कभी कभी हमारी आंखों के सामने बहुत सारी चीजें होती रहती हैं। किंतु वह हमको उसी रूप में परिलक्षित नहीं होती जिस रूप में वह होती है,
वह हमें दिखाई तो कुछ और देती हैं, लेकिन होती कुछ और है । जाने क्यों उसका स्पष्ट रूप हम देख नहीं पाते और उसके बाद उसके उसी रूप में फंसते चले जाते हैं।
जबकि प्रत्येक व्यक्ति को सही गलत का ज्ञान अवश्य होता है, किंतु पता नहीं क्यों तत्कालीन निर्णय उसका गलत ही होता है , क्योंकि वह बुद्धि नहीं मन से सोचा जाता है।
अवनी खुश होकर दौड़ते हुए हॉस्टल के कमरे की तरफ आई, कमरे में नीलम इधर-उधर चिंतित मुद्रा में टहल रही थी नीलम को देखते ही अवनी ने कहा नीलम तैयार हो जाओ हम लोग घर जा रहे हैं। नीलम ने आश्चर्य से कहा अभी इस समय हम घर कैसे जा सकते हैं, हमारी तो क्लास चल रही है।
अरे ज्यादा नहीं एक-दो दिन बाद अखंड भैया हमें खुद ही छोड़ जाएंगे ,इसीलिए तो उन्होंने कहा कि चाहो तो नीलम को भी साथ में ले लो इसलिए तुम भी हमारे साथ चलो ।
क्योंकि अगर तुम मेरे साथ रहोगी तो मुझे ज्यादा दिन घर पर रुकना नहीं पड़ेगा, हम दोनों लोग अखंड भैया के साथ वापस चले आएंगे l
नीलम बड़े आश्चर्य से अवनी की ओर देखती हैं और पूछती है कि आखिर मैंने तुमसे पूछा कि क्या कहा अखंड भैया ने ??अवनी बोली नहीं तो नीलम कहती है ,क्या उन्हें कोई बात पता नहींॽ
अवनी ने कहा ऐसा तो हो ही नहीं सकता क्योंकि पता तो जरूर होगी वरना, इस तरह वो हमें लेने ना आते और जाते समय रुद्र भैया ने मेरे सामने ही उनको फोन किया था ।
नीलम ने कहा मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रही है। अवनी ने पूछा कैसी गड़बड़ , आखिर अखंड भैया इतना शांत है तो क्यों ॽ अवनी बोली जैसा तुम सोच रही हो ऐसा कुछ नहीं है ,तुम बेकार ही चिंता कर रही हो ,,,,
फटाफट तैयार हो जाओ और मेरे साथ घर चलो नीलम कुछ नहीं बोलती उसका घर जाने का बिल्कुल मन नहीं था, लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए उसने सोचा अवनी के साथ जाना चाहिए, और वह तैयार हो जाती है, दोनों अपना बैग लेकर अखंड प्रताप के साथ गाड़ी में बैठती हैं ।
नीलम अखंड प्रताप का चेहरा देखती रहती है, उसे अखंड प्रताप के चेहरे के भाव से कुछ समझ नहीं आता क्योंकि, वह हमेशा की तरह नॉर्मल ही थे, गाड़ी चलती रहती है ,एक सन्नाटा सा पसरा रहता है,।
सब एकदम शांत रहते हैं, किसी में कुछ बोलने की हिम्मत नहीं थी, और गाड़ी हवेली के समीप रूकती है। आज भी अवनी अपने घर आई थी,।
लेकिन हवेली में पहले जैसी रौनक नहीं थी जैसे मातम सा छाया हुआ था , सबके चेहरे बुझे हुए थे खुद अवनी का भी चेहरा चहक नहीं रहा था,
मन में कहीं न कहीं एक अपराध बोध था सभी के अंदर अवनी आई और सीधे अपने बाबा के कमरे में गई ठाकुर साहब ने अवनी को बड़े प्यार से देखा और पूछा कोई दिक्कत तो नहीं हुई अवनी ने कहा नहीं बाबा और फिर कुछ देर इधर उधर की बातें कर अपने कमरे में नीलम के साथ चली गई।
, दो दिन बीत गए किसी ने किसी से ठीक से बात नहीं की सब एक-दूसरे से नजरें चुराते रहे सबके अंदर एक अपराध बोध था, हर व्यक्ति अपने आपको अपराधी मान रहा था। कोई किसी के समक्ष व्यक्त नहीं कर रहा था।
