तुम मिले तो लगा ख्वाव मेरे हुए,
तेरे जाते ही आधे-अधूरे हुए।
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तुम मिले तो लगा ख्वाव पूरे हुए,
तेरे जाते ही आधे-अधूरे हुए।
नीद भी ले गए चैन भी ले गए,
करवटों में ही काफिर सवेरे हुए।
ढूंढते ही रहे नक़्शे-पां उम्र भर ,
हम ना तेरे हुए तुम ना मेरे हुए।
दूसरों से भला क्या शिकायत करें,
रौशनी में जबां जब अँधेरे हुए।
धूप-औ-छाँव का नाम है ज़िन्दगी,
कौन जाने कहाँ कब बसेरे हुए।
वक़्त अपनी ही धुन में चलेगा सदा,
वक़्त के साय हैं सब को घेरे हुए।
पेश आये अदब से तो उनको लगा,
वो मिले तो निगाहें तरेरे हुए।
या खुदा तेरी रहमत का अब क्या करूँ,
रहनुमां काफिलों के लुटेरे हुए।
दे गए वो सज़ा ज़िन्दगी की हमें,
मर भी सकते नहीं सख्त पहरे हुए।
ख्वाहिशों का मुक़द्दर लिखे तो कोई,
हम बताएँगे क्यों ज़ख्म गहरे हुए।
रास्तों पर बिठा कर कहीं छुप गए,
हम उसी मोड़ पर अब भी ठहरे हुए।