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गज़ल- तुमने वफ़ा ना की

19 अगस्त 2015

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featured imageपुख्ता ही हो गया यकीन कम नहीं हुआ, बहशी जूनून का भी हमें ,गम नहीं हुआ । जिनके चिरागे दिल से रोशनी हुआ करी, जब वो फ़ना हुए तो ,आँख नम नहीं हुआ| मुझपे करम किया तो शुक्रिया ,हुज़ूर का , पर वक्त बद-मिजाज़ ,हम सनम नहीं हुआ । इतना बुलंद कर दिया ,रुतवा फ़कीर का , जब दिल को तराशा तो,दम में दम नहीं हुआ । खुद पे जो आ बनी तो, लोग चीखने लगे । जब हम तडप रहे थे ,तो रहम नहीं हुआ । इल्जाम समंदर पे ,लगाते रहेंगे लोग , पतवार पे भी यार सितम, कम नहीं हुआ ।
ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

इल्जाम समंदर पे ,लगाते रहेंगे लोग , पतवार पे भी यार सितम, कम नहीं हुआ...बहुत खूब !

1 सितम्बर 2015

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ग़ज़ल -मेहरवां और भी हैं

9 जुलाई 2015
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एक तुम ही नहीं ,मेहरबाँ और भी हैं ,हमसफ़र और भी , कारवां और भी हैं I मंज़िलों तुमको इतना गुमाँ किसलिए ,इस जहाँ में हमारे ,मकाँ और भी हैं ​I आरजुएं जवाँ,जोशे-दिल भी रवां ,जिंदगी में अभी ,इम्तहाँ और भी हैं Iहम परिंदे कहीं भी , ठहरते नहीं,नापने को अभी ,आसमाँ और भी हैं ​i वक़्त दिखता नहीं ,पर दिखता तो है

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गज़ल-भटकाव

11 जुलाई 2015
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दिशाहीन हो भटक चुका हूँ ,राहों से मंज़िल से दूर,तलबो में छाले चुभते हैं ,चलना है, लेकिन मजबूर | प्यासे अधर चटखते,ब्याकुल झुलसा टूटा सा तन-मन ,दूर-दूर तक छांव नहीं है ,रेगिस्तान बिछा भरपूर |सूख चुके हैं गंगा-सागर ,टूट चुके हैं पुल,तटबंध ,गिरते,उठते,मरते,खपते,निभा रहे फिर भी दस्तूर |दिल में और दीवा

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गज़ल - मोल-अमोल

12 जुलाई 2015
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पांव का कांटा निकाला ये बहुत अच्छा किया , गर्दिशों में भी संभाला  ये बहुत अच्छा किया। धूप-छाँव  और  पानी-प्यासे  ने  की  गुफ्तगू , आप ने कीचड उछाला, ये बहुत अच्छा किया | उँगलियों पर जोडना गिनना, घटाना रात -दिन,सुर्ख़ियों में फिर घोटाला ,ये बहुत अच्छा किया,भूख  - प्यास    बढती   मंहगाई  भ्रष्टाचार  पर

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गज़ल -क्षितिज

11 जुलाई 2015
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जब मिले थे आप सोचा ,ख्वाव पूरा हो गया,आपके जाते ही मैं ,आधा-अधूरा हो गया |यादों की गुस्ताख किर्चें,रूह को चुभती रहीं,रोशनी के दरमियाँ भी ,घुप अँधेरा हो गया |बे-मुरब्बत शक्ल तेरी,इन निगाहों की मुरीद,सच बता तू आजकल,किसका चितेरा हो गया |यूँ तो थककर रात को,सोने की जिद करता रहा,तू ख्यालों में चला आया ,स

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मुमकिन

11 जुलाई 2015
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गर्दिशों में सही ,पर सभलना तो है,आँधियों में चिरागों को जलना तो है |वक्त चट्टान सा सख्त है ,रु-बरु ,हौंसलों की तपिश से पिघलना तो है|टूट कर के बिखर जाऊँ,मुमकिन नहीं,हमको हालात से जंग लडना तो है |

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ग़ज़ल -उड़ान

13 जुलाई 2015
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वक़्त मुझपे इस तरह भी मेहरवां ,होता गया,रफ्ता -रफ्ता हौंसला ,दिल में जवां होता गया ।बोलना सीखा न था ,जब चहचहाते थे बहुत ,ढल गया अल्फाज में तो बेजुवां ,होता गया ।ढूँढ लेता था अंधेरों में भी ,अपनी रहगुज़र ,अब उजालों में भी अक्सर ,गुमशुदा होता गया ।जब किया था क़ैद उसको ,था बहुत बागी मगर,धीर-धीरे वो परिंदा

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कोशिश

12 जुलाई 2015
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जो कल था ,वो आज नहीं है ,वक्त के सर पर ताज नहीं है । कुछ तो रही होगी मजबूरी ,वो मुझसे नाराज़ नहीं है |है सदियों से जवां मुहब्बत,कुछ पल का आगाज़ नहीं है ।प्यार मेरा गुनगुना सके ना ,ऐसा तो कोई साज़ नहीं है ।हार को भी जो जीत बनाये ,हर कोई 'अनुराग'नहीं है |

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जब दिन भी थे 'इन्द्रधनुष '

3 अगस्त 2015
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आ -आ के मेरे गांव से ठंडी हवाएँ पूछती हैं ,लौटकर आये ना क्यों ?ये सूनी रहें पूछती हैं |तुम गए मौसम गए ,सावन की वो पुरवायां,आम की डाली से ,झूलों की पलायें पूछती हैं |गोरियाँ पनघट पे अब भी,राह तकती हैं तेरी,पायलों से पांव की से ,रूठी अदाएं पूंछती हैं |गूंजते पगडंडियों में, वो सुरीले प्रेमगीत,फूल,पत्

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ग़ज़ल -एहसास

15 जुलाई 2015
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वो दिल में दर्द ,होठों पे मुस्कान मांगते हैं ,मुझसे मेरे हमराह ,मेरी जान मांगते हैं |मुद्दत गुज़ार दी ,हमने जिस दयार में ,अब वो दरो-दीवार ही ,पहचान माँगते हैं |मज़बूर हो गया हूँ ,मैं ज़िन्दगी के हाथों ,रिश्ते कदम-कदम पर ,ईमान मांगते हैं |अब आदमी की नीयत,मासूमियत तो देखो,क़ातिल से ज़िन्दगी का ,वरदान

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वो एक पल

14 जुलाई 2015
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दिल में दबी ग़ज़ल सा हूँ, मैं कुछ-कुछ घायल सा हूँ।  जिनकी बस बाते होती, मैं वो गुज़रा कल सा हूँ।  बाहर से  तो हँसता  हूँ, भीतर से ब्याकुल सा हूँ। अब  गैरों से क्या शिकवा, जब खुद ही पागल सा हूँ।  आवाजों   में   तन्हा   शोर,    पर घर बस्ती जंगल सा हूँ। बहुत बरस हम भी बरसे, अब ढलता बादल सा हूँ। वो दो पल क

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ग़ज़ल - मासूम

15 जुलाई 2015
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ज़हर पीता रहा ,पर कहा कुछ नहीं , मेरे दामन में ,गम के सिवा कुछ नहीं | दिखते बेदाग़ दामन,सभी के यहां , चोर है कौन -साहू ?पता कुछ नहीं | ज़ुल्म से है हर इक शै,परेशां मगर , अब यकीं हो गया है ,ख़ुदा कुछ नहीं | हो मुबारक़ तुम्हें, जश्न-ए-ज़िन्दगी , मैं तड़पता रहूँ तो गिला,कुछ नहीं | कारवां में बहुत दि

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ग़ज़ल

14 जुलाई 2015
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गम बहुत है कहीं कोई गिनती नहीं ,तंग दामन है ,खुशियों के मोती नहीं |ज़िन्दगी बे-पनाह खूबसूरत मिली ,हाय अफ़सोस कमबख्त ,अपनी नहीं |मुस्कुराता हूँ लेकिन ,अलग बात है ,ये न समझे कोई ,पीर होती नहीं |घेरे रहते हैं हर वक़्त, साये मुझे ,मेरी- मुझसे ,मुलाक़ात होती नहीं |शाम है ना सहर,ना तमन्ना -ए-दिन ,आँख सोती नह

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ग़ज़ल -अखंडता

16 जुलाई 2015
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दूर तक फैली हुई ,दुनिया को रौशन कर दिया ,ज़िन्दगी में ज़िन्दगी का,रंग फिर से भर दिया |थर-थराते थे जो बरसों से ,बहुत बेचैन थे ,प्यार ने आकर के उन अधरों,को चुम्मन कर दिया |फूल-कलियों और गलियों में नए एहसास हों,सोचकर हमने यही ,पतझड़ को सावन कर दिया |अब मनाओ शौक से ,हर रोज दीवाली यहाँ ,योग कर संसार के

