
वो कदम-दर-कदम आज़माने लगे,
ऐब गिन-गिन के मेरे बताने लगे।
कोशिशों से मुक़द्दर बदल जायेंगे,
आप क्यों बेवजह तिलमिलाने लगे।
आजकल और कुछ याद आता नहीं,
लोग सारे मुझे भूल जाने लगे।
जल न जाएँ कहीं आपकी उंगलियां,
आरती के दिआ तुम बुझाने लगे।
हमने जब भी गुनाहों तौबा किया,
तुम गुनाहों की बस्ती बसाने लगे।
बेवफा हो गईं फूल से तितलियां,
रंग भी रूप भी डूब जाने लगे।
खूबसूरत है मौसम का रुख ज़िन्दगी,
बेजुबां होंठ भी गुनगुनाने लगे।
शुक्रिया तो अदा कीजिये वक़्त का,
रोते-रोते हुए मुस्कुराने लगे।
ज़ख्म फिर से दिलों के हरे हो गए,
जिनकों भरने में यारों ज़माने लगे।
लोग गिर जायेंगे अपने ईमान से,
वो मुकरते रहे हम निभाने लगे।
दिल की खामोशियों को कुरेदों ना तुम,
अजनबी बन गए जो पुराने लगे।
अपने चहरे की जानिब न डालीं नज़र,
आइना दूसरों को दिखाने लगे।
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