निगाहें नूर की लौ में तपे पत्थर पिघलते हैं,
तेरी औक़ात क्या बन्दे सिकंदर भी दहलते हैं।
मेरी खामोशियों को गैर वाजिब मत समझना तुम,
हमारे नाम से सूरज यहाँ छुपते निकलते हैं ।
मुकद्दर टूट कर कदमों में मेरे बैठ जाता है,
नहीं तूफां मेरे डर से समंदर से गुजरते हैं।
अगर मैं होश में आऊं ज़माना होश खो देगा,
नज़ारे भी बदल जाते है जब करवट बदलते हैं।
फकीरों से बड़ा रुतबा कोई राजा नहीं रखता,
शरीके दाम से बाजार भी चढ़ते-उतरते हैं ।
मुझे कमजोर करने की कभी जुर्रत नहीं करना,
हजारों खून के छींटे तेरे दामन पे दिखते हैं।
निमंत्रण भेज दूंगा तुम जनाजे में चले आना,
अभी ज़िंदा हूँ यारों रोज ही सजते संवरते हैं।
सलामत हौंसले हैं सिर्फ मेरे पंख टूटे हैं,
अभी भी आसमां को नापने छूने निकलते हैं।
मनाना रूठना ये आपकी आदत में शामिल है,
मनाने के लिए हमको हजारों दिल मचलते हैं।
अभी बदली नहीं है आपकी फितरत वफादारो,
तुम्हारे नाम के चर्चे तो गद्दारों में मिलते हैं।
अदब 'अनुराग'को तुम फिर सिखाने आ गए तालिब,
तिरी इस पाठशाला से तो बस विषधर उभरते हैं।