हमको शिकवा नहीं ज़माने से,
बाज आये वो आजमाने से।
ज़ख्म तो भर गये मगर फिर भी,
तुमको फुर्सत नहीं दुखाने से।
मुन्तजिर हूँ तेरी निगाहों का,
तौबा करता हूँ रूठ जाने से।
आप आयें तो फिर फिज़ा बदले,
मुस्कुरा लेंगे हम बहाने से।
बढ़ गए फासले बहुत ज्यादा,
और मिटते नहीं मिटाने से।
रंग बेरंग हैं बुझे चहरे,
काश खिल जाएँ मुस्कुराने से।
बेवफा हो गए सभी अपने,
चूकते भी नहीं सताने से।
कोई कडुवी दवाई दो मुझको,
रूह के घाव हैं पुराने से।
सिर्फ'अनुराग'आज अपना है,
और एहसास हैं सुहाने से ।