आज बच्चों के घर आते ही कैसी रौनक आ गयी अम्मा बोली मेरे राजकुमार आ गये,,,,,
, सुनंदा ने पैर छुए और बच्चे अपनी दादी से चिपक गये l उधर कलावती बरबस पुरानी यादों में खो जाती है। वो सुन्दर चांद जैसी सूरत, बड़ी बड़ी आंखें और छरहरी काया वाली अवनी
जी हां यह वही थी , जिसका जिक्र करने पर अखंड ने कलावती को चुप करा दिया यहां प्रताप कहना उचित नहीं होगा क्योंकि ??
, ठाकुर और जमींदारों के इन साहसिक नामों की ओट में जाने कितने कायरता पूर्ण कार्य किए जाते हैं।
अवनी एक मदमस्त अल्हड़ लड़की जिसका जन्म ठाकुर परिवार में तो हुआ किन्तु इसके लिए वह अपने भाग्य पर इतराएं या उसे कोसें?
क्योंकि जन्म पर तो किसी का अधिकार होता नहीं फिर हम क्यों किसी के जन्म के आधार पर उसका बँटवारा करनेबैठ जाते हैं I
ख़ैर यह पीढ़ी दर पीढ़ी की सामाजिक व्यवस्था है जो इसके विपरीत जाता है वह या तो इतिहास बनता है या फिर यूँ ही किसी कहानी का हिस्सा l
जी हाँ जिस साख की मर्यादा को हिलाने की बात हो रही है वह इसी अवनी से शुरू होती है l स्कूली पढ़ाई पूरी हो गई है, ठाकुर साहब बोले ठकुराईन अब क्या कहती हो?
तभी अवनी दौड़ते हुए आती है l बाबा कहना क्या है?? अब तो मैं भी भैया (अखण्ड प्रताप एवं रुद्र प्रताप) की तरह शहर पढ़ने जाऊँगी l ठाकुर साहब ने ठकुराईन की ओर देखकर कहा पूरे गाँव की ल़डकियों में अव्वल आई है!
हमारी बेटी, ल़डकियों में हाँ क्योंकि अपना माली है ना केशव, उसके बेटे ने अव्वल दर्जा हासिल किया वही जिसकी फीस तथा किताबों का प्रबंध आपने किया भले हो लेकिन होनहार तो वह बचपन से था l
ठाकुर साहब बोले केशव बेचारा अब बूढ़ा हो गया है अब उससे बगीचे की देखरेख नहीं होती l इसलिए मदद कर दी कम से कम पढ़ लिख कर शहर में कमाएगा,
तभी बैठक में केशव अपने बेटे को लेकर दाखिल होता है और झुककर प्रणाम करके कहता है "मालिक इसको आशीर्वाद दीजिये इसने गाँव में अव्वल दर्जा हासिल किया है"l
इतना कहकर उसकी आँख छल छला आई, ठाकुर साहब बोले "अरे !ये क्या केशव ये तो बधाई का पात्र है "l ठाकुर साहब के साथ सभी की नजरें उसपर टिक जाती हैं।
निगाह नीची किए गोरे रंग का लंबा तथा आकर्षक युवा, अवनी उसकी ओर देखती है और मन ही मन सोंचती है "अच्छा बच्चू ये है जिसकी वजह से मेरा दर्जा दूसरा हो गया"
और मुह बनाकर चली जाती है, ठकुराइन ने मिठाई का डिब्बा जमीन पर रखते हुए कहा केशव इसे उठाकर घर लेते जाना और बच्चों में बाँट देना, केशव बहुत प्रसन्न हुआ ।
l ठाकुर साहब अत्यंत दयालु व्यक्ति थे उन्होने दो हजार का नोट निकाल कर उस बालक की ओर बढ़ाया और पूछा क्या नाम है तुम्हारा ?
