
था मुक़द्दर में जो भी मिला आज तक,
यूँ ही चलता रहा सिलसिला आज तक।
बर्फ पिघलेगी ज़िद की किसी रोज तो,
ना बिखरने दिया हौंसला आज तक।
कोशिशें आँधियों ने बहुत की मगर,
मैं बुझा ही नहीं यूँ जला आज तक।
वक़्त लेता रहा करवटें रात -दिन,
पर उम्मीदों का घर ना मिला आज तक।
लौट आये सभी भूले भटके हुए,
क्यों भटकता रहा काफिला आज तक।
हम निकल आये किस रास्ते ज़िन्दगी,
मंज़िलें खो गईं मैं चला आज तक।
दिल के रिश्तों पे कुर्बान हम हो गए,
उनके दिल से गया ना गिला आज तक।
ना रुका ना थका आगे बढ़ता रहा,
फिर भी तय ना हुआ फासला आज तक।
भूल करदी मुहब्बत का दम भर लिया,
आप कर ना सके फैसला आज तक।
हो गए खंडहर जो बुलंदी पे थे,
टिकता 'अनुराग'कैसे किला आज तक।