्ती दे देते हैं वह पी लेता है
, एक तो रंग का नशा ऊपर से भांग का नशा राजीव कुछ बहक सा जाता है। और नीलम को गुलाल लगा कर अवनी की ओर मुखातिब होता है।
जब तक वह कुछ समझ पाती राजीव उसके दोनों रंगों से पुते गालो पर गुलाल मल देता है।सब इतने होली खेलने में मस्त थे कि कोई देख भी नहीं पाया ,,,,
कि राजीव ने अवनी के गालों को छूकर ठाकुरों की शान पर आघात किया है। अवनी को एक अजीब सी अलग अनुभूति होती है।
किंतु यह सोचकर कि सब भांग के नशे में है वह कुछ भी नहीं कहती लेकिन नीलम उसके पीछे ही पड़ जाती है कहती है उसने अपने प्यार को सबके सामने दिखा दिया अवनी अब तेरी बारी है ।
अवनी कहती है तूने भांग तो नहीं पी रखी है। मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगी।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए प्रतिउत्तर ॽॽ