जी ! राजीव किन्तु गाँव में सब राजू कहते हैं नोट थमाते हुए, लो तुम्हारा इनाम राजीव ने हाथ बढ़ाकर पैसे लिए और धन्यवाद किया तथा सभी को प्रणाम कर चला गया l
उसके जाने के बाद अवनी अपने भाई से कहती है भैया मैं भी शहर में पढ़ूँगी और हॉस्टल में रहूँगी, अखंड प्रताप हाँ में सिर हिला देते हैं l कुछ दिन बाद रुद्र प्रताप शहर से आए उनके हाथ में एक लिफाफा था।।
उन्होने अवनी को बुलाकर कहा इसमें फॉर्म है भर देना मैं कल जाते समय शहर लेता जाऊँगा परसों इसकी लास्ट डेट है वह डांट कर बोली पहले नहीं ला सकते थे ?
पहले ही लिया था किन्तु घर आना नहीं हो पा रहा था इसलिएदेर हो गई तुम जल्दी से इसे भर दो मैं कल इसे जमा कर दूँगा l ठकुराइन बोली अरे क्या जमा कर देगा, अम्मा विश्वविद्यालय में दाखिले का फॉर्म है l
तो क्या अब यह शहर जाकर रहेगी ? अम्मा ने कहा, रुद्र बोला हॉस्टल में रहेगी बहुत सी लड़कियाँ रहती है खाना पीना भी मिलता है ।
मेरे साथ जाएगी और मेरे साथ आएगी बाकी समय हॉस्टल में रहेगी दूर खड़े ठाकुर साहब सब बातें सुन रहे थे तभी ठकुराइन बोली आप कब आए, ठाकुर साहब ने कहा जब तुम लोग मेरी बिटिया को मुझसे दूर करने की बातें कर रहे थे l
अवनी मुस्कुराइ बोली नहीं आप की बिटिया के भविष्य की बातें कर रहे हैं l किसी का भविष्य किसी के हाथ में नहीं होता वह करना कुछ चाहता है और हो कुछ और जाता है, यही पर एक शक्ति काम करती है ।।
जो परमात्मा कहलाती है, इधर राजीव ने भी उसी कॉलेज में दाखिले के लिए फॉर्म भरा कारण अन्य विश्वविद्यालयों की फीस उसके बस की बात न थी केवल इसमें ही मेधावी छात्रों के लिए कुछ स्थान आरक्षित थे l
रुद्र ने अवनी का फॉर्म जमा कर दिया तथा फोन करके बताया कि तीन दिन बाद प्रवेश परीक्षा है देने आना पड़ेगा, अवनी ने कहा मैं अखण्ड भैया के साथ आ जाऊँगी l
तीसरे दिन सुबह हल्के पीले रंग का सलवार कुर्ता पहन अवनी तैयार होकर कहती है भैया जल्दी चलिये नहीं तो परीक्षा छूट जाएगी रुद्र भैया ने बताया है।
पहुँचने में पाँच से छह घंटे लगते हैं l अखण्ड प्रताप ने कहा अभी बहुत समय है तुझे जाने कितनी जल्दी है जब चलने को तैयार हुई तो माँ ने कहा भगवान के पैर तो छू ले उसने चप्पाल उतारी और भगवान के मंदिर में जाकर एक छोटा सा टीका लगा लिया,,
जो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहा था l विश्वविद्यालय में छात्रों की बड़ी संख्या में भीड़ थी अखण्ड प्रताप ने अवनी को गेट पर छोड़ा और चपरासी से छुट्टी का समय पूंछकर नियत स्थान पर मिलने को कहकर चले गए l
अवनी अपनी कक्षा ढूंढ रही थी तभी अचानक उसे राजीव दिखाई दिया अरे तुम ! तुम तो माली काका के लड़के हो उसने सिर झुकाये हुए कहा " आप मुझे राजीव भी बुला सकती हैं "।
यह कहकर वह आगे बढ़ गया, अवनी को थोड़ा बुरा महसूस हुआ बोली घमंडी कहीं का और परीक्षा हाल में चली गई l नियत समय पर अखण्ड प्रताप गेट पर खड़े थे अवनी निकली और कार में जा बैठी l क्रमशः,,,