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ग़ज़ल -अजनबी

14 जुलाई 2015
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फिर मिले आज अजनबी बनके ,मैं ज़मीं आप महज़बीं बनके !ज़िन्दगी है या सुलगता सहारा ,तुम चले आओ ना नदी बनके !गर मेरा साथ गवारा है तुम्हें ,क्या मिलेगा तू रोशनी बनके !झूठ है मैं नहीं खफा तुमसे ,शर्त इतनी मिलो नमी बनके !भूल जायेंगे सब गिले शिकाबे ,आप आयें जो आदमी बनकेजिस्म जलता है रूह जलती हैतुम बरस जाओ चा

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सब्र

14 जुलाई 2015
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ज़माने भर की तकलीफें, हमारे नाम लिख दो तुम ,तुम्हारा जो भी जी चाहे ,वही अंजाम लिख दो तुम !मैं हंसकर ज़िन्दगी का हर ज़हर पी जाऊंगा ,है मर्जी आपकी तो,मौत का फरमान लिखदो तुम !तेरी गलियों में मेरी रूह, आवारा भटकती है , मुहब्बत में हुआ हूँ किस क़दर,नाकाम लिखदो तुम !कहीं बिकने लगूं ना दास्ताँ बनकर ब

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मासूम

15 जुलाई 2015
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ज़हर पीता रहा ,पर कहा कुछ नहीं ,मेरे दामन में ,गम के सिवा कुछ नहीं |दिखते बेदाग़ दामन,सभी के यहां ,चोर है कौन -साहू ?पता कुछ नहीं |ज़ुल्म से है हर इक शै,परेशां मगर ,अब यकीं हो गया है ,ख़ुदा कुछ नहीं |हो मुबारक़ तुम्हें, जश्न-ए-ज़िन्दगी , मैं तड़पता रहूँ तो गिला,कुछ नहीं |कारवां में बहुत दिन, सफर कर लिया,र

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रफ्ता-रफ्ता ज़िन्दगी

16 जुलाई 2015
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आँखों से आंसू छलकते ,बेजुवां ,खामोशियाँ ,ज़िन्दगी को मिल गईं,सौगात में ये खूबियां |वक़्त ने जिनको,सलीक़े से संवारा था कभी ,हो गए मशहूर मोती ,गुमशुदा वो सीपियाँ |जानते थे हम बखूबी ,हश्र इस तालीम का ,फिर भी तो पढ़ते रहे ,ये फलसफे -बरवादियां |रंग फूलों से अचानक उड़ गया,ख़ुशबू जुदा ,साजिशें मौसम की थी ,

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जागते रहो

1 अगस्त 2015
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दीपिका की नेह तक जब वर्तिका ,जल जाएगी ,देखना उस रोज ही ,सच की ,चिता जल जाएगी |घूमती होगी भिखारी बनके ,दर-दर विद्व्ता ,आग-ऐ-आरक्षण में,असली योग्यता जल जाएगी |राजनीती विष-वमन कर ,फूँक देगी मुल्क़ को ,आदमी से आदमी की , अस्मिता जल जाएगी |गर यूँ ही बढ़ती रही ,ये भूख बहशी दौर की ,सुच्चिता दम तोड़ देगी ,

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आशादीप

1 अगस्त 2015
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दूर तक फैली हुई ,दुनिया को रौशन कर दिया ,ज़िन्दगी में ज़िन्दगी का,रंग फिर से भर दिया |थर-थराते थे जो बरसों से ,बहुत बेचैन थे ,प्यार ने आकर के उन अधरों,को चुम्मन कर दिया |फूल-कलियों और गलियों में नए एहसास हों,सोचकर हमने यही ,पतझड़ को सावन कर दिया |अब मनाओ शौक से ,हर रोज दीवाली यहाँ ,योग कर संसार के

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गजल - है अलग अंदाज़ लेकिन !

4 अगस्त 2015
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मैं जिसे अंजाम समझा,वो नया आगाज़ था ,धड़कनो में बज उठा ,कुछ तोअनोखा साज़ था |खूबसूरत हो गया, जिनसे ख्यालों का वजूद ,अजनबी थे दिल के रिश्ते ,पर अलग अंदाज़ था |लिखके तेरा नाम दिल पर,मैं दुआ करता रहा ,जिस्म क्या उस रूह तक ,हर शै पे तेरा राज था |उन दरख्तों को गिराया, जो बहुत मगरूर थे ,आंधियों का दोस्तों ,ब

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ग़ज़ल-हमको सब मंजूर

4 अगस्त 2015
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जब से मैं मशहूर हो गया ,सब , अपनों से दूर हो गया |मन तो, कच्चे कांच का दर्पन,गिर कर चकना-चूर हो गया |जोड़ के रिश्ते ,तोड़ दिए दिल,प्यार का अब दस्तूर हो गया |वक़्त- नसीबा कुछ भी कराये ,हमको सब मंजूर हो गया |दर्दे-दिल, वो ज़ख्म इलाही,हता है, नासूर हो गया |इन्जार में जलते-जलते,कतरा-कतरा नूर हो गया |फिर क्य

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ग़ज़ल-अब और क्या है

4 अगस्त 2015
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हर हाथ में खंजर है ,बिस्मिल हर मज़र है |आँखों में बुझे सपने ,अश्कों का समंदर है |है गर्म हवा सा जीवन ,तूफां है,वबंडर है |जो वक़्त से आगे है ,वो शख्स ,सिकंदर है |जहाँ राम-रहीम जनम लें ,वो कोख ही बंजर है |इस दौरे-गुलिस्तां में,बांकी इक खँडहर है |जहाँ चैन से सो जाऊं ,'अनुराग'कोई घर है !

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सत्याग्रह

5 अगस्त 2015
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आज फिर उपवास की उम्दा पहल कर देखिये, सत्याग्रह की राह पर कुछ दूर चल कर देखिये ! आंधियां गर तेज हैं,हो अँधेरा भी घना , रौशनी बन जाइए , दीपक में ढल कर देखिये! पी गया गर आग तू ज्वालामुखी बन जायेगा , एक क़तरा ही सही ,पर आग पी कर देखिये ! छोड़ फूलों की जुवां ,होठों से शोलों को तर

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Update Your Browser | Facebook

7 अगस्त 2015
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https://www.facebook.com/thakur.bhadauria

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"भाल तिलक दे लाल "

8 अगस्त 2015
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जीत के मस्तिष्क पर ,अभिषेक चन्दन का लगा दे ,सो रहीं जो युगों से , उन भवननाओ को जगा दे ।ले उठा वीणा प्रलय की, काल बेला आ गई ,शक्ति का संचार कर,ओ विश्व - मानव बन जई,है धरातल पर तिमिर ,तू हर गली में कर भ्रमण ,साथ में आलोक लेकर ,घर ,डगर ,कर जागरण ,'हर' हृदय की पीर ,मन से यातनाओं को मिटा दे ।आँसुंओं स

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ये जो ज़िन्दगी है

17 अगस्त 2015
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सांसों में जोश होगा ,आँखों में ख्वाब होंगे,इक रोज़ ज़िन्दगी में,हम कामयाब होंगे ।कुछ कर गुज़र सकेंगे, इस दौरे -गुलिस्तां में ,सीने में अब सभी के ,कुछ इंक़लाब होंगे ।लिख्खी हैं चिठ्ठियाँ जो,मौसम ने बहारों को ,सोचा है पास उनके ,उम्दा जवाब होंगे ।महफूज़ रख सकेंगे कैसे वफ़ा के दावे ?गर बात-बात पर हम, यू

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ग़ज़ल : हक़

19 अगस्त 2015
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किसी बेकुसूर को ,कुसूरवार मत कहो,हक के लिए लड़े ,उसे गद्दार मत कहो ।जो दो क़दम भी साथ ,चल सके ने आपके ,उस रहगुज़र को भूल से भी,यार मत कहो |जिसे आप नहीं आपकी,दौलत पसंद है ,इनको अजीज और ,वफादार मत कहो ।जिनकी बजह से आप सरे-आम झुक गए ,ये हार है इसे ,गले का हार मत कहो ।जो मौजे -समंदर में डूबा के चला गया ,

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गज़ल- तुमने वफ़ा ना की

19 अगस्त 2015
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पुख्ता ही हो गया यकीन कम नहीं हुआ,बहशी जूनून का भी हमें ,गम नहीं हुआ ।जिनके चिरागे दिल से रोशनी हुआ करी,जब वो फ़ना हुए तो ,आँख नम नहीं हुआ|मुझपे करम किया तो शुक्रिया ,हुज़ूर का ,पर वक्त बद-मिजाज़ ,हम सनम नहीं हुआ ।इतना बुलंद कर दिया ,रुतवा फ़कीर का ,जब दिल को तराशा तो,दम में दम नहीं हुआ ।खुद पे जो

