अब भी जिंदा हूँ तेरी ख़ुशी के लिये,
जान-ईमान से दोस्ती के लिए।
जब भी जी चाहे मिलने चले आइये,
आब बांकी है सूखी नदी के लिए।
अब दुआ और दवा दोनों नाकाम हैं,
कुछ बचा ही नहीं आदमी के लिए।
बेवफा ही सही अपना महबूब है,
हम तरसते हैं तेरी हंसी के लिए ।
रूह उस्ताद है जिस्म शागिर्द है,
वक़्त ही है सबक ज़िन्दगी के लिए।
शुक्रिया यार अब मेहरबानी नहीं,
आग मुझमें भी है रौशनी के लिये।
तेरी बातों में अब जिक्र मेरा नहीं,
फिक्र दिखती नहीं है किसी के लिये।
ये हवा ले चलो मुझको पी की गली,
हमको जीना है मरना उन्हीं के लिये।
अजनबी राह फिर मुड गई ज़िन्दगी,
आज 'अनुराग' है मुफलिसी के लिए।