हमें महफ़िलें अब सुहाती नहीं हैं,
हैं दिलकश मगर रास आती नहीं हैं।
सुलगती सी बातें झुलसते से अरमां,
कभी आग दिल की बुझाती नहीं हैं।
ख्यालों की दुनिया की गुमनाम यादें,
रुलाती तो है पर हंसाती नहीं हैं।
गली से गुजरती है जब बज़्म कोई,
मेरी रूठी तबियत मनाती नहीं हैं।
कई दिन से कायम है ये बदहबासी,
नज़र राहतें भी तो आती नहीं हैं।
हमें घेरे बैठी है गहरी उदासी,
ख़ुशी की लहर मुस्कुराती नहीं है।
कभी मेरा मांजी था मेरा खिलौना,
वो यादें भी अब गुदगुदाती नहीं हैं।
कसम लौट आएँगी वो रंगी शामें,
मगर महफ़िलें ही बुलाती नहीं है।
कदम ताल करते गुजर जायेंगे दिन,
मगर रातें संगीन जाती नहीं है।
अजी जिन्दगीं ने बहुत कुछ दिया है,
मैं खुश हूँ ये फूली समाती नहीं है।
है अनुराग कैसा अँधेरा-उजाला,
दिये जल गए जिनमें बाती नहीं है।