जिसे तो यह पता भी नहीं चल पाया कि उसके साथ ठाकुर साहब ने कितना बड़ा विश्वासघात किया ?वह तो अंत समय जब उसे अवनी की मृत्यु का सारा राज समझ में आया तो उसके मन में ठाकुर और हवेलियों के प्रति कितनी घृणा और नफरत पैदा हुई होगी?
हवेली में रहने वाले अखंड प्रताप, रूद्र प्रताप, कलावती या फिर खुद ठाकुर साहब,कौन देगा इन सारे प्रश्नों के उत्तर??
क्योंकि इन हवेलियों में तो बहुत कुछ होता आया है। और हवेलियों ने बहुत कुछ देखा भी है।
लेकिन फिर भी यह हवेलियां एक ही नींव पर हमेशा खड़ी रही भले ही उसकी ऊपरी परतें अलग ,अलग रही हो लेकिन नीव तो हमेशा एक ही रही।
मेरी कहानी को पढ़ने के बाद मैं आपसे यह जानना चाहती हूं, कि इस सब प्रश्नों का उत्तर आखिर कौन देगा?
क्योंकि कुछ बातें तो हवेलियों के बाहर आती भी नहीं सिर्फ हवेलियों की चारदीवारी के अंदर रहकर कहीं ना कहीं इन चारदीवारियों से बाहर निकलने का प्रयास करती है।
लेकिन उनका यह सफल प्रयास कब तक जारी रहेगा,शायद तब तक जब तक आप में से कोई पाठक उठकर इन प्रश्नों का उत्तर नहीं देता उन उत्तरों का प्रतिउत्तर कौन देगा????
आज हमारे समाज ने इतना विकास कर लिया है उसके बावजूद इस तरह की बातें हमारे समाज की नीव को क्या खोखला नहीं कर रही हैं??
क्या हम प्रगति के मार्ग पर बढ़ते हुए भी अपनी सोचो के कारण पिछड़े हुए नहीं हैं??
क्या हवेलियों में रहने वालों को उनकी मान मर्यादा और रीति-रिवाजों के बंधनों में जकड़ कर उनका मानसिक और शारीरिक शोषण कब तक जारी रहेगा??
प्यारे दोस्तों मैं अपनी कहानी को यहीं विराम देती हूं और आप से पूछती हूं ,कि क्या इस कहानी का अंत इस तरह होना चाहिए ?
क्या हमें सारी चीजें सुखांत ही अच्छी लगती हैं , और अगर हां तो फिर दुखों का तो अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा और बिना दुख के तो सुख की कल्पना करना भी बेवकूफी होगी इस सभी प्रश्नों का उत्तर मैं आपसे पूछती हूं,,,,,,,,,,,,
,,,,,, ,,,,,,,, समाप्त,,,,,,,,