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गुफ़्तगू

1 सितम्बर 2015
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बे-बजह जिक्र ,तुम गुफ्तगू मत करो ,जो मिले सो मिले ,आरज़ू मत करो ।रहने दो इल्म को,अपने ईमान पर ,इक हुनर है तो सौ, आरज़ू मत करो ।वो जो अफ़साने ,अंजाम ना पा सकें,कितना बेहतर हो,उनको शुरू मत करो ।गर सलामत रहे ,आपका ज़र्फ़ यूं ,तो रखो शौक से, रूबरू मत करो ।काबिले गुफ्तगू उनको रहने भी दो ,इस क़दर भी तो ,बे-आ

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गुफ़्तगू

1 सितम्बर 2015
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बे-बजह जिक्र ,तुम गुफ्तगू मत करो ,जो मिले सो मिले ,आरज़ू मत करो ।रहने दो इल्म को,अपने ईमान पर ,इक हुनर है तो सौ आरज़ू मत करो ।वो जो अफ़साने ,अंजाम ना पा सकें,कितना बेहतर हो,उनको शुरू मत करो \गर सलामत रहे ,आपका ज़र्फ़ यूं ,तो रखो शौक से, रूबरू मत करो ।काबिले गुफ्तगू उनको रहने भी दो ,इस क़दर भी तो ,बे-आब

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गजल --गर्म बाजार

2 सितम्बर 2015
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कोई मस्जिद का, लेके हवाला चला ,कोई सर पे उठा के, शिवाला चला ।उनकी झोली भरी ,सब वतन लूट गया ,जब सियासत में, रश्में घोटाला चला ।भूख और प्यास का,गर्म बाज़ार है ,यारों वनवास को,फिर निवाला चला ।झूठ अमृत की चुस्की लगाता रहा,सच की महफ़िल में तो,विष का प्याला चला ।धूल और धुंध की,चादरें तन गईं ,मुल्क से दूर सच

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ग़ज़ल -३४-कसमकश

3 सितम्बर 2015
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दाग दमन के, जाकर दिखाऊँ किसेहाल-ऐ-दिल, इस जहाँ में सुनाऊँ किसे। मेहरबां आज फिर इम्तहाँ ले रहे हैं ,तुम बताओ की मैं आजमाऊँ किसे ।आपकी आरजू है ,मेरा राज-ए-दिल ,फर्ज या कर्ज, आखिर निभाऊं किसे ।ज़िन्दगी,और ज़माने के रस्मे-रवा ,तोड़ दूँ मैं किसे ,और बचाऊं किसे|पास हैं रूबरू ,फिर भी मजबूरियां ,बात परदे से ब

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एक साया सा कहीं !

3 सितम्बर 2015
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वो ही बुत बनके मेरे सामने आ बैठा है,बनके खुशबू ,जो हवाओं में घुला रहता है ।नूर बनके जो ,निगाहों में आ समाया है ,ज़िन्दगी बनके कलेजे में, धड़क उठता है ।खैर छोडो! ये फ़साना है रुहे बिस्मिल का ,दर्द-ए=जज्वात ज़माना कहाँ समझाता है|लोग मौजों से उलझते हैं, लुत्फ़ आने तक ,तूफां किश्ती को कनारे पे ,डुबा देता

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मन परिंदा रूठकर

3 सितम्बर 2015
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पत्थरों के शहर हैं ,हम आदमी अन्जान हैं ,किसकी पूजा हम करें ,सैकड़ों भगवान हैं ।मेरे आँगन में ख़ुशी,मेहमान बनके आई थी,ग़म मेरे दामन में खुश,आप क्यों हैरान हैं ?लम्हां-लम्हां ज़िन्दगी का खूबसूरत हो तेरा,खुश रहो तुम हो जहाँ ,दिलके यही अरमान हैं ।यूँ तो हर जर्रे में तेरा ,अक्श दिखता है मुझे ,फितरतन हम रहे

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आईने पे धुंध सी है ज़िन्दगी!!

3 सितम्बर 2015
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साफ़ कर अपनी नज़र,अपना गिरेवाँ देखते हैं , और  कितने लोग हैं ,जो अपना ईमां देखते हैं ।ऐव अक्सर ढूँढना ,दस्तूर है अहले ज़माने का , खुदगर्ज हैं रिश्ते यहां सब अपना अरमाँ देखते हैं काश मिल जाये शकूंने दिल जूनून-ऐ-दौर में ,इसलिए हम दर-बदर अपना नशेमां देखते हैं|  ख्वाब है या कोई हकीक़त कुछ समझ आता नहीं, अपन

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है नशे में ज़िन्दगी !

3 सितम्बर 2015
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चार सूं ज़िन्दगी का नशा छा रहा है ,कोई हँसता है,रोता ,कोई गा रहा है|उस मुसाफिर की,मंजिल हुई गुमशुदा,रास्तों से मगर ,फिर भी टकरा रहा है ।नक्शे-पां कल की ,पहचान होंगे,वो अकेला ही ,इक कारवां जा रहा है ।यूँ तो फुर्सत में देखा था चेहरा तेरा ,हर घडी तू ,मेरे सामने आ रहा है ।दास्ताँ आ गई, देखो अंजाम पर ,क

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"है ये तो अनुराग"

6 सितम्बर 2015
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कभी खुद से कभी तक़दीर से ,अक्क्सर उलझता हूँ ,अजी हालात ऐसे हैं , मैं ज़िंदा हूँ ना मुर्दा हूँ|दिलों के दरमियाँ हैं फासले ,कमबख्त मजबूरी ,धड़कता दिल तुम्हारे वास्ते ,मैं सिर्फ तेरा हूँ ।खता कुछ भी ना थी फिर भी,मिला दी खाक़ में हस्ती ,तेरी महफिल जहाँ रौशन ,वहाँ हर सिम्त जलता हूँ ।उगे हैं पाँव में

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गजल- आशा

6 सितम्बर 2015
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सोख लूंगा धूप को ,मैं छाँव देकर जाऊंगा ,ज़ुल्म के सीने पे गहरा,घाव देकर जाऊंगा ।रास्ते कदमों में होंगे ,ठोकरों में मंजिलें ,हौसलों के पंख मन को पाँव देकर जाऊंगा ।शर्तीयां उस ज़ख्म की, नासूरीयत को रोक दूंगा, काबिले मरहम ,इलाज-ए -दाव ,देकर जाऊंगा ।जो धुआं और धुंध में ,गम हो गए वो आशियाने ,गुमशुदा उन ब

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गजल - कमबख्त क्या रिवाज़ है !

7 सितम्बर 2015
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रोपे हुए वो पौधे, दरख्त हो गए ,तो,प्यार के बर्ताव,बड़े सख्त हो गए ।काबिल-ए-यकीन तो, हरगिज नहीं थे वो ,लो आप जिनके आज ,सरपरस्त हो गए ।अफ़सोस क्या करेंगे ,आज जीत-हार का,कमबख्त खुद-ब-खुद , शिकस्त हो गए ।आब-ओ -लिहाज ,भूल गए वो गुरुर में ,काबिल बना दिए तो मौका -परस्त हो गए ।उम्मीद के चिराग ,थरथरा के बु

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ग़ज़ल - हम झुका दें आसमाँ !

7 सितम्बर 2015
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हम झुका दे आसमां ,वो हौंसला रखता हूँ मैं ,लफ़्ज शोलों के,नज़र में जलजला रखता हूँ मैं ।कौन जाने किस तरह ,वो पेश आयें इसलिए ,म्यान से बाहर सदा ,खंजर खुला रखता हूँ मैं ।आप भी समझोगे,पानी की अहमियत एकदिन ,प्यास -पानी में बड़ा सा,फासला रखता हूँ मैं|भूल ना जाऊं कहीं ,खुद पर ज़माने के सितम,बात इतनी सी है ,ज़ख्म

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ग़ज़ल-- "प्रेम तो है इक समर्पण "

7 सितम्बर 2015
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प्रेम ने साधना की, अमर हो गया,मीरा ने विष पिया ,बेअसर हो गया ।रात भर तो अंधेरों में भटका किये ,रोशनी ढूंढते ,दोपहर हो गया ।क़त्ल किसने किया ,वो कोई एक था फिर क्यों बनाएं सारा ,शहर हो गया ।दाग तो बेगुनाहों, के दामन पे है,और गुनहगार ,नूर-ऐ- नज़र हो गया ।आदमी -आदमी का, लहू पी रहा है,इनसे अच्छा तो अब,

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ग़ज़ल - बता मंहगाई कब थी !

