बाज आते नहीं सताने से,
मिलने आते हैं वो बहाने से।
क्यों नज़र लग गई मोहब्बत को,
होंठ छिलते हैं मुस्कुराने से।
ओढ़कर वो वफाओं के वादे,
हो गए बेवफा ज़माने से।
चाक निकला लहू जिगर उनका,
लौटे महफूज कितने थाने से।
देखते-देखते जली बस्ती।
लोग डरते रहे बुझाने से।
राख बैठी दबाये चिंगारी,
बाज आएगी घर जलाने ।
रौशनी क़ैद है चिरागों में,
निकला सूरज नहीं ज़माने से।
फिर नदी लौटकर नहीं आती,
लौटी प्यासी अगर मुहाने से ।
तोड़ दो आइना लगा पहरे ,
सत्य छुपता नहीं छुपाने से।
आज'अनुराग'ज़िन्दगी अपनी,
रूठी-रूठी है आशियाने से।