अब अरुणिम साल भर का हो गया , एक सुन्दर तथा अपनी ओर सबको बरबस आकर्षित करने वाला बालक।
कोई भी उसके रुप को देखकर उसे दुलारने के लिए तत्पर हो जाता वह ज्यादा समय अपनी बड़ी मां कलावती के समीप ही रहता,,
, कलावती भी उसे अत्यंत स्नेह करती । इधर कुछ दिनों से कलावती की तबीयत ठीक नहीं थी , न तो वह ढंग से खाती पीती न किसी काम के देख रेख में उसका मन लगता ,हर समय बस थकी थकी महसूस होती।
तभी उसके चेहरे को देखकर अखंड प्रताप ने कहा चलो आज तुम्हे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा आए कलावती चौंककर बोली मुझे क्या हुआ है।ॽ
तो फिर तुम्हारा चेहरा क्यों पीला पड़ता जा रहा है। अरे वो तो मैं दिन में थोड़ा सो गई थी इसी से है।
, तभी सुनंदा वहां आती और बोली ,आप बिल्कुल सही कह रहे हैं मैं भी आपसे कहने वाली थी। जीजी को डॉक्टर की जरूरत है, ।
मेरी बात तो ये मानती ही नहीं अब आप ही समझाएँ न हो तो डॉक्टर को कल घर ही बुला लीजिये, मैं कहीं नहीं जाऊँगी कलावती ने बड़े अनमने भाव से जवाब दिया l
ठाकुर जी ने फोन करके डॉक्टर को घर आने का आग्रह किया बड़ी व्यस्तता के कारण डॉक्टर ने दूसरे दिन का समय दे दिया l
दूसरे रोज कलावती को देखने डॉक्टर साहब आए शहर के काफी मानिंद डॉक्टर थे उनकी काबिलियत का पता उनकी फीस से चलता था।
जो आम आदमी की पहुँच से परे थी l डॉक्टर साहब ने नब्ज देखते ही ऊंची आवाज में कहा बधाई हो ठाकुर साहब आप पिता बनने वाले हैं।
बस फिर क्या था एक बार फिर खुशी की लहर उतनी ही तेज दौड़ पड़ी जितनी तेज बिजली की लहर होती है l धीरे धीरे यह बात पूरे गाँव में फैल गई,।
अब अखण्ड प्रताप के पैर तो जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे डॉक्टर साहब ने कुछ दवाई और सावधानियाँ बताई और हवेली से खुश होकर गए ।
l डॉक्टर के जाते ही ठाकुर साहब कमरे में आए, छलछलाती आँखों से उन्होने कलावती को देखा, मेरी कला मैं आज बहुत खुश हूँ,
कलावती चहक कर बोली मैं भी l आखिरकार भगवान ने हमारी सुन ही ली पुत्र के रूप में हमारे समीप अरुणिम तो है ही, बस एक पुत्री की कामना है
l अरे ! यह कैसी बातें करती हो मुझे तो बेटा ही चाहिए हम दो भाई पिता जी की दो लाठीयों के समान थे हमारे पास एक एक लाठी तो होनी ही चाहिए, ।
कलावती मुस्कुराइ आप किस युग की बातें कर रहे हैं अब लठियों की जगह कलमों ने ले ली है अब लठियाँ लेकर कौन चलता है।
कलाम तो हर किसी के समक्ष होती है l इतनी उच्च शिक्षा के पश्चात यह सोंच, अखण्ड प्रताप लज्जित होते हुए बोले,,,,
अरे पगली ! यह किसी कोने में पड़ी खानदानी जमीदारी सोच है जो पीढ़ी दर पीढ़ी बदलाव के मोड़ पर है, किन्तु समाप्त नहीं हुई,,,,
मैं भी बेटी विरोधी नहीं हूँ अपितु बेटियाँ मुझे अत्यंत प्रिय हैं फिर भी मन के किसी कोने में एक बेटे की जाने कैसी चाह है।
