मन की आशा ,
बनी निराशा ।
आप बेवफा,
व्यर्थ दिलासा ।
सत्य झुका कब,
मैं हूँ प्यासा ।
शहर-ए-सदाकत,
झूठ तमाशा ।
धुंधला सूरज ,
घना कुहासा ।
पूरब पश्चिम ,
डरा - डरा सा ।
जीवन धारा ,
विकट हताशा ।
दीपक जलता ,
बुझा - बुझा सा ।
27 अक्टूबर 2015
मन की आशा ,
बनी निराशा ।
आप बेवफा,
व्यर्थ दिलासा ।
सत्य झुका कब,
मैं हूँ प्यासा ।
शहर-ए-सदाकत,
झूठ तमाशा ।
धुंधला सूरज ,
घना कुहासा ।
पूरब पश्चिम ,
डरा - डरा सा ।
जीवन धारा ,
विकट हताशा ।
दीपक जलता ,
बुझा - बुझा सा ।
69 फ़ॉलोअर्स
संपर्क -- + ९१९५५५५४८२४९ ,मैं अपने विद्यार्थी जीवन से ही साहित्य की विभिन्न गतिविधियों में संलग्न रहा|आगरा वि.वि.से लेखा शास्त्र एवं हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की ,फिल्म निर्देशन व पटकथा लेखन में व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त की |सर्वप्रथम मुंबई को अपना कार्यक्षेत्र बनाया |लेखक-निर्देशक श्री गुलजार के साथ सहायक फिल्म निर्देशक के रूप में कार्य किया|पटकथा लेखन में श्री कमलेश्वर के साथ टी.वी.के लिए कार्य कर दिल्ली वापस लौट आया|तत्पश्चात दिल्ली दूरदर्शन में दूरदर्शन निदेशक डॉ.जॉन चर्चिल,श्री प्रेमचंद्र आर्या के साथ कार्य किया|साथ ही साथ आकाशवाणी आगरा,दिल्ली,नजिवाबाद केन्द्रों से काव्यपाठ एवं नाटक,एकांकी के लिए कार्य किया |२००२ से अपना व्यवसाय करते हुए साहित्यक कार्यक्रमों में मेहमान वक्ता-प्रवक्ता एवं दिग्दर्शक के रूप में स्वतंत्र रूप से सेवारत हूँ । D