सुलगते हैं अगर हालात लानत हुक़्मरानों पर बिकेंगे कब तलक ईमान कचरे की दुकानों पर।
अदालत बेगुनाहों को सज़ा कब तक सुनाएगी,
दलाली कर रहे हैं वो जो बैठे हैं मचानो पर।
सफेदी पहन कर बैठे कुकुरमुत्तों के झुरमुठ हैं,
रखेंगे नीव के पथ्थर ये बारूदी ढलानों पर।
घिरा संगीन आरोपों से मंदिर का पुजारी है,
लगेंगी बंदिशें कब तक इमामों के बयानों पर।
कोई क़ातिल नज़र आता नहीं है भीड़ में यार,
बुला लेते हैं अक्सर बस्तियों को कत्लखानों पर।
सियासत ढल गई है आज-कल फ़िरक़ा परस्ती में,
यकीं शमशीर पर कर लो ना करना अब म्यानों पर।
अगर तहजीब से वो पेश आएं तुम समझ लेना,
खरे साबित नहीं होंगे कभी अपनी जुबानों पर ।