? शायद सभी पुरुषों में स्वभावतः होती ही है, वह अपना प्रतिरूप देखने को आकुल रहता है, अच्छा या बुरा कैसा भी हो l
तभी सुनन्दा अपने पुत्र अरुणिम को लिए हुए कमरे में प्रवेश करती है अखण्ड प्रताप बाहर की ओर निकल जाते हैं l
बधाई हो जीजी तुमने तो हमें बताया ही नहीं कलावती ने कहा अरे नहीं कई बार ऐसा मेरे साथ हुआ सब कुछ सामान्य हो गया।
किन्तु इस बार मुझे भी कुछ अलग लगा क्योंकि,चार महीने से मैं बहुत ही ज्यादा कमजोर महसूस कर रही थी, इस बार पांचवे महीने में भी सामान्य न लगा।।।।।
खैर अब तो डॉक्टर साहब आ गए सब ठीक ही होगा 'जैसी प्रभु की माया' कहती हुई अरुणिम को गोद में उठती है
l अरे जीजी संभाल के घबराओ नहीं कुछ नहीं होगा ये मेरे लिए बहुत ही भाग्यशाली है ।
कई वर्षों की चाहत तथा लोगों के तानों पर इसकी वजह से ही विराम लगा यह कहकर दोनों खिलखिला पड़ी और बच्चे को खिलाने में व्यस्त हो गई
, इधर रूद्र प्रताप भी कई महीनों से अपने काम काज में ध्यान नहीं दे पा रहे थे, कारण पहले पुत्र का जन्म फिर पिता की मृत्यु अब काफी दिनों बाद चीजें सामान्य हो रही थी।
तो वह भी अपने कार्य में लग गए और अखण्ड प्रताप भी अपने कार्यों में व्यस्त हो गए l रुद्र प्रताप एक बहुत ही कुशल व्यापारी थे, अपने कार्य के सिलसिले में विदेशों में आना जाना लगा रहता था।
जिस कारण उनके ऊपर पाश्चात्य सभ्यता का भी असर दिखता था, यह कहावत भी है कि जैसा देश वैसा भेष
l व्यापार के सिलसिले में कई कई महीने घर के बाहर रहते पुत्र तथा पत्नी से दूर रहते किन्तु उन्हें इस बात की निश्चिंतता थी कि घर में माँ भैया भाभी उनकी पत्नी एवं पुत्र का ख्याल रखेंगे l
अपने से अधिक उन्हें उन लोगों पर भरोसा था अखण्ड प्रताप उनकी कसौटी पर पूर्णतः खरे उतरते l
अखण्ड प्रताप यहाँ पुस्तैनी खेती इत्यादि का कार्य देखते पिता के न रहने एवं भाई के ज़्यादातर विदेश में रहने के कारण वह एकदम अकेले पड़ गए थे l
इस पर पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी भी थी किन्तु जब खेतों से थकहार कर अरुणिम (अरुण) को गोद में खिलाते तो सारी थकान भूल कर उत्साहित हो जाते
l शायद इसी कारण बच्चे भगवान का स्वरूप माने गए हैं, भगवान के समक्ष भी व्यक्त का चित्त शांत हो जाता है l उधर कलावती के प्रसव का समय भी नजदीक आ रहा था।
, अखण्ड प्रताप चिंतित रहते किन्तु कहें भी तो किससे ? कुछ माह बीतने के पश्चात एक सुबह कलावती को प्रसव पीड़ा शुरू हुई दिन भर कराहने के पश्चात शाम ढले उसने एक पुत्र को जन्म दिया।
अखण्ड प्रताप की खुशी का ठिकाना न रहा किन्तु कलावती की दुर्बल काया देखकर अत्यंत चिंतित हुए बालक सामान्य था।
शायद माँ पर गया था कलावती एक सामान्य स्त्री थी इसके विपरीत अखण्ड प्रताप अत्यंत आकर्षक तेज तर्रार पुरुष थे, पुत्र अपनी माता के अनुरूप ही था l,,,,,, क्रमशः