7 सितम्बर 2015
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मरुस्थल की प्यास ,समंदर ने बुझाई कब् थी ,धुआं औ धुंध के बादल होंगे ,बरसात आई कब थी ।अब भी आज़ादी सियासत में दबी है बेहिसाब ,बता ?हमने गुलामी से ,निजात पाई कब थी ।यूँ तो तमाम उम्र ,रोटी-रोजी की जंग लड़ता रहा ,बता सकता है ?तूने भरपेट रोटी खाई कब थी ?जिसने अपनी ज़िन्दगी ,चीथड़ों में बसर कर ली,वो क्या बताय

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ग़ज़ल - हैं साथ तुम्हारी यादें!

8 सितम्बर 2015
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चलें कदम से कदम मिलाकर,साथ तुम्हारी यादें ,आँख मिचौली खेल रहीं ,दिन-रात तुम्हारी यादें ।कभी प्रेम के पंख पहन कर ,कभी मिलन की चुनर ओढ़ ,तपत ज्येठ की धूप दिखें ,बरसात तुम्हारी यादें ,कहीं ठुमकता बचपन मिलता ,कही महकता योवन सा ,नटखटपन की वही शरारत ,साथ तुम्हारी यादें ,

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ग़ज़ल -तोड़ दो ज़ुल्मों सितम को !

12 सितम्बर 2015
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घुट के जीने से बेहतर है , दम छोड़ दो ,दम ना निकले,तो ज़ुल्मो सितम तोड़ दो ।जो दिलों पर हुकूमत को, बेताब हैं,उनके नापाक बढ़ते ,कदम तोड़ दो ।कोई कीमत नहीं होती ,जज्बात की , होंगे पुख्ता दिलों के ,बहम तोड़ दो ।मांगने से मिला कब ,उठो --छीन लो ,जैसे को तैसा ,सरे करम छोड़ दो ।दाग दामन के ,मिट जायेंगे शर्तियाँ ह

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तोड़ दो जुल्मों-सितम को

22 सितम्बर 2015
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घुट के जीने से बेहतर है , दम छोड़ दो ,दम ना निकले,तो ज़ुल्मो सितम तोड़ दो ।जो दिलों पर हुकूमत को, बेताब हैं,उनके नापाक बढ़ते ,कदम तोड़ दो ।कोई कीमत नहीं होती ,जज्बात की , होंगे पुख्ता दिलों के ,बहम तोड़ दो ।मांगने से मिला कब ,उठो --छीन लो ,जैसे को तैसा ,सरे करम छोड़ दो ।दाग दामन के ,मिट जायेंगे शर्तियाँ हो

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रामावतार त्यागी – कविता – एक भी आँसू न कर बेकार

2 अक्टूबर 2015
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ग़ज़ल

12 अक्टूबर 2015
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गर्व मत कर तू ,पराई ताकतों पर ,वर्ना आ जायेगा,इकदिन रास्तों पर |आबरू तक एक दिन वो लूट लेगा, तू भरोसा कर गया,जिन दोस्तों पर |रहनुमां जो ,कल सफर में लाये थे,छोड़कर दामन गए ,वो रास्तों पर 

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'जब-जब शहर को देखता हूँ'

16 अक्टूबर 2015
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खुली आँखों से मैं ,जब-जब शहर को देखता हूँ,बुझे से लोग मिलते हैं ,कई टूटे हुए घर देखता हूँ ।                                                                       बड़ी रफ़्तार से आगे निकलते,जो  लोग अक्सर,                                                                       उन्हें भी  भीड़ में तन्हा ,अध

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फिर हुयी आहट ,हमारा ख्वाब टूटा,

21 अक्टूबर 2015
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फिर हुयी आहट ,हमारा ख्वाब टूटा,लग ना जाये फिर,कोई इल्जाम झूठा ।देखो सहम कर ,छुप गए तारे ,नज़ारे ,वक़्त बदला है ,या हमसे  वक्त  रूठा ।तिलमिला कर रह गये ,मजबूरीयां थीं ,पहले किया बदनाम,फिर सम्मान लूटा।चाह थी घुल-मिल गया,आबो-हवा में,बुझ गए अरमां मचलकर .आग पीता ।आग,पानी और  हवा का सम्मिलन ,संघर्ष था,ज्वाल

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''चाहते हैं अगर,तो समर्पण करो''

22 अक्टूबर 2015
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चाहते  हैं  अगर , तो  समर्पण   करो ,मन,हृदय का प्रथम,स्वच्छ दर्पण करो ।देखना  फिर   बिखर जायेगी  चांदनी ,कल्पना को प्रखर और  तर्पण   करो ।आ ख़ुशी में डुबो  लें  चलो  ज़िन्दगी ,प्रेम पथ पर प्रणय  दीप  अर्पण करो।शब्द, संवेदना  के ,मधुर  स्वर  बुनो ,भाव में भावनाओं का ,मिश्रण करो ।आस्था  मुक्त  हो ,धर्म

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मन की आशा

27 अक्टूबर 2015
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मन   की   आशा ,बनी      निराशा ।आप       बेवफा,व्यर्थ     दिलासा ।सत्य झुका कब,मैं   हूँ    प्यासा ।शहर-ए-सदाकत,झूठ      तमाशा ।धुंधला    सूरज ,घना    कुहासा ।पूरब     पश्चिम ,डरा  - डरा  सा ।जीवन      धारा , विकट   हताशा ।दीपक   जलता ,बुझा - बुझा सा ।

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मन फिर जागा, पीर जली

28 अक्टूबर 2015
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मन फिर जागा, पीर  जली ,बूंद-बूंद आँखों  से  पिघली।फूल-फूल ,कांटे   हरियाने  ,देखो घायल हो गई तितली ।मौन हमारा प्रणय  निवेदन,प्रीति तुम्हारी विरहन निकली।उजले-उजले पंख हवा  के ,बरखा,सावन,बादल,बिजली । कह नहीं पाए मन की बातें ,चाह  हमारी  ठहरी  पगली ।सांस हमारी आती -  जाती ,यादों में भी उलझन निकली ।मन'अ

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बुझता सूरज धुंआं-धुंआं सा है

20 दिसम्बर 2015
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बुझता सूरज धुंआं-धुंआं सा है,क़तरा-क़तरा ज़मीर प्यासा  है । जान  जलती है मन सुलगता है,ज़ख्म-ऐ-दिल भी हरा-भरा सा है। लो ले  गई  पंख  तुड़ा  कर  आंधी,खाली  झोंखा  हवा-हवा सा है। फिर वही पुरानी आग  फूंक  दो,ज़िस्म  ज़िन्दा नहीं मरा-मरा सा  है। रात आँखों  में  दिन  ठहर  जाए,मन में  उम्मीद  और   निराशा   है।अगर

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मेरी मंज़िल पे मुझे मिलना वहीँ मेरी कसम

12 मार्च 2016
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मेरी मंज़िल पे मुझे मिलना वहीँ मेरी कसम,तेरी मौजों हैं मेरा साहिल रही तेरी कसम। अब रूठकर ऊँची मीनारों से परिंदे उड़ गये हैं लौटकर आएंगे फिर लगता नहीं तेरी कसम। मैं ढूंढने निकला सकून-ए-दिल कहीं मिल गर,पूरे गुलिस्तां में हंसीं मंज़र नहीं तेरी कसम। जी ज़िन्दगी को मन्नतें चुनके ज़मीं पर लाईं थी, भूख है  मुंह

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**ग़ज़ल** आवाज़ नीची रख,उंगलियां मत दिखा

31 मार्च 2016
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**ग़ज़ल**आवाज़ नीची रख,उंगलियां मत दिखा,यूँ    टूटने    बाला    नहीं   है    हौंसला। मंज़िले मिलती सही  गर  रास्ता  होता,आखिर मुसाफिर को भटकना  ही  पड़ा। मत  बनाते घर सही सी  नींव तो  रखते, ये  फैसला  हमको  बहुत  मंहगा    पडा। आपने ज़ुल्म-ओ-सितम की इंतहा करदी,  लो थम गया  है प्यार का अब  सिलसिला।अपने  ही

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संवत २०७३ की हार्दिक शुभ कामनाएं

8 अप्रैल 2016
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😊आपको और आपके परिवार को नववर्ष और गुड़ी पड़वा की हार्दिक शुभकामनाएं l 😊👍माँ वैष्णो से प्रार्थना है कि आने वाला प्रत्येक नया दिन आपके जीवन में अनेकानेक सफलताएँ एवं अपार खुशियाँ लेकर आए। इस अवसर पर माँ आपको वैभव, ऐश्वर्य, उन्नति, स्वास्थ्य, प्रसिद्धि और समृद्धि के साथ आपको आजीवन प्रगति के पथ पर गतिमा

