
मन वीणा के तार शारदे,
करदे स्वर श्रृंगार शारदे॥
शब्द-छंद हो जाएँ अलंकृति,
भावों के संकल्प हो झंकृति,
मेरी कल्पना मनुज ह्रदय में,
भर दे अपना प्यार शारदे॥
संकल्पों में भागीरथ बल हो,
तेरी कृपा का शुभ संबल हो,
निर्मल करदे जन-मानस को,
बहे गंग जल धार शारदे॥
ज्ञान पुंज नूतन उमंग दो,
कण-कण को माँ चटख रंग दो,
सृजन शक्ति दो संस्कार माँ,
दो अनुपम उपहार शारदे।।