बिखरा-बिखरा अंदर-बाहर लगता है,
यूँ तो वो इक नामी शायर लगता है।
पेशानी पर बल दिख जाये नामुमकिन,
जर्रा-जर्रा हर फन माहिर लगता है।
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा महका है,
खुशबू में डूबा सा मंजर लगता है।
अब तो उनकी खामोशी भी बोलेगी,
तबियत भी सुधरी है अंतर लगता है ,
देरी से लौटा हैं लेकिन लौटा हैं,
मेरे घर का मौसम सुन्दर लगता है।
लहरों से घबरा कर पीछे मत लौटो,
तूफां भी मौजों का रहबर लगता है।
दिल से चाहोगे तो सब हासिल होगा,
असफलताओं में भी अवसर लगता है।
मुश्किल में उम्मीदों को थामें रखना
यूँ तो सहमा-सहमा मंजर लगता है ।
हक़ की खातिर लड़ने को तत्पर रहना,
सच के चहरे पर तो पत्थर लगता है। ,
पिजड़ो को पिघला कर बाहर आना है,
लोगों के हाथों में खंजर लगता है।
जब भी तेरा जी चाहे घर आ जाना,
अपना तो घर आँगन बिस्तर लगता है।
गिरता-पडता एक परिंदा आया है,
टूटा-टूटा घायल बेपर लगता है।