ऐसा माहौल नीलम को जाने क्यों घुटन भरा लग रहा था। यूं तो नीलम बहुत बार हवेली आई थी ,बचपन से आती ही थी ,किंतु आज बार-बार उसे लग रहा था कि वह जल्दी से जल्दी हवेली से चली जाए,
ऐसा उसे कभी न लगा, अवनी तो इन दो दिनों में भी राजीव के ख्यालों में खोई रहती उसे तो कभी-कभी अपनी सुध बुध भी ना रहती उसकी इस स्थिति को देखकर ठाकुर साहब की आंखें भर आती,
लेकिन वह कुछ ना कहते, आज तीसरा दिन था अवनी ने ठाकुर साहब से जाकर कहा बाबा आज हम और नीलम हॉस्टल जाएंगे भैया से कह कर हमको छुड़वा दीजिए ठाकुर साहब ने कहा ठीक है लेकिन उसके पहले मुझे तुमसे अकेले में कुछ बात करनी है। नीलम उठकर बैठक से बाहर चली आती है ।
ठाकुर साहब अवनी को अपने पास बुलाते हैं और बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरकर कहते हैं, कि देखो बेटा तुम हवेली की आन और शान हो ,,
,क्या तुम चाहती हो कि तुम्हारे कारण तुम्हारे बाबा को किसी के सामने शर्मिंदा होना पड़े अवनी ने कहा नहीं बाबा, तो फिर तुम समझ रही हो मैं क्या कहना चाहता हूं ,अवनी ठाकुर साहब की तरफ देखने लगती है ठाकुर साहब कहते हैं, तुमने यह सोच भी कैसे लिया,
अब अवनी के दिल की धड़कने बहुत तेज हो जाती हैं, उसे लगता है बाबा मुझे राजीव से दूर रहने को कहेंगे वह धीरे से पूछती है क्या?? ॽठाकुर साहब कहते हैं, मैं तुम्हारे प्रेम का विरोधी नहीं हूं
किंतु अगर तुम मेरी बात मानोगी तो मैं वही करूंगा जो तुम चाहोगी और जैसा तुम कहोगी अवनी अवाक ठाकुर साहब की तरफ देखती रहती है, ठाकुर साहब ने कहा तुम राजीव से कितना प्रेम करती हो, अवनी ने निर्लज्जता दिखाते हुए कहा बाबा बहुत मैं बहुत ही ज्यादा अपने आप से भी ज्यादा राजीव से प्रेम करती हूं l
तब ठाकुर साहब ने अवनी को समझाते हुए कहा कि देखो बेटा अगर इस परीक्षा तक तुम राजीव से दूर रहोगी तो उसके पश्चात तुम जैसा कहोगी जैसा चाहोगी मैं वैसा कर दूंगा ,
दूर रहने का मतलब न उससे बोलना ना मेलजोल बनाना हालांकि इस हवेली के नियम तो तुम जानती ही हो , किंतु मैं उसका भी विरोध करके तुम्हारे साथ हूं,
हो सकता है इसके लिए मुझे तुम्हारे अपने भाइयों के खिलाफ भी जाना पड़े, तो भी मैं जाऊंगा लेकिन तुम मेरी इस बात का अगर मान रखोगी तो मैं तुम्हारे साथ हूं ।
ठाकुर साहब की बातें सुनकर अवनी खुशी से झूम जाती है, उसे लगता है कि बाबा ठीक ही तो कह रहे हैं तीन चार महीने की तो बात है एग्जाम होने के बाद मैं जैसा कहूंगी बाबा वैसा करने के लिए तैयार है,
तो अगर कुछ दिन के त्याग से हमारे प्रेम को एक नया आयाम मिल जाता है। तो उसमें बुराई क्या है,?? वह ठाकुर साहब से कहती है ठीक है बाबा, आप जैसा कहेंगे मैं बिल्कुल वैसा करूंगी लेकिन फिर आपको भी मेरी बातें माननी पड़ेगी??
ठाकुर साहब ने अवनी के सिर पर हाथ फेरा और कहा मैं बिल्कुल तुम्हारी बात मानूंगा आज तक मैंने तुम्हारी सारी बातें मानी किंतु कुछ महीनों के लिए तुम मेरी यह बात मान लो अवनी ने हंसकर कहा ठीक है बाबा मैं आपकी हर बात मानने को तैयार हूं, और अखंड प्रताप के साथ नीलम को लेकर हॉस्टल वापस चली आती है।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहे प्रतिउतर 🙏 क्रमशः।।।