आज खुशबू नहीं गुलाबों में,
जैसे सूखे पड़े किताबों में।
क़ैद में आज फिर परिंदे हैं,
हौंसले छिप गए नकाबों में।
खो दिया नूर क्यों चिरागों ने,
आप मशरूफ थे खिताबों में।
प्यार सा दूसरा नहीं शानी,
बे-वजह घूम मत हिजाबों में।
मुस्कुराने के फायदे गिनना,
और कुछ भी नहीं हिसाबों में।
वक़्त बे-वक़्त ही निभा लेते,
आजमाते नहीं छलाबों में।
हमने पल-पल जिन्हें संवारा था,
बह गये ख्वाब सब बहाबों में।
जब भी तेरा ख्याल आता है ,
उलझा पाता हूँ कुछ जबाबो में।
ले गई पंख उड़ा कर आंधी,
मैं भी शामिल था इन्कलाबों में।
कोई मंजिल का पता दो यारों,
गुम न जाएँ कहीं निसाबों में।
एक रत्ती गुमां नहीं मुझको,
पढना'अनुराग'को क़िताबों में।