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सुप्रभात

9 अप्रैल 2016
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कोटि-कोटि आभार तुम्हारा अभिनन्दन, हम चलो करें शत् वार सैनिकों का वंदन।

28 अप्रैल 2016
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हमें आप गर ज़िन्दगी मानते हैं

25 अगस्त 2016
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हमें आप गर ज़िन्दगी मानते हैं, तो पहचान क्यों हमनशीं मांगते हैं। उन्हें कोई शिक़वा-शिकायत नहीं है, सही काम को वन्दिगी मानते हैं। मुहब्बत का एहसास है खूबसूरत, मगर आप क्यों दिल्लगी मानते हैं। नहीं लौटकर आएगा जाने वाला, अगर आप ही अज़नबी मानते हैं। मुक़द्दर से दुनिया बदल

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वक़्त गफलत में सब गँवा बैठे,

28 अगस्त 2016
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वक़्त गफलत में सब गँवा बैठे, आस किस्मत से हम लगा बैठे।धुंध है धूल है धुंआ सा है,क़तरा-क़तरा लहू जला बैठे।रोक ली सांस सच बताने में,झूठ को मर्शिया बना बैठे ।नूर चेहरे से हो गया गायब , तेरे कदमों में सर झुका बैठे। खूब कायम रखी जुबां अपनी, आँख

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हमें दर्द है पर जताता नहीं हूँ,

28 अगस्त 2016
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हमें दर्द है पर जताता नहीं हूँ,मिरे ज़ख्म सबको दिखाता नहीं हूँ। मुझे आज तुम आइना मत दिखाओ,परेशाँ हूँ मैं अब भी टूटा नहीं हूँ। तुम्हें मांग लूँगा ख़ुदा से दुबारा,मैं तेरा हूँ तेरा किसी का नहीं हूँ। अगर ज़िन्दगी इम्तहाँ ले रही है,त

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हमें दर्द है फिर भी कहता नहीं हूँ

29 अगस्त 2016
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हमें दर्द है फिर भी कहता नहीं हूँ,फ़कत आंसुओं को भी माला नहीं हूँ। मुझे आज तुम आइना मत दिखाओ,परेशाँ हूँ मैं अब भी टूटा नहीं हूँ। तुम्हें मांग लूँगा ख़ुदा से दुबारा,मैं तेरा हूँ तेरा किसी का नहीं हूँ। अगर ज़िन्दगी इम्तहाँ ले रही है,तो मैं भी कसौटी से डरता नहीं हूँ। बुझा दीजिये इन चिरागों की लौ

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सदा खींच लाई सदा के लिए,

30 अगस्त 2016
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सदा खींच लाई सदा के लिए,खता भूल बैठे वफ़ा के लिए। सदा साथ होगी दुआ आपकी,न भूलेंगें तुमको ख़ुदा के लिए । भटक भूल जाये पथिक रास्ता,पधारोगे क्या तुम दिशा के लिए। नखत छुप गए हैं घने मेघ कुल,जलाओगे दीपक निशा के लिए। कहीं कोई मीरा दिवानी नहीं ,नहीं श्याम आबो-हवा के लिए। निभ

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सच को जो आइना दिखाते हैं

2 सितम्बर 2016
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सच को जो आइना दिखाते हैं, अपनी औकात भूल जाते हैं। तोहमते यूँ लगा गये मुझपे,जैसे वो दूध से नहाते हैं।शुक्रिया भी अदा नहीं करते, उनका जो जान दिल लुटाते हैं।दे गए दर्द की जो सौगाते,हम उन्हें रात-दिन निभाते हैं। बेवफा वो नहीं मगर फिर भी,वो

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शिकायत ही नहीं तुमसे भला शिकवा गिला कैसा

2 सितम्बर 2016
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शिकायत ही नहीं तुमसे भला शिकवा गिला कैसा,जो अपना हो नहीं सकता उसे बिछड़ा मिला कैसा | बिखर जाने दो हमको या संभालो आपकी मर्जी,न कोई जीत है ना हार झूठा हौसला कैसा | उम्मीदों का मुक़द्दर आदमी की सोच होती है, बनोगे वक़्त की कठपुतलिया होगा भला कैसा। ज़माना संग दिल है तंग दिल

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आज खुशबू नहीं

3 सितम्बर 2016
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आज खुशबू नहीं गुलाबों में,जैसे सूखे पड़े किताबों में। क़ैद में आज फिर परिंदे हैं, हौंसले छिप गए नकाबों में। खो दिया नूर क्यों चिरागों ने,आप मशरूफ थे खिताबों में।प्यार सा दूसरा नहीं शानी,बे-वजह घूम मत हिजाबों में। मुस्कुराने के फायदे गिनना,और कुछ भी नहीं हिसाबों में। व

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जो फूल तितलियों पर कुर्बान हो गए

5 सितम्बर 2016
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जो फूल तितलियों पर कुर्बान हो गए, वो दौर गुलिस्तान के अरकान हो गए।बुझते हुए सूरज की रमक देखते रहे,रातों के अँधेरे ही मेहरबान हो गए। उसने गुरुर में सुकूने दिल गवा दिया,बदले मिजाज सूरते फ़रमान हो गए। ग़ुरबत ने ज़िन्दगी से परिचय करा दिया, अपने पराय आज सब अनजान हो गए। रख

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बाज आते नहीं ज़माने से

6 सितम्बर 2016
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बाज आते नहीं सताने से, मिलने आते हैं वो बहाने से। क्यों नज़र लग गई मोहब्बत को,होंठ छिलते हैं मुस्कुराने से। ओढ़कर वो वफाओं के वादे,हो गए बेवफा ज़माने से। चाक निकला लहू जिगर उनका,लौटे महफूज कितने थाने से। देखते-देखते जली बस्ती। लोग

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लोग जो आंसू बहाने आ गये,

7 सितम्बर 2016
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लोग जो आंसू बहाने आ गये,दरअसल वो मुस्कुराने आ गये। आँख खोली थी अँधेरा हो गया,रहनुमां सूरज छुपाने आ गये। मोती चुन-चुन कर निकाले ले गये,सीपियाँ वापस सिराने आ गये। मैं अगर कमजोर हूँ तो क्या हुआ, हौंसला तुम तो बढाने आ गये। लौट भी आओ खुदा का वास्ता, भूले-भटके सब ठिकाने आ

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उगते सूरज को चिरागों का शरारा

8 सितम्बर 2016
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उगते सूरज को चिरागों का शरारा,रहमते हैं या क़यामत का इशारा। किस्मतों को दोस्तों यूँ मत संवारो,सीखले जो तैरना उसका किनारा। हम चिरागों को कभी बुझने न देंगे, पास रख्खेंगे हवाओं का पिटारा। आंधियां तो आएँगी डरना नहीं है, डगमगाना भी नहीं उ

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हमें महफ़िलें अब सुहाती नहीं हैं

9 सितम्बर 2016
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हमें महफ़िलें अब सुहाती नहीं हैं,हैं दिलकश मगर रास आती नहीं हैं। सुलगती सी बातें झुलसते से अरमां,कभी आग दिल की बुझाती नहीं हैं। ख्यालों की दुनिया की गुमनाम यादें,रुलाती तो है पर हंसाती नहीं हैं। गली से गुजरती है जब बज़्म कोई,मेरी रूठी तबि

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बिखरा- बिखरा

11 सितम्बर 2016
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बिखरा-बिखरा अंदर-बाहर लगता है,यूँ तो वो इक नामी शायर लगता है। पेशानी पर बल दिख जाये नामुमकिन,जर्रा-जर्रा हर फन माहिर लगता है। पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा महका है,खुशबू में डूबा सा मंजर लगता है। अब तो उनकी खामोशी भी बोलेगी,तबियत भी सुधरी है अंतर लगता है ,देरी से लौटा हैं ल

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चलेगी आपके रहमो-करम पर ज़िन्दगी कब तक

12 सितम्बर 2016
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चलेगी आपके रहमो-करम पर ज़िन्दगी कब तक,बहेगी मेरी आँखों से सनम पागल नदी कब तक। खरीदो तुम अगर बाज़ार में बिकने लगूँ मैं भी,बताओ रास आएगी हमारी सादगी कब तक,हमें उम्मीद थी तुमसे हमारे काम आओगे,मगर तुमको निभानी है हमीं से बेरुखी कब तक। मुझे मालूम था की तुम फ़जीहत करके दम लोग

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मेरी खता थी लेकिन मुझे कुछ पता नहीं,

13 सितम्बर 2016
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मेरी खता थी लेकिन मुझे कुछ पता नहीं,कुछ तो हुआ है यारों मुझे दी सजा नहींतबियत से खुशमिजाज हूँ लेकिन उदास हूँ, मेरा ख़याल बन के कोई सोचता नहीं,कोई बजह नहीं थी मगर वो मुक़र गया,पर आता नहीं.ईना तो झूठ कभी बोललाखों चिराग जल के फ़ना हो गए मगर, फिर भी अँधेरा जहन का अब तक मिटा नहीं चाहा तो भूल जाऊं मगर भूल

