
शिकायत ही नहीं तुमसे भला शिकवा गिला कैसा,
जो अपना हो नहीं सकता उसे बिछड़ा मिला कैसा |
बिखर जाने दो हमको या संभालो आपकी मर्जी,
न कोई जीत है ना हार झूठा हौसला कैसा |
उम्मीदों का मुक़द्दर आदमी की सोच होती है,
बनोगे वक़्त की कठपुतलिया होगा भला कैसा।
ज़माना संग दिल है तंग दिल हो तुम ज़माने में,
जहाँ मुश्किल में हो सर को छिपाना घर-किला कैसा।
लगा मत आज तू पाबंदियां इनकी उड़ानों पर,
न चूमें आसमां जब तक तो आखिर जलजला कैसा।
हमें मालूम है ये आपके हक़ की लड़ाई है,
अभी तो देखना है आएगा कल फैसला कैसा।
खिलाफत आपने की है तो फिर अंजाम से डर क्यों,
कहाँ है पुल मोहब्बत का ये लम्बा फासला कैसा।
कभी फुरसत में आओगे तो अपना दिल दिखायेंगे,
हमारे और उनके दरमियाँ है मामला कैसा।
बुलंदी काम की होती तो सब रहते मचानों पर,
नहीं'अनुराग' झुकता टूटता वो सिलसिला कैसा।