वक़्त की यूँ तो मेहरबानी रही,
पर अमासी रात नूरानी रहीं।
देख कर तुमने भी अनदेखा किया,
चाहतों की बात बेमानी रही।
दर्द पी-पी कर ख़ुशी महसूस की,
खेल ती हंसती वो दीवानी रही।
कुछ नहीं बदला हमारी कोशिशें,
कह रहे हैं लोग तूफानी रहीं।
लिख दिया रब ने मुक़द्दर मानकर,
दिल को समझाने में आसानी रही।
बेगुनाही तो ना साबित कर सके,
जुर्म से हर सांस अनजानी रही।
आज दिल की बात ज़ाहिर हो गई,
सुर्खीयों में अपनी कुर्बानी रहीं।
प्यार का उन्वान दे जा ये हवा,
फितरतन तू भी तो मस्तानी रही।
देवता मैं भी नहीं हूँ आदमीं,
ज़िन्दगी'अनुराग'बेगानी रही।