चलेगी आपके रहमो-करम पर ज़िन्दगी कब तक,
बहेगी मेरी आँखों से सनम पागल नदी कब तक।
खरीदो तुम अगर बाज़ार में बिकने लगूँ मैं भी,
बताओ रास आएगी हमारी सादगी कब तक,
हमें उम्मीद थी तुमसे हमारे काम आओगे,
मगर तुमको निभानी है हमीं से बेरुखी कब तक।
मुझे मालूम था की तुम फ़जीहत करके दम लोगे,
हमें भी देखना है सोखते हो तुम नमीं कब तक ।
अगर किस्मत नहीं होती तो मैं तेरा नहीं होता,
चिरागों में रहेगी तुम बताओ रौशनी कब तक।
पियेंगे दूध वो लेकिन ज़हर उगलेंगे तबियत से,
नहीं बदलेगा फ़ितरत सोचियेगा आदमी कब तक।
गुनाहों के भँवर में जब तेरी कश्ती हिलोरेगी ,
भला महफूज रख्खेगी तुम्हें ये वन्दगी कब तक।
सभी ने बात कह दी यार हम तो बेजुवां निकले,
रुलाएगी ना जाने ये हमारी बेखुदी कब तक।
मेरे कंधे पे रखकर सर तू जिस दिन फूट के रोया,
तभी अपना लिया था फिर अधूरी ज़िन्दगी कब तक।
गरीबी ने जो पकड़ा हाथ फिर दामन नहीं छोड़ा,
ज़माने में मगर श्रद्धा सबूरी आएगी कब तक।
नहीं रुकना नहीं थकना हमें मंजिल से पहले,
चुनेगी राह के कांटे हमारी दोस्ती कब तक ।