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निगाहें नूर की लौ में तपे पत्थर पिघलते हैं

14 सितम्बर 2016
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निगाहें नूर की लौ में तपे पत्थर पिघलते हैं,तेरी औक़ात क्या बन्दे सिकंदर भी दहलते हैं।मेरी खामोशियों को गैर वाजिब मत समझना तुम,हमारे नाम से सूरज यहाँ छुपते निकलते हैं । मुकद्दर टूट कर कदमों में मेरे बैठ जाता है, नहीं तूफां मेरे डर से समंदर से गुजरते हैं। अगर मैं होश में

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जो चाहोगे तुम आग पानी मिलेगी,

14 सितम्बर 2016
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जो चाहोगे तुम आग पानी मिलेगी,मेरे टूटे दिल की निशानी मिलेगी। पुकारोगे जब भी मेरा नाम लेकर,हवा गुनगुनाती जुबानी मिलेंगी । निखर जायेंगे ख्वाव जिस दिन हमारे,ये दुनिया हमारी दिवानी मिलेगी। चिरागों को तुम रौशनी बख्श देना,अंधेरों में जब रात- रानी मिलेगी।मेरे नूर मेरी निगाहों में रहना,ख्यालों को फिर से

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हमको शिकवा नहीं ज़माने से

15 सितम्बर 2016
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हमको शिकवा नहीं ज़माने से,बाज आये वो आजमाने से। ज़ख्म तो भर गये मगर फिर भी,तुमको फुर्सत नहीं दुखाने से। मुन्तजिर हूँ तेरी निगाहों का,तौबा करता हूँ रूठ जाने से। आप आयें तो फिर फिज़ा बदले,मुस्कुरा लेंगे हम बहाने से। बढ़ गए फासले बहुत ज्यादा

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संवरते-संवरते बिखरने लगे हैं

17 सितम्बर 2016
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संवरते-संवरते बिखरने लगे हैं, मेरे ख्वाव खुलकर महकने लगे हैं। अभी दूर है मंजिलों से मुसाफिर, कदम कारवां के भटकने लगे हैं। रवां हो गईं कश्तियाँ बहते-बहते, लहर की मुआफिक संभलने लगे हैं। न जाने कहाँ ले के जाए मुक़द्दर,सनम बेखुदी में निकलने लगे हैं। खता तो बता दो सजा द

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अगर आप दिल से मोहब्बत करेंगे

17 सितम्बर 2016
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अगर आप दिल से मोहब्बत करेंगे,खुदा बन्द तेरी हिफाजत करेंगे। सलीबों से नीचे उतारो भी मौला, तेरी ज़िन्दगी भर जियारत करेंगे। गुनाहों से तौबा दिया तुमको वादा,सदाकत से आगे तिजारत करेंगे। निगाहों से गिरके कहाँ जायेंगे हम,पनाहों में रहकर इबादत करेंगे। हमें ज़िन्दगी या सज़ा मौत की दो,पलटकर नहीं हम शिकायत करें

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अभी भी खयालो में आते हो तुम,

22 सितम्बर 2016
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अभी भी खयालो में आते हो तुम,कहीं भी कभी भी सताते हो तुम। करीब आते आते जुदा हो गए,निगाहों से क्यों दूर जाते हो तुम। मेरा हौंसला टूट सकता नहीं, उम्मीदें हमेशा जगाते हो तुम। मैं दस्तूर की बात करता नहीं,महज रस्म सा दिल लगाते हो तुम। गुजर

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तू नहीं तो मैं नहीं तेरा मेरा रह जायेगा,

1 अक्टूबर 2016
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तू नहीं तो मैं नहीं तेरा मेरा रह जायेगा,पीर दिल की शोर मन का अनसुना रह जायेगा। कोई तो होगा जो कल तारीख बनकर आएगा,जिसके आने से हमारा हौंसला रह जायेगा। बह गए आंसूं पिघलकर ख्वाब भी बुझने लगे,आंसुओं की धार का इक सिलसिला रह जायेगा। तुम बुलाओगे अगर दिल से हमें तो देखना,दौ

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वक़्त भी मेहरबां आपभी मेहरबां,

4 अक्टूबर 2016
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वक़्त भी मेहरबां आपभी मेहरबां,आसमां मेहरबां है ज़मीं मेहरबां । फिर भी तन्हा हूँ दौरे हरम में कहीं, इश्क़ भी मेहरबां हुस्न भी मेहरबां। ज़िन्दगी ढूंढती फिर रही ज़िन्दगी,उम्र भी मेहरबां साँस भी मेहरबां। रौशनी पर फ़िदा हो गईंआंधियां,तीरगी मेहरबां नूर भी मेहरबां। रुत जवां है न

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वो कदम-दर-कदम आज़माने लगे

7 अक्टूबर 2016
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वो कदम-दर-कदम आज़माने लगे,ऐब गिन-गिन के मेरे बताने लगे।कोशिशों से मुक़द्दर बदल जायेंगे,आप क्यों बेवजह तिलमिलाने लगे।आजकल और कुछ याद आता नहीं,लोग सारे मुझे भूल जाने लगे।जल न जाएँ कहीं आपकी उंगलियां,आरती के द

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वक़्त की यूँ तो मेहरबानी रही

14 अक्टूबर 2016
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वक़्त की यूँ तो मेहरबानी रही,पर अमासी रात नूरानी रहीं। देख कर तुमने भी अनदेखा किया,चाहतों की बात बेमानी रही। दर्द पी-पी कर ख़ुशी महसूस की, खेल ती हंसती वो दीवानी रही। कुछ नहीं बदला हमारी कोशिशें,कह रहे हैं लोग तूफानी रहीं। लिख दिया रब ने मुक़द्दर मानकर,दिल को समझाने म

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ज़माने ने जब-जब तराशा हमें,

17 अक्टूबर 2016
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ज़माने ने जब-जब तराशा हमें,उड़ाया गया है धुआं सा हमें। बना ज़िन्दगी भर तमाशा मेरा, सभी ने जलाया-बुझाया हमें। पिघलता रहा आंसुओं में जुनूं,बुरे वक़्त ने यूँ रुलाया हमें। कई मर्तबा टूटकर जुड़ गया, मेरे हौंसलों ने बचाया हमें। अगर मुस्कुराने की कोशिश भी की,तभी हादसों ने सताया हमें। भटकता गया आदमीं रास्त

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वो हमें आफ़ताब कहते हैं

20 अक्टूबर 2016
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वो हमें आफ़ताब कहते हैं, बेबजह लाजवाब कहतें हैं। रुख से परदा नहीं उठाया है,लोग तो बेनक़ाब कहते हैं। मुन्तजिर हूँ मरीज भी तेरा,आप क्यों इन्कलाब कहते हैं। मैंने आंसू पिये हैं जी भरके,लोग यूँ ही शराब कहते हैं। ले गई पंख उड़ा कर आँधी,ज़िन्दगी है जनाब कहते हैं । साथ जो भी मेर

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ना जाने कौन सा

21 अक्टूबर 2016
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ना जाने कौन सा एहसास है छूकर गुजरता है, निगाहों से दिलो में और फिर रूह में उतरता है। सिहर जाता हूँ सर से पाँव तक यूँ तो मुहब्बत में, महक उठता हूँ मैं ताज़ा हवा बनकर निखरता हूँ। खुली हों बंद हों पलकें नजर आते हो तुम ही तुम,तुम्ही रग-रग म

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मोहब्बत हो गई

22 अक्टूबर 2016
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मोहब्बत हो गई तुमसे बताना चाहता हूँ मैं,तुम्हारा रास्ता बनकर दिखाना चाहता हूँ मैं।जो मेरी रूह तक नस-नस में भरती है मुहब्बत,उसी एहसास को तुझमें जगाना चाहता हूँ मैं। लहर बनकर समन्दर की बहुत ढूँढा मेरे

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हमारे तुम्हारे सवालों के घेरे,

18 नवम्बर 2016
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हमारे तुम्हारे सवालों के घेरे,उजालों के घेरे अंधेरों के घेरे। ख़ुशी और गम इक अहम संविदा है,रहेंगे हमेशा निबालों के घेरे। चमन महकते हैं बदलते हैं मौसम,कली फूल खुशबू बहारों के घेरे। मुकम्मल नहीं तो अधूरे नहीं हैं,नदी बह रही है किनारों के घेरे। कदम बहक जाएंगे उस दिन हमा

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अँधेरा भी होगा उजाला भी होगा

