
सच को जो आइना दिखाते हैं,
अपनी औकात भूल जाते हैं।
तोहमते यूँ लगा गये मुझपे,
जैसे वो दूध से नहाते हैं।
शुक्रिया भी अदा नहीं करते,
उनका जो जान दिल लुटाते हैं।
दे गए दर्द की जो सौगाते,
हम उन्हें रात-दिन निभाते हैं।
बेवफा वो नहीं मगर फिर भी,
वो वफा बहुत कम निभाते हैं।
बेरुखी का नहीं था अंदाजा,
वो मेरे साये भी जलाते हैं।
कुछ तो होगा दिमाग में उनके,
वक़्त बे-वक़्त आजमाते हैं।
भूल जाओ की आज याद नहीं,
हम तुम्हें अजनबीं बुलाते हैं।
आप से कुछ छुपा नहीं सकता,
आप नस-नस में घूम जाते हैं।
तुम मेरे आंसुओं की मत पूछो,
बातों-बातों में छलक आते हैं।
ज़ख्म 'अनुराग'अब नहीं भरने,
आप रह-रह के जो दुखाते हैं।