22 नवम्बर 2016
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अँधेरा भी होगा उजाला भी होगा,कदम लड़खड़ाए संभाला भी होगा। निकल जायेंगे आप हम उलझनों से,अगर भूख है तो निबाला भी होगा। मेरे सब्र का इम्तहां लेने वालों, कभी अपना ईमां उछाला भी होगा। महज एक क़तरा नहीं मैं लहर हूँ,जहाँ दिल में तूफ़ान पाला भी होगा।नहीं बदले फितरत जो फूलों में

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जटिलताएं सारी

24 नवम्बर 2016
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जटिलताएं सारी सरल कीजिये,नई नीतियों की पहल कीजिये। हैं मंजूर सब फैसले आपके, मगर मुश्किलों को तरल कीजिये। दिलों जां से हम हैं फ़िदा आप पर,मेरी झोपड़ी भी महल कीजिये। गजब का दिखा आप में हौसला,चलो अपनी ज़िद पर अमल कीजिये। सुधर जाएंगी मुल्क़ की सेहतें, इलाजे इलाही असल कीजिये। सुलगने लगी है हवा घर-गली,म

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सफल शक्ति का संवहन करते रहना

25 नवम्बर 2016
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सफल शक्ति का संवहन करते रहना,वचन-बद्ध हो आगमन करते रहना । समय आपको कल पुरुस्कृति करेगा,ये शुभ-कर्म चिंतन मनन करते रहना। अभिव्यक्तियो का प्रबंधन ना करना, यूं अनुभूति का आचमन करते रहना। सुनिश्चित करो जीत होगी तुम्हारी, सदा सत्य का सं

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अब भी जिंदा हूँ तेरी ख़ुशी के लिये,

3 दिसम्बर 2016
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अब भी जिंदा हूँ तेरी ख़ुशी के लिये,जान-ईमान से दोस्ती के लिए। जब भी जी चाहे मिलने चले आइये, आब बांकी है सूखी नदी के लिए। अब दुआ और दवा दोनों नाकाम हैं,कुछ बचा ही नहीं आदमी के लिए। बेवफा ही सही अपना महबूब है, हम तरसते हैं तेरी हंसी के लिए । रूह उस्ताद है जिस्म शागिर्द है,वक़्त ही है सबक ज़िन्दगी के

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बहुत हो गया ज़िन्दगी देख ली

8 दिसम्बर 2016
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बहुत हो गया ज़िन्दगी देख ली,तेरे प्यार की बेरुखी देख ली। तरसते रहे रौशनी के लिए,उजालों की भी दोस्ती देख ली। ज़माने से कोई शिकायत नहीं,समंदर में प्यासी नदी देख ली। ना पूछो मेरे दर्द की बानगी,लहू में मची खलबली देख ली। अज़ी मान भी लो मैं ज़िंदा नहीं,झलक मौत की ताजगी देख ली।इरादा नहीं था मगर हाँ किया। आ

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कि जब-जब मुहब्बत में ढलती हैं साँसे

16 दिसम्बर 2016
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कि जब-जब मुहब्बत में ढलती हैं साँसे,बहुत सादगी से पिघलती हैं साँसें। उतर जाते हैं दिल की गहराइयों में,चिरागों की मानिंद जलती हैं साँसें। खुली-बंद पलकों में ख़्वाबों के जुगनूं,हवाओं में खुशबू सी घुलती हैं साँसें। लहर की तरह बह रही है लहू में, समन्दर के माफिक उफनती हैं

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कई मर्तबा उनके अंदाज़ देखे

18 दिसम्बर 2016
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कई मर्तबा उनके अंदाज़ देखे,समय ने पिघलते हुए ताज देखे। जिसे ज़िन्दगी मानकर चल रहे हो,मिले तो मगर बहुत नाराज़ देखे। कभी आसमां नाप लेते थे कहकर,कटे पंख वो हमने परवाज़ देखे। जिन्हें आजतक झुकते देखा नहीं था, हैं घुटनो के बल उनके अंदाज़ देखे । मुनासिब नहीं वक़्त को मात देना, ब

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ख्यालों का तुम तर्जुमा करके देखो

21 दिसम्बर 2016
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ख्यालों का तुम तर्जुमा करके देखो,मेरे दर्द को फिर बयां करके देखो। सिमट जायेंगे कल अंधेरों के साये ,चिरागों को तुम मेहरबां करके देखो। मेरे हाथ की इन लकीरों में क्या है,हमारे लिए सब दुआ करके देखो। गया वक़्त फिर लौट सकता नहीं है,गुजरने ना प

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बदलते रहे रास्ते ज़िन्दगी भर

22 दिसम्बर 2016
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बदलते रहे रास्ते ज़िन्दगी भर,रुके भी नहीं ना थके ज़िन्दगी भर। कहाँ आ गए आज हम चलते-चलते,बुलाती रहीं मंजिलें ज़िन्दगी भर। नजर अपने चेहरे की जानिब न डाली,दिखाते रहे आईने ज़िन्दगी भर। ख़ुशी और गम हम कदम हैं हमारे, निभाते रहे ये हमें ज़िन्दगी भर। तमाशा बना मैं तमाशाई दुनिया, नचाते रहे वो हमें ज़िन्दगी भर। कहा

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था मुक़द्दर में जो भी मिला आज तक

26 दिसम्बर 2016
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था मुक़द्दर में जो भी मिला आज तक,यूँ ही चलता रहा सिलसिला आज तक। बर्फ पिघलेगी ज़िद की किसी रोज तो,ना बिखरने दिया हौंसला आज तक। कोशिशें आँधियों ने बहुत की मगर,मैं बुझा ही नहीं यूँ जला आज तक। वक़्त लेता रहा करवटें रात -दिन, पर उम्मीदों का घर ना मिला आज तक। लौट आये सभी भूले भटके हुए, क्यों भटकता

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आँधियों से हमें तुम डराओगे क्या

28 दिसम्बर 2016
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आँधियों से हमें तुम डराओगे क्या,चढ़ता सूरज हूँ मुझको बुझाओगे क्या। मैं तुम्हारे लहू की रवानी में हूँ ,सोच लो अब भी हमको मिटाओगे क्या। जीत औ हार से मैं बहुत दूर हूँ,मैं झुकूँगा नहीं तुम झुकाओगे क्या। उड़ गए जो परिंदे ज़मीं छोडकर,उनको वापस ज़मीं पर बुलाओगे क्या। टूटकर के बिखर जाऊं मुमकिन नहीं,आजमा लीजिये

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ये चिरागों सा जलता रहेगा

30 दिसम्बर 2016
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ये चिरागों सा जलता रहेगा,वक्त हर पल बदलता रहेगा। तुम अगर साथ दोगे तो अच्छा, कारवां यूँ ही चलता रहेगा। दर्द जब हद से आगे बढेगा,आंसुओं में पिघलता रहेगा। आइना ही सही सामने रख,तेरा जी भी बहलता रहेगा। ज़िन्दगी को नया मोड़ दे दो ,रास्ता सबको मिलता रहेगा। अब तो आवाज देकर

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हमको वफा के नाम से

31 दिसम्बर 2016
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हमको वफा के नाम से,लगता है डर अंजाम से।ये बेखुदी भी अजीब है,जीने ना दे आराम से। अब और जीकर क्या करूं,जब हो गए बदनाम से। तुम भूल जाओ दोस्तों,बाहर करो पैगाम से। मैं ज़िन्दगी भर दर-ब-दर,भटका फिरा हूँ मुकाम से। कहना था जो भी कह दिया,अब डर नह

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मन वीणा के तार शारदे,

2 जनवरी 2017
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मन वीणा के तार शारदे,करदे स्वर श्रृंगार शारदे॥ शब्द-छंद हो जाएँ अलंकृति,भावों के संकल्प हो झंकृति,मेरी कल्पना मनुज ह्रदय में,भर दे अपना प्यार शारदे॥संकल्पों में भागीरथ बल हो,तेरी कृपा का शुभ संबल हो,निर्मल करदे जन-मानस को,बहे गंग जल धार शारदे॥ ज्ञान पुंज नूतन उमंग

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उठो रौशनी के ख़यालों से बोलो

3 जनवरी 2017
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उठो रौशनी के ख़यालों से बोलो, अभी भूख है तुम निबालों से बोलो। टपकता लहू है ज़ख्म से बराबर,गरीबों के पैरों के छालों से बोलो। मेरे आंसुओं की तो गिनती नहीं है, अंधेरों में हैं दिन उजालों से बोलो। तुम्हें तो खबर है मेरे हाले दिल की, उन्हीं चाहतों के हवालों से बोलो। लगे थक

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सुलगते हैं अगर हालात लानत हुक़्मरानों पर

11 जनवरी 2017
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सुलगते हैं अगर हालात लानत हुक़्मरानों पर बिकेंगे कब तलक ईमान कचरे की दुकानों पर। अदालत बेगुनाहों को सज़ा कब तक सुनाएगी,दलाली कर रहे हैं वो जो बैठे हैं मचानो पर। सफेदी पहन कर बैठे कुकुरमुत्तों के झुरमुठ हैं, रखेंगे नीव के पथ्थर ये बारूदी ढलानों पर।

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अब सामना सच का हमें करना जरूरी है।

14 जनवरी 2017
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अब दर्द के एहसास को कहना जरुरी है, पर ज़िन्दगी में दर्द का होना जरूरी है। मत रख गिले शिक़वे जहन को ज़ेब ही देंगे, इन आंसुओं का आँख से बहना जरुरी है। जो वक़्त से आगे निकल जाने की ज़िद करता,उस आदमी को वक़्त में रहना जरूरी है। तुम मुश्किलों से जूझना उम्मीद मत खोना, सूरत बदलने के लिए लड़ना जरुरी है। गर है

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तसब्बुर में रहते हैं हमसे जुदा हैं

20 जनवरी 2017
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तसब्बुर में रहते हैं हमसे जुदा हैं, ये एहसास दिल के बड़े बेवफा हैं।वो कुछ भी नहीं बोलते हैं जुबां से, खबर है मुझे जान-तन से फ़िदा हैं। खुले ज़ख्म बहते हैं नासूर बनके,ना मरहम इलाही ना कोई दवा है।-बहुत दिन गुजारे हैं सजदे में तेरे,सुकूं भी ना आये ये कैसी सजा है। मेरी ज़िन्दगी धूप का आईना है ,बिखरता हूँ मै

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मुझे बेरुखी तल्खियां मिल रहीं हैं

1 फरवरी 2017
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मुझे बेरुखी तल्खियां मिल रहीं हैं,मगर इल्म की खिड़कियां खुल रहीं हैं। मैं गिन-गिन के लूंगा ज़माने से बदला,अभी तो मेरी उँगलियाँ छिल रहीं हैं। मेरी चाहतों को वो समझेंगे इक-दिन,अभी तो उन्हें सुर्खियां मिल रहीं हैं। चिरागों को रौशन रखेंगे हमेंशा,भले गर्दिशी आंधियां चल रही हैं। बदलना तो है रुख हवाओं

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मेहरबानी ही सही करदो जरा

11 फरवरी 2017
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मेहरबानी ही सही करदो जरा,ज़ख़्म हैं गहरे इन्हें भरतो ज़रा। मुद्दतों तन्हाईयाँ थीं हमसफर ,थामकर अब उँगलियाँ चलतो ज़रा। खोल दो दिल की गिरह सब बोल दो,आएगी ताज़ा लहर ठहरो जरा। आज सब एहसास मुझको हो गया,आप को भी हो गया कहदो जरा। मन्नतों में औ

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अब मुहब्बत में हमें नाकाम रहने दो

14 फरवरी 2017
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अब मुहब्बत में हमें नाकाम रहने दो, शुक्रिया ये चाहतें बेदाम रहने दो। छुप गए होंगे हमारे चाहने वाले,भूल जाओ तुम हमें बदनाम रहने दो। फितरतन जो लोग हैं दीवार के जैसे,तुम मेरी चौखट को थोड़ा आम रहने दो।कोई नज़राना नहीं अब चाहिए यारों, मेरी तन्हाई मेरा आराम रह

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अच्छे हालात की कल्पना कीजिये

15 फरवरी 2017
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अच्छे हालात की कल्पना कीजिये,बस यही सोच कर मुस्कुरा लीजिये।आज का ये समां जाने कल हो ना हो,साथ तुम आज दिल से निभा लीजिये। है ये लम्बा सफर रात हो जाएगी,सुन चिरागों से रिश्ता बना लीजिये। शुक्रिया उनका यूँ ही अदा मत करो,पहले दुःख-दर्द में आजमा लीजिये। रंजिशें ही सही अब नि

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तुम मिले तो लगा ख्वाव मेरे हुए, तेरे जाते ही आधे-अधूरे हुए।

16 फरवरी 2017
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तुम मिले तो लगा ख्वाव मेरे हुए, तेरे जाते ही आधे-अधूरे हुए।----------------------------------तुम मिले तो लगा ख्वाव पूरे हुए, तेरे जाते ही आधे-अधूरे हुए।नीद भी ले गए चैन भी ले गए, करवटों में ही काफिर सवेरे हुए। ढूंढते ही रहे नक़्शे-पां उम्र भर ,हम ना तेरे हुए तुम ना

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मुझे हालात की आंधी उड़ा ले जाएगी

22 फरवरी 2017
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मुझे हालात की आंधी उड़ा ले जाएगी, नहीं मालूम है जाने कहाँ ले जाएगी। पड़ी हैं हाशिये पे मेरी किस्मत ज़िन्दगी, लिखावट आंसुओं में वो बहा ले जाएगी। सुना कुछ लोग कहते हैं मुहब्बत रोग है, बचा इस मर्ज से हमको दुआ ले जाए ख़ुशी तुमको मिले तो फूंक दे हस्ती मेरी, बची मासूमियत आबो-ह

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मुझे हालात की आंधी उड़ा ले जाएगी

22 फरवरी 2017
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मुझे हालात की आंधी उड़ा ले जाएगी,अगर बांकी बचा दारु-दवा ले जाएगी।पड़ी हैं हाशिये पे मेरी किस्मत आज भी,मिलाकर आंसुओं में वो बहा ले जाएगी।सुना कुछ लोग कहते हैं मुहब्बत रोग है,बचा इस मर्ज से माँ की दुआ ले जाएगी। ख़ुशी तुमको मिले तो फूंक दो हस्ती मेरी,मगर मासूमियत आबो-हवा ले जाएगी।उठाता हूँ जनाजा ज़िन्दगी

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मर्ज क्या मुझको इलाही कैसी है तबियत बता दे

24 फरवरी 2017
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मर्ज क्या मुझको इलाही कैसी है तबियत बता दे, रूह तक बीमार हूँ तू कुछ ना कुछ मुझको दवा दे। आजकल अहबाब भी रोते सिरहाने बैठकर के ,कह रहे बीमार दिल से जाग थोड़ा मुस्कुरा दे। एक सन्नाटा छुपा है यारों क़ाफ़िर शोर में भी, घुट रहा है दम मेरा लौ इन चिरागों की बुझा दे। -तेरा शुक

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हार का जश्न खुलकर मनाते हैं हम

24 फरवरी 2017
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हार का जश्न खुलकर मनाते हैं हम,पर कई मर्तबा टूट जाते हैं हम,हम रुकेगे नहीं हम थकेगे नहीं,जीत के गीत यूँ गुनगुनाते हैं हम।मंजिले अब हमारा जुनूं बन गईं,रास्तों को बनाते मिटाते हैं हम ।जिंदगी से गिला कोई शिकवा नहीं,सिर्फ उम्मीद को थपथपाते

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रेत का दरिया है साहिल रेत का

25 फरवरी 2017
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रेत का दरिया है साहिल रेत का,डूबा पैमानों में मन्ज़िल रेत का।निकलीं आँखों की उमींदे बेवफा, ढाल-तलवारों का कातिल रेत का। ओढ़कर सोता रहा जो उम्र भर,आस्ती का सांप कम्बल रेत का। पैरहन मेरा कफ़न बन जायेगा,जिस्म से लिपटा है मलमल रेत का।दोस्तों तबियत ना पूछो आज तुम,क़तरा-क़तरा दाग़ पागल रेत का।जिस्म पथराई हुई

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मेरे बिखरे हुए एहसास ये हालात तो देखो

26 फरवरी 2017
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मेरे बिखरे हुए एहसास ये हालात तो देखो,गिरे खंजर पे जाकर फिर मेरे जज्बात तो देखो। उठा कर ले गए वो थे मेरे सम्मान के टुकड़े, रही आँखों से होती बे-हिसां बरसात तो देखो। नहीं बुझती मेरी सांसें ज़हर पी-पी के ज़िन्दा हैं,गुजरते बेखुदी में क्यों मेरे दिन-रात तो देखो। मेरे इखित्यार में अब तो मेरी साँसे नहीं य

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जब इरादा नेक है तो देर फिर किस बात की

27 अप्रैल 2018
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जब इरादा नेक है तो देर फिर किस बात की,आओ मिल-जुल के बदल दें सूरतें हालात कीवक़्त से कहदो जरा वो साथ दे खुलकर मेरा,फ़िक्र करना छोड़ दो दिल ख्वाहिशें जज्बात की। ढेर हैं बारूद के चिंगारियों को दूर रख,बंद रख अपनी जुबां मत बात कर औकात की.अपने लहू से सींचते हम सर-ज़मींने-हिन्द की,हम नहीं परवाह करते